लघुकथा- बाबूजी (Short Story- Babuji)

मुझे और भी बहुत कुछ ध्यान आ रहा था. औरतों की बाबूजी से एक-दो रुपए को लेकर बहस, जिसके जवाब में वो बस हाथ जोड़कर एक ही बात कहते थे, “गली-गली घूमते हैं, उसी का एक-दो रुपया ऊपर का मान लीजिए.”

“पापा, देखिए कितने प्यारे फ़ूल हैं!” कार में पीछे बैठी बेटी ने मेरी गर्दन दाईं तरफ़ घुमा दी. रंग-बिरंगे फूलोंवाले पौधों से लदा एक ठेला कोने में खड़ा था.
“तुम बालकनी के लिए कुछ पौधे लेना चाहती थी न सीमा, यहीं से ले लो…” मैंने पत्नी को याद दिलाया. वो किसी और जोड़-घटाने में लगी हुई थी.

यह भी पढ़ें: गुम होता प्यार… तकनीकी होते एहसास… (This Is How Technology Is Affecting Our Relationships?)

“ये लोग बहुत महंगे देते हैं, मैं नर्सरी से ही लाऊंगी, चलिए!”
मैंने कार आगे बढ़ाई ही थी कि नज़र फिर वहीं जाकर टिक गई. उस निरीह आदमी को ठेलेवाला न कहकर एक सूखा पौधा मान लेता, तो ज़्यादा ठीक रहता. कुछ याद आ रहा था… मन विचलित हो रहा था.
“देख लो, थोड़ा मोल-भाव करके यहीं से ले लो… अब कहां नर्सरी जाओगी.” पत्नी को मनाने की मैंने एक और कोशिश की. मन के अंधेरे में जाकर टटोला, वो आदमी मुझे बिल्कुल बाबूजी जैसा लग रहा था.
“ये गुलाबवाला पौधा कितने का है?” पता नहीं मैं कब वहां जाकर खड़ा हो गया था.
“साहब, ये वाला अस्सी का और वो बड़ा वाला एक सौ बीस का… दोनों दे दें?” एक उम्मीद भरी दृष्टि मेरी ओर ताकती हुई. मैंने बगल में देखा, क़रीब पांच साल का बच्चा भी मेरी ओर उसी उम्मीद से ताक रहा था! अब मुझे बहुत कुछ याद आ रहा था. अम्मा मसाले पीसकर देती थीं और बाबूजी मुझे साइकिल में आगे बैठाकर गली-गली घूमकर मसाले बेचा करते थे.
सीमा ने मुझे कुहनी मारी, “कहा था न मैंने ये लोग बहुत लूटते हैं. नर्सरी से लेंगे… पचास-साठ का अंतर तो पड़ ही जाएगा. इनके चक्कर में बजट थोड़ी बिगाड़ लेंगे.”
मुझे और भी बहुत कुछ ध्यान आ रहा था. औरतों की बाबूजी से एक-दो रुपए को लेकर बहस, जिसके जवाब में वो बस हाथ जोड़कर एक ही बात कहते थे, “गली-गली घूमते हैं, उसी का एक-दो रुपया ऊपर का मान लीजिए.”
मुझे ऊहापोह की स्थिति में छोड़कर सीमा जैसे ही कार में बैठने को मुड़ी, बिटिया के हाथ से आइसक्रीम गिरकर सड़क पर फ़ैल गई.
“कोई बात नहीं, अभी दूसरी दिला देंगे.” सीमा ने बिटिया को पुचकारा. ठेले वाले का बच्चा सड़क पर गिरी आइसक्रीम को बहुत ध्यान से देख रहा था. मैंने हिसाब लगाया, सत्तर रुपए की एक आइसक्रीम दिलाई थी… अब फिर से एक और? अब कहां गया सीमा का बजट?

यह भी पढ़ें: घर को मकां बनाते चले गए… रिश्ते छूटते चले गए… (Home And Family- How To Move From Conflict To Harmony)

पिता-पुत्र अभी भी मेरी ओर उम्मीद से देख रहे थे… नहीं-नहीं मैं और बाबूजी एक घर के बाहर हल्दी का थैला लिए घर की मालकिन को उम्मीद से देख रहे थे… मैंने सिर झटका, जो सौदा उस दिन टल गया था, आज नहीं टलेगा.
मैंने बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “ये दोनों पौधे गाड़ी में रखवा दीजिए… और ये मनी प्लांट कितने का है बाबूजी?”

लकी राजीव

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES


डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

मॉनसून फैशन- भीगे मौसम में ऐसे लगें हॉट (Monsoon Fashion- How to look hot in Monsoon)

बूंदों से लिपटी हो या सितारों में सिमटी हो... भीगी-भीगी-सी तुम क्या खूब लगती हो...…

July 8, 2025

कहानी- चक्रव्यूह (Short Story- Chakravyuha)

उसकी पीठ पर अपनी गुदगुदी हथेली से थपकी देते तो नीति एकदम सिहरकर संभल जाती.…

July 8, 2025

अनुपम खेर- भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता… (Anupam Kher- Bhiga huwa aadmi barish se nahi darta…)

- आप 'मेट्रो... इन दिनों' फिल्म में रिश्ते और इमोशन के मकड़जाल को देखेंगे. इसमें…

July 7, 2025

कहीं आप ख़ुद को चीट तो नहीं कर रहीं? करें रियलिटी चेक (Are you cheating yourself? Do a reality check)

कई बार हम अपनी ज़िंदगी में इतने उलझ जाते हैं कि वास्तविकता को देखने की…

July 7, 2025
© Merisaheli