लघुकथा- बदलाव (Short Story- Badlav)

इतनी मेहनत, इतनी ट्रेनिंग के बाद थोड़ा बदलाव तो मैं ले ही आया था! घर साफ़ रहता था, खाना समय से मिलता था, बच्चे चमकते हुए रहते, क्लास में फर्स्ट आते और सबसे बड़ी बात.. हमारी लड़ाई बंद हो चुकी थी.
जो मैं कहता, वो करती जाती.. सब ठीक चलने लगा था कि तब तक ये गंध! कहां से आती है ये मशीन वाली गंध?

मैं पूरे घर का एक-एक सामान सूंघ चुका था. नहीं, वो गंध किसी सामान में से नहीं आ रही थी.. लोहे की गंध, जैसे मशीनों से आती है. बच्चे बाहर आंगन में पटाखे छुड़ाने में लगे थे. एक बार तो लगा इन पटाखों में से तो नहीं आ रही थी वो गंध? नहीं, ये तो अलग थी. कुछ जलने जैसी! मैं पागल होता जा रहा था… एक दिन, दो दिन नहीं, पिछले कई महीनों से ये गंध मैं महसूस कर रहा था या शायद कुछ सालों से! मेरे लिए असहनीय होता जा रहा था ये सब…
“पापा! आज रात को पूजा करने के बाद, बड़ा वाला अनार छुड़ाएंगे.. चार अनार एक साथ.” बेटे ने आकर मुझे चौंकाया.
मैं उसको झिड़ककर बोला, “बड़ा आया चार अनार छुड़ाएंगे, भाग यहां से. टी-शर्ट देख कित्ती गंदी है. मां को दिखाकर आ… कोई होश नहीं, त्योहार है, बच्चे घिनहे बने घूम रहे हैं.”
मैं पूरी ताकत से चिल्लाया कि ये बात सीमा के कान तक पहुंच जाए. हद है मेरी पत्नी भी.. कितना दिमाग़ खपा चुका हूं इसके साथ. कितना बदल चुका हूं, लेकिन अभी भी पूरी तरह से वैसी नहीं हुई जैसा मैं चाहता था.
नई शादी हुई, तो घर ठीक रखने की बजाय, मुस्कुराकर कविताएं सुनाती थी.. पता नहीं कितनी बातें थीं इसके पास. हर समय कुछ कहना, कुछ बताना, खिलखिलाना.. मतलब औरतोंवाले कोई लक्षण नहीं! ऐसे घर-गृहस्थी चलती है क्या?
“आज शाम को बड़े वाले पार्क चलें? अच्छा लगता है वहां, खुली हवा.. फोटो भी अच्छी आती है.” वो पास आकर कहती.
मैं तुरंत झिड़क देता, “घर की हालत देखो, आलमारी देखो अपनी. कपड़े सही से जमा लो.. ठूंस के रखे हैं.” वो तुरंत सहम कर कमरे में चली जाती.
“ये साड़ी नहीं देखी आपने.. कैसा लग रहा है ये रंग मेरे ऊपर.” जब कभी उसने ऐसा कोई सवाल किया, मैंने तुरंत उसको ठीक किया.
“सब्ज़ी का रंग भी देखा करो कभी, परहेज़ के खाने जैसी रहती है..”
बच्चे हुए तो पत्नी में और सुधार की ज़रूरत लगी. कब बच्चे को क्या करना है, क्या खिलाया करो, कैसे पढ़ाया करो…
इतनी मेहनत, इतनी ट्रेनिंग के बाद थोड़ा बदलाव तो मैं ले ही आया था! घर साफ़ रहता था, खाना समय से मिलता था, बच्चे चमकते हुए रहते, क्लास में फर्स्ट आते और सबसे बड़ी बात.. हमारी लड़ाई बंद हो चुकी थी.
जो मैं कहता, वो करती जाती.. सब ठीक चलने लगा था कि तब तक ये गंध! कहां से आती है ये मशीन वाली गंध?
“पूजा की तैयारी हो गई?.. सात बजे तक सब हो जाना चाहिए, देरी नहीं चलेगी.” मैंने रसोई में लगी सीमा को जाकर आदेश दिया, वो बिजली की फुर्ती से हाथ चला रही थी.. खटाखट!

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मैं अपने पर गर्वित था. मैं एक सुस्त लड़की को एक सुघड़ स्त्री में बदल चुका था. तभी मैं चौंका.. लोहे की वो तेज़ गंध, तो सीमा के पास से आ रही थी!
मैंने डरते हुए सीमा का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर घुमाया… ये मेरे सामने कौन थी? सपाट, भावहीन चेहरा, एकदम ठंडे हाथ, जैसे किसी धातु से बने हों और… और.. आवाज़…
“कहिए, मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकती हूं?” एकदम मशीनी आवाज़!
मैंने झटके से सीमा का हाथ छोड़ दिया. मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था! वो लोहे की गंध मेरे ऊपर हावी हो रही थी.. मैं ग़लत था, मैं एक सुस्त लड़की को सुघड़ स्त्री में नहीं, बल्कि एक औरत को रोबोट में बदल चुका था!

लकी राजीव
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Usha Gupta

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