Short Stories

कहानी- बाजला (Short Story- Bajla)

“कहां की बात कर रहे हो तुम! तुम क्या वहीं होते थे?“ अपराजिता निःशब्द थी. उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वहां अमित हो सकता है!
“इतने क़रीब से देखने के बाद भी कभी नहीं टोका तुमने मुझे? ऐसा क्यों किया तुमने अमित?“ अपराजिता हतप्रभ थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले वो. कोई इतने सालों तक चुप कैसे रह सकता था!

सुमित और बच्चों को दफ़्तर व स्कूल के लिए विदा कर अपराजिता घर समेट रही थी. तभी उसका मोबाइल बज उठा. काम बीच में रोक उसने कॉल रिसीव किया.
“हेलो.“
“कैसी हो अपराजिता?“
अपरिचित आवाज़ में उधर से अपना नाम सुन उसे विस्मय हुआ. बोलने की शैली ऐसी मानो वह उसे काफ़ी दिनों से जानता हो.
“जी आप कौन?” अपराजिता ने पूछा.
“नहीं पहचाना?”
“पहचानती तो पूछती क्यूं. मुझे कैसे जानते हैं.”
“यार, मैं अमित बोल रहा हूं.“
अमित… नाम सुन वह चौंक गई. यह नाम सोलह साल बाद जो सुन रही थी वो. लगा समय उसे तेजी से पीछे धकेल रहा हो. बहुत पीछे…
उसे याद आ रहा था वो दिन जब वो कॉलेज के बाहर रिक्शे के इंतज़ार में खड़ी थी और जाने कैसे सामने से अमित आ गया था.
दोनों में सामान्य रूप से बातचीत हुई. फिर अपने-अपने रास्ते मुड़ गए वे. उस दिन के बाद आज अचानक अमित को फोन पर सुनकर सहसा विश्वास नहीं हुआ उसे.
“हेलो कहां खो गई तुम?“ अमित ने फिर पूछा.
“कहीं नहीं बाबा. मैं कैसे पहचानती? फोन पर पहली बार जो तुम्हें सुन रही हूं आज.“ अपराजिता ने हंसते हुए कहा.
“ठीक है, फिर किसी दिन आराम से बात करेंगे. अभी मुझे भी दफ़्तर निकलना है. मेरा यह नंबर सेव कर लेना.” कहकर अमित ने फोन काट दिया.
अपराजिता ने अमित का नंबर अपने कॉटेंक्ट लिस्ट में सेव कर रख लिया.

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वो और अमित पहली कक्षा से ही साथ पढ़े थे. क्लास का सबसे अच्छा और शांत लड़का था अमित. हमेशा सबकी मदद करने को तैयार. उसके अच्छे दोस्तों में सबसे ऊपर अमित का नाम था. जब उसने याद करना शुरू किया तो यादों की कई खिड़कियां खुलने लग गई. क़रीब सात साल तक पढ़े होंगे दोनों एक साथ. फिर अचानक अपराजिता को पिता के तबादले के बाद स्कूल बीच में ही छोड़कर जाना पड़ गया था. सभी पुराने साथी उसी स्कूल में छूट चुके थे. तब आज की तरह फोन की सुविधा भी नहीं थी, जो सबसे संपर्क बना रह पाता.
धीरे-धीरे नए स्कूल, नए माहौल में वह रम गई. पुरानी यादें धुंधली पड़ती चली गई. स्कूल छूटने के बाद उस दिन अचानक कॉलेज के बाहर दिख गया था वो. लेकिन उस मुलाक़ात में ऐसी कोई बात नहीं हुई, जो याद रह पाती उसे.
फिर आज इतने सालों बाद अचानक अमित ने मुझे कैसे ढूंढ़ निकाला! वह आश्चर्यचकित थी. मेरा नंबर कैसे मिला उसे!
क़रीब हफ़्ते भर बाद अमित का फोन फिर आया. स्कूल से लेकर कॉलेज के सभी पुराने दोस्तों के बारे में उसने बताया. सबके बारे में जानकर बहुत अच्छा लग रहा था उसे. लगा कि बचपन के वो दिन फिर से लौट आए हैं और सभी साथी उसी पुरानी कक्षा में बैठे हैं.
ज़िंदगी में दोस्त कितने ज़रूरी होते हैं ये उसे अमित से मिलकर पता चला. कोई भी समस्या और चिंता अमित की बातों के सामने टिक नहीं पाती थीं ज़्यादा देर.
ऐसे में ही एक दिन उसने सोचा कि चलो अमित को शुक्रिया तो अदा कर दूं इतनी सारी ख़ुशियां देने के लिए और उसका नंबर मिलाया.
“हेलो अमित!”
“हां बोलो अपराजिता. कैसे फोन किया तुमने?“ अमित अपनी शांत और गहरी आवाज़ में बोल रहा था.
“कुछ नहीं बस तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहती थी फिर से हमारे बचपन को लौटाने के लिए.“
“शुक्रिया कैसा! तुम ख़ुश हो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए.” अमित ने कहा.
“अच्छा ठीक है. यह तो बताओ कि मेरा नंबर तुम्हें कैसे मिला था?“ अपराजिता ने जानना चाहा.
“फिर से तुमने पूछा! तुमसे बात करनी थी तो मिल गया कहीं से तुम्हारा नंबर. तुम क्या करोगी जानकर.“ अमित ने बात को हंस कर टाल दिया.
“ठीक है. जाओ मत बताओ. अब नहीं पूछूंगी कभी.“
“तुम बिल्कुल नहीं बदली. बता दूंगा किसी दिन ओके. अभी भी बच्चों की तरह रूठ जाती हो. अच्छा बाबा सुनो, मैं तुमसे बात करना चाहता था, लेकिन कोई कॉन्टैक्ट नहीं था मेरे पास. फिर एक दिन ऋचा मिली, उससे मिला तुम्हारा नंबर.”
अपराजिता चुप हो गई.

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अमित थोड़ा गंभीर होते हुए कहता जा रहा था, “मैं कब से तुमसे कुछ कहना चाहता था. लेकिन कैसे कहूं समझ नहीं आ रहा था. ख़ैर, तुम जानना चाहती थी न कि मैंने इतने सालों बाद तुमसे कॉन्टेक्ट क्यों किया? तो सुनो मैं तुमसे बेहद प्यार करता था और आज भी करता हूं. बस आज मेरी परिभाषा बदल गई है.“
भावनाओं की धार ने अमित को अपनी चपेट में ले लिया था.
“लेकिन कैसे? हम तो स्कूल छूटने के बाद कभी मिले ही नहीं थे. बचपन में ही हमारा स्कूल अलग हो गया था. एक अच्छे दोस्त की तरह तुम्हारा नाम याद था ज़ेहन में. बस…
मेरा जीवन इतनी तेज़ गति से भागा कि सब कुछ पीछे छूट गया.“ अपराजिता संजीदा होती हुई बोली.
“हां, तुमने नहीं याद किया मुझे. न ही मुझे कभी देखा था स्कूल छूटने के बाद. लेकिन तुम्हारे जाने के बाद मेरा एडमिशन भी संजोग से उसी शहर के एक कॉलेज में हो गया था, जहां तुम रहती थी. मैं तुम्हें रोज़ देखता था. जब तुम मेरी खिड़की के नीचे से होकर कॉलेज जाती थी. बिल्कुल शांत और सौम्य.“ अमित बोलता जा रहा था मानो इतने सालों तक ज़बरदस्ती रोका गया कोई बांध टूट पड़ा हो.
“कहां की बात कर रहे हो तुम! तुम क्या वहीं होते थे?“ अपराजिता निःशब्द थी. उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वहां अमित हो सकता है!
“इतने क़रीब से देखने के बाद भी कभी नहीं टोका तुमने मुझे? ऐसा क्यों किया तुमने अमित?“ अपराजिता हतप्रभ थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले वो. कोई इतने सालों तक चुप कैसे रह सकता था!
“मुझे पता है तुम्हारे मन में अभी क्या प्रश्न उमड़ रहे होंगे. तुम यही सोच रही होगी कि मैंने कभी क्यों नहीं कुछ कहा. तुम्हारा सोचना अपनी जगह सही है. लेकिन मैं भी क्या करता? मुझे डर था कि कहीं हमारे घरवाले हमें नहीं स्वीकार किए तो मैं क्या करूंगा? बेवजह तुम्हारे मन की शांति मैं भंग नहीं करना चाहता था. इसलिए कभी मुंह खोलने की हिम्मत नहीं हुई मेरी.” अमित ने अपनी मजबूरी ज़ाहिर करते हुए कहा.
“कहते हैं कि जो बात अंजाम तक ना पहुंच पाए उसे ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना ही सही होता है. इसलिए मैं एक अच्छे दोस्त के रूप में हमेशा बना रहा तुम्हारी नज़रों में.“
अपराजिता भावुक हो सुनती रही और कहते-कहते रुक गई, तुम एक बार कह कर तो देखते अमित…

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अमित अपनी रौ में बोले जा रहा था, “मैं शायद यह सब कभी न कहता, लेकिन लगा कि अब न बोला तो बहुत देर हो जाएगी. आज तुम्हें अपने परिवार के साथ ख़ुश देखकर मुझे भी बहुत ख़ुशी होती है. दुआ करता हूं कि तुम्हें और ख़ुशियां मिले. हम हमेशा अच्छे दोस्त बने रहेंगे. आज मेरे प्यार की यही परिभाषा है.“
“हां, सही कहा तुमने. आज यही परिभाषा सही है. तुम भी ख़ुश रहना.“ कहकर अपराजिता ने फोन रख दिया. उसकी आंखों में उमड़ती बदली में पुरानी यादें बहती जा रही थी…

अलका ‘सोनी

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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