कहानी- भूमिका (Short Story- Bhumika)

“मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुई कि इतना अपमान हम शिक्षित समर्थ स्त्रियों को सहना पड़ता है, तब निरक्षर निसहाय स्त्रियों की कितनी दीन दशा होती होगी. स्त्री चाहे जिस वर्ग की हो वह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक किसी-न-किसी स्तर पर शोषित है और उसके पास सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. नहीं सहती तो घर टूटता है और इस टूटने का ठीकरा स्त्री के सिर फूटता है कि इसे निबाहना नहीं आता. यह पक्षपात ही तो अखर जाता है. घर को टूटने से बचाने की ज़िम्मेदारी हमारी ही क्यों हो, हमें ही क्यों कहा जाए पति को ख़ुश रखो, घर में शांति बनाए रखो.”

तानिया ने जैसे ही सुबह अख़बार में पढ़ा कि आज ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ है तो उसने सुलेख से तुरंत कहा, “सुलेख, क्या तुम्हें मालूम है आज ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ है? यह तुम्हें अजीब-सा नहीं लगता कि ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ भी मनाना है और बाज़ार में खुलेआम तम्बाकू भी बिकती रहे. आख़िर क्या है इस दिवस को मनाने  का प्रयोजन और क्या कोई एक भी व्यक्ति इस दिवस को मान्यता देते हुए तम्बाकू त्याग करता होगा?”
सुलेख को लगा तानिया उस पर कटाक्ष कर रही है, “यह सब सुनाकर क्या तुम मुझे ताने दे रही हो? अपने मुंह के छालों के कारण मैं पहले ही परेशान हूं.”
यही होता है. दोनों के बीच संवादहीनता की स्थिति होती है या कटुता की. सामान्य भाव से न कोई कुछ कहता है, न दूसरा ग्रहण करता है.
दस बजे सुलेख कार्यालय चले गए और ग्यारह बजे डॉ. कॉलरा फोन पर थे, “देखिये मिसेज सूर्यवंशी… आपको पता ही होगा सूर्यवंशीजी मुझसे ट्रीटमेंट ले रहे हैं. दरअसल, मैं उनसे ऐसा कुछ नहीं कहना चाहता, जो उन्हें भावनात्मक रूप से कमज़ोर करे.”
“ऐसी क्या बात हो गई? सुलेख के मुंह में इन दिनों छाले ज़रूर हो गए हैं, जो पहले भी होते रहे हैं और वे हामायसिन सस्पेन्शन आदि लगाते रहे हैं.”
“आप बहादुरी से काम लेंगी, इस निवेदन के साथ बताना चाहता हूं कि सूर्यवंशीजी को माउथ कैंसर की शुरुआत हो चुकी है. आपको उन्हें तम्बाकू सेवन से रोकना है…”
तानिया नहीं कह सकी कि मैं तमाम जतन कर हार चुकी हूं. आप नहीं जानते कि तम्बाकू को लेकर इस घर में कैसे-कैसे विवाद और संघर्ष हुए हैं, पर सुलेख तम्बाकू छोड़ने को तैयार नहीं हैं.
“क्या यह बात सुलेख जानते हैं?”
“हां अनुमान तो होगा ही. कुछ ज़रूरी बात करनी है, आप घर आ सकें तो…”
“आती हूं.”
तानिया को सुलेख के माउथ कैंसर की सूचना ठीक ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ के अवसर पर मिली. ओह! सुलेख, तुम मेरी आशंका को टालते रहे और अब ख़तरा सामने है.
तम्बाकू जैसा जड़ पदार्थ कभी उन दोनों के बीच घुसपैठ कर उनकी निजता-निकटता ध्वस्त करेगा तानिया ने नहीं सोचा था. अब स्थिति यह हो गई है कि जहां नज़र जाती है, वहीं तम्बाकू की पुड़िया बरामद होती है. मेज पर, जो आलमारी में, खिड़कियों के पर्दों के पीछे, जेब में. धोने के पहले सुलेख के वस्त्रों की जेबों से तेज़ भभके के साथ तम्बाकू की किरिच निकलती है. वह सावधान करती रही,
“तम्बाकू छोड़ने का इरादा कर लो सुलेख. यह कैंसर का कारण बनता है.”
“लाखों लोग खा रहे हैं, फिर तो सभी को कैंसर हो जाना चाहिए.”
“उन्हीं में से कुछ को होता है.”
“उन्हें भी, जो तम्बाकू नहीं खाते हैं.”
“ख़तरा खानेवालों को अधिक होता है.”
“अच्छा अब वही सब दोहरा कर मेरा दिन ख़राब न करो. एक क्लेम के मुक़दमे ने पहले ही परेशान कर रखा है.”
“तुम्हारे मुंह में यह जो छठे-छमासे छाले हो जाते हैं, वह किसी व्याधि की शुरुआत ही न हो?”

यह भी पढ़ें: बुरी आदतों से छुटकारा पाने के 10 आसान उपाय (10 Ways To Get Rid Of Bad Habits)

“छोड़ने की कोशिश करूंगा. आदत धीरे-धीरे ही जाएगी.”
“ऐसी आदत डालते ही क्यों हो, जो फिर जाती नहीं?”
“वकालत ऐसा पेशा है, जहां एकाग्रता बनाए रखने के लिये व्यसन ज़रूरी हो जाता है. दिनभर मुवक्किलों के साथ माथा खपाना होता है. तम्बाकू मैं शौक से नहीं, तनाव से बचने के लिए खाता हूं.” सुलेख इसी तरह अपनी चमत्कारी तार्किक क्षमता से झूठ को सच, ग़लत को सही सिद्ध करता रहा है.
“फिर तो कामकाजी स्त्रियों के लिए भी व्यसन अनिवार्य कर देना चाहिए. तनाव से बचने के लिए शराब, सिगरेट, तम्बाकू, पान खाने की छूट पुरुषों को ही क्यों मिले, स्त्री को क्यों नहीं? पर स्त्री कोई व्यसन करे, तो पुरुष चिंतित हो जाता है कि लोग कहेंगे इसकी स्त्री व्यसनी है. स्त्री ही सदा शालीन-संस्कारी क्यों बनी रहे, पुरुष क्यों नहीं? समाज का प्रमुख तो पुरुष बना हुआ है, वही नियामक और निर्णायक है तो उसकी ज़िम्मेदारी भी अधिक होनी चाहिए, जिससे वह समाज में एक प्रभाव व आदर्श स्थापित कर सके.
“पढ़ी-लिखी पत्नी ख़तरनाक होती है. पति को स्वतंत्र नहीं रहने देती. जान लो हम ठाकुर औरत की मुट्ठी में नहीं रहेंगे.”
“हां राज-पाट तो ख़त्म हो गया, ठकुराइ के नाम पर व्यसन बचे रह गए. तुम लोग व्यसन को पुरुषार्थ मानते आए हो. कैसा है यह पुरुषार्थ, जिसे शराब या तम्बाकू का सहारा चाहिए और कैसा है यह समाजशास्त्र कि जितना ऊंचा आदमी, उतनी ऊंची शराब. तब तो हम स्त्रियां भली कि उनमें जो भी ताक़त और साहस है, उसका केंद्र उनके भीतर है. उन्हें किसी व्यसन की ज़रूरत नहीं.”
“डायलॉगबाजी बंद करोगी?”
“सही सलाह देना गुनाह है, तो लो आज से चुप हूं. दुख की बात यह है कि पुरुष के दुष्कर्म स्त्री की नियति बन जाते हैं. मुझे डर है घर में जहां-तहां पड़ी तम्बाकू की पुड़िया देख, मेरे दोनों बेटे यह व्यसन न करने लगें.”
“तुम्हारा रोज़-रोज़ का भाषण सुन कर करेंगे ही. इसीलिए कहता हूं बात को इतना न बढ़ा दो कि लड़के प्रभावित हों.”
घबरा जाती थी तानिया. बेटों को बार-बार सचेत करती- “तुम दोनों तम्बाकू-सिगरेट को छुओगे भी नहीं.”
वह दोपहर बाद चिकित्सक के घर पहुंची. वह चिकित्सक व उनकी पत्नी कामाक्षी से कुछ आयोजनों में मिल चुकी थी, अत: चिकित्सक ने उसे बरामदे में बने क्लीनिक में न बैठाकर भीतर कलाकक्ष में बैठाया. कामाक्षी को भी वहीं बुला लिया. चिकित्सक विषय पर आए-
“…सूर्यवंशीजी की स्थिति आप जान ही चुकी हैं. आपको उनका मनोबल बनाए रखना होगा. मुझे आशा है, आप स्थिति को भली प्रकार सम्भालेंगी. उन्हें तम्बाकू छोड़ना ही होगा. यह कठिन ज़रूर है, पर असम्भव नहीं. आप उन्हें अच्छी तरह समझती हैं, इसलिए सौहार्द्र बनाए रखकर उन्हें भरोसा दें.”
तानिया नहीं कह सकी सुलेख को अच्छी तरह समझने का उसका दावा ग़लत साबित हुआ.
“मैं उन्हें समझाने की कोशिश कर अब हार चुकी हूं.”
“आप हार जाएंगी, तो कैसे सब ठीक होगा? आदत धीरे-धीरे ही जाती है.”
“तो पुरुष ऐसी आदत डालते ही क्यों हैं जो जाती नहीं? क्या सुलेख को तम्बाकू के ख़तरे मालूम नहीं थे? मेरी समझ में नहीं आता, जब सिगरेट के पैक पर लिखा होता है- ‘स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है’, तब सरकार इसे प्रतिबंधित क्यों नहीं करती? ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ भी मनाना है और तम्बाकू खुलेआम उपलब्ध भी रहे.”

यह भी पढ़ें: ग़ुस्सा कम करने और मन शांत करने के आसान उपाय (Anger Management: How To Deal With Anger)

“आपका ग़ुस्सा ठीक है, पर पुरुषों को फील्ड में काम करना होता है, बड़े तनाव रहते हैं. एकाग्रता बनाए रखने के लिए लोग ऐसी आदतें पाल लेते हैं.”
“आप भी दिनभर व्यस्त रहते हैं, तरह-तरह के रोगियों से जूझना होता है, तो क्या एकाग्रता बनाए रखने के लिए आपको भी व्यसन की ज़रूरत होती है?”
चिकित्सक मुस्कुराने लगे. कामाक्षी ने अबूझ भाव से उन्हें निहारा.
बात आगे भी जारी रहती, किंतु संबंधित नर्सिंग होम से एमरजेंसी कॉल आ गया.
“जाना होगा. हम डॉक्टरों की ज़िंदगी यही है, दूसरों की ज़िंदगी बचाते-बचाते हमारी अपनी निजता नहीं रह जाती.”
चिकित्सक जाने को उध्दत हुए तो तानिया भी चलने लगी.
कामाक्षी ने रोका, “आप पहली बार आई हैं, चाय पीकर जाएं.”
तानिया रुक गई. बात व्यसन पर ही होती रही. उसी तारतम्य में कामाक्षी कह बैठी, “आप तो अपने पति के तम्बाकू से ही परेशान हो गईं. यहां तो होटल राज़दरबार में रोज़ रात को जुये और मदिरा की महफ़िल सजती है… हां, डॉक्टर साहब की बात कर रही हूं.”
तानिया चौंक गई, “चिकित्सक को तो मदिरापान के ख़तरे मालूम होते हैं फिर भी… उनका यह आचरण आपको दुख नहीं देता?”
“देता है, पर अब मैं डॉ. साहब के गुण-दोषों में ही न उलझकर उन पक्षों पर ध्यान केंद्रित करती हूं, जो मुझे सुख देते हैं. यह आसान स्थिति है.”
“पर जब तनाव, दबाव या घुटन हो, तब दूसरे पक्ष पर ध्यान ही कहां जाता है? मैं तो विद्रोह कर अब चुप बैठ गई हूं और सुलेख को उनके हाल पर छोड़ दिया है.”
“हां, एक दिन हमारी सहनशक्ति जवाब दे जाती है और तब हम मौन हो जाते हैं या विद्रोही. लोग सहसा विश्‍वास नहीं कर पाते डॉ. साहब जो नगर के सबसे सिद्ध चिकित्सक हैं, शराब पीकर, जुआ खेलकर देर रात घर आते हैं. इनके देर रात घर आने पर पहले मैं ख़ूब कलह करती थी. शोर सुनकर मेरी तीनों बेटियां जाग जाती थीं.”
“लेकिन डॉ. साहब के बारे में आपको यह सब कैसे पता चला?” तानिया ने बीच में टोका.
“एक दिन मैं होटल राजदरबार जा पहुंची कि मेरा वहां होना शायद इन्हें ग्लानि से भर देगा. मैंने इनके साथियों से कहा, आप लोग यहां न आएं, तो इनका आना भी बंद हो जाए. आप लोग क्यों एक-दूसरे को तबाह कर रहे हैं. डॉक्टर साहब जैसे शिष्ट इंसान ने सार्वजनिक स्थल पर मुझे थप्पड़ मारकर कहा कि तुमने यहां आने की हिम्मत कैसे की?
मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुई कि इतना अपमान हम शिक्षित समर्थ स्त्रियों को सहना पड़ता है, तब निरक्षर निसहाय स्त्रियों की कितनी दीन दशा होती होगी. स्त्री चाहे जिस वर्ग की हो वह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक किसी-न-किसी स्तर पर शोषित है और उसके पास सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. नहीं सहती तो घर टूटता है और इस टूटने का ठीकरा स्त्री के सिर फूटता है कि इसे निबाहना नहीं आता. यह पक्षपात ही तो अखर जाता है. घर को टूटने से बचाने की ज़िम्मेदारी हमारी ही क्यों हो, हमें ही क्यों कहा जाए पति को ख़ुश रखो, घर में शांति बनाए रखो.
मैं रोते हुए घर पहुंची. मैं नियंत्रण खो रही थी. तब बड़ी बेटी कहने लगी, मां हम तीनों बहनें तुम्हारी कुछ नहीं हैं. पापा ही सब कुछ हो गए कि तुम एक उन्हें ही लेकर हरदम सोचो, तुम हमारी ख़ातिर ख़ुश नहीं रह सकती?
उसी दिन मुझे लगा हम अपने दुख या अभाव को इतना व्यक्तिगत क्यों मान लेते हैं कि सोच नहीं पाते कि वह दुख दूसरों को कितना प्रभावित करेगा. क्लेश और कलह का बच्चों के विकास और वृद्धि पर बुरा असर होगा. मैंने प्रण किया मैं ऐसा व्यवहार नहीं करूंगी, जो बिगड़े वातावरण को अधिक बिगाड़ दे. मुझे हर हाल में अपनी बेटियों को स्वस्थ वातावरण और सुरक्षा देनी है. तब मैंने सोचा, डॉ. साहब क्या करते हैं, मैं इसी उधेड़बुन में उलझकर क्यों रह जाना चाहती हूं, जबकि वे मेरी भावनाओं को महत्व नहीं देते. इनकी हरकत मुझे इसलिए दुख देती थी, क्योंकि मैं उन पर बहुत अधिक केंद्रित थी.”
तानिया को याद आया, कलह और उनके रोने-धोने से बेटे खीझ जाते हैं. ओह, ऐसा न हो बेटे भी विमुख हो जाएं.
“तो क्या अब निरूपाय होकर आप तटस्थ हो गई हैं. मेरा मतलब मौन…”
“नहीं. तटस्थ हो जाना समाधान नहीं, बल्कि पलायन है. इस तरह रिश्तों में निराशा भरती है. यह सही है पति-पत्नी के बीच तनाव हो, तो रिश्ते में वह बात नहीं रहती. फिर भी हमें रिश्तों को बचाए रखने की कोशिश करनी ही होगी, क्योंकि भागना कभी भी आसान नहीं होता. न समय से, न स्थिति से, न स्थान से, न ख़ुद से और न ही रिश्तों से. समाज का अस्तित्व कायम है, तो इसलिए कि परिवार है.
मेरी पहली कोशिश यह होती है कि मैं स्वयं को कभी भी दयनीय न लगने दूं. मेरा एक व्यक्तित्व है और मैं निराश या अस्त-व्यस्त रहकर अपने व्यक्तित्व को मात्र इसलिए ख़त्म नहीं कर सकती कि मेरे पति मदिरा या जुये में निमग्न हैं. ज़िंदगी में कोई एक पक्ष नहीं होता कि वहां से हमें हताशा मिली, तो हम दूसरे पक्षों पर ध्यान न दें. यह नकारात्मक तरीक़ा है.

यह भी पढ़ें: तनाव भगाने के लिए ये 8 चीज़ें खाएं ( 8 Foods To Fight Depression)

मैं उन पक्षों को याद रखती हूं, जो मुझे सुख देते हैं. मुझे नहीं मालूम डॉक्टर साहब में कभी सुधार होगा या नहीं, पर मुझे संतोष रहेगा कि मैंने घर के वातावरण को बिगड़ने से यथासम्भव रोका है. यह समझौता या घुटने टेकना नहीं है, बल्कि मैं अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाना चाहती हूं.”
तानिया मुग्ध भाव से कामाक्षी की बातें सुनती रही.
फिर बोली, “फ़िलहाल इतना कह सकती हूं कि आपसे मिलकर मेरा उच्चाटन कम हुआ है. समस्या का समाधान न भी निकले, पर हम उस समस्या को इतना विकृत न बना दें कि दूसरी समस्याएं खड़ी हो जाएं. हमें कोशिश जारी रखनी होगी, क्योंकि हमारे हिस्से की भूमिका शायद कभी ख़त्म न होगी, पर मैं ईश्‍वर से प्रार्थना ज़रूर करूंगी इन पुरुषों को सदबुद्धि दे.”
तानिया ने कुछ इस तरह कहा कि कामाक्षी मुस्कुरा दी.

सुषमा मुनीन्द्र

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Recent Posts

हास्य काव्य- मैं हुआ रिटायर… (Hasay Kavay- Main Huwa Retire…)

मैं हुआ रिटायरसारे मोहल्ले में ख़बर हो गईसब तो थे ख़ुश परपत्नी जी ख़फ़ा हो…

April 12, 2024

अक्षय कुमार- शनिवार को फिल्म देखने के लिए सुबह का खाना नहीं खाता था… (Akshay Kumar- Shanivaar ko film dekhne ke liye subah ka khana nahi khata tha…)

अक्षय कुमार इन दिनों 'बड़े मियां छोटे मियां' को लेकर सुर्ख़ियों में हैं. उनका फिल्मी…

April 12, 2024

बोनी कपूर यांनी केले ८ महिन्यात १५ किलो वजन कमी (Boney Kapoor Lost 15 Kg Weight By Following These Tips)

बोनी कपूर हे कायमच चर्चेत असणारे नाव आहे. बोनी कपूर यांचे एका मागून एक चित्रपट…

April 12, 2024

कामाच्या ठिकाणी फिटनेसचे तंत्र (Fitness Techniques In The Workplace)

अनियमित जीवनशैलीने सर्व माणसांचं आरोग्य बिघडवलं आहे. ऑफिसात 8 ते 10 तास एका जागी बसल्याने…

April 12, 2024

स्वामी पाठीशी आहेत ना मग बस…. स्वप्निल जोशीने व्यक्त केली स्वामीभक्ती ( Swapnil Joshi Share About His Swami Bhakti)

नुकताच स्वामी समर्थ यांचा प्रकट दिन पार पडला अभिनेता - निर्माता स्वप्नील जोशी हा स्वामी…

April 12, 2024
© Merisaheli