एक नगर में देवरानी-जेठानी रहती थीं. जेठानी तेज तर्रार और घमंडी स्वभाव की महिला थी, जबकि उसके विपरीत देवरानी शांत और मृदुभाषी महिला थी. उन दोनों के कोई संतान न थी. इस कारण दोनों ही बहुत दुखी और परेशान रहती थीं. संतान प्राप्ति हेतु जो कोई भी उपाय और पूजा-पाठ लोग बताते थे, वे सब करती थीं, परंतु वे दोनों अभी तक संतान सुख से वंचित थीं.
एक बार उन दोनों को एक महिला ने बताया, “नगर में एक बहुत ही सिद्ध महात्मा आए हुए हैं. कहते हैं कि उनके दर्शन करने मात्र से ही लोगों का कल्याण हो जाता है. वे जो भी उपाय बताते हैं उनको करने से व्यक्ति की मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है. उनके आशीर्वाद से कई लोगों को संतान की प्राप्ति हुई है. तुम दोनो भी जाकर महात्माजी से आशीर्वाद प्राप्त कर लो.”
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ये सुनकर वे दोनों महात्मा के पास पहुंच जाती हैं और उनको प्रणाम कर अपनी समस्या बताती हैं. उनकी समस्या सुनकर महात्माजी कहते हैं, “तुम्हारी समस्या का उपाय तो है, पर बहुत कठिन है. कर सकोगी तुम दोनों.”
“जी महात्माजी, उपाय कितना ही कठिन क्यों न हो हम दोनों उसे ज़रूर पूरा करेंगी. बस आप उपाय बताइए.” महात्मा की बात सुनकर दोनों एक साथ बोल उठीं.
उनकी बात सुनकर महात्मा बोले, “इस बार आनेवाली अमावस्या को तुम दोनों एक साल के अंदर के बच्चे के जन्म के समय के बाल लेकर आना यानी जिस बच्चे का मुंडन-संस्कार ना हुआ हो. याद रखना बाल कटे हुए ना हो. जड़ से उखड़े हुए होने चाहिए. उन बालों से मैं एक ताबीज बना दूंगा, जिसे पहनने से तुम्हे वर्ष के अंदर ही संतान सुख की प्राप्ति होगी.
महात्माजी को प्रणाम कर दोनों वापस घर आ गईं.
अब वे ऐसे बच्चे की तलाश में जुट गईं, जो एक वर्ष का ना हुआ हो और उसका मुंडन-संस्कार भी न हुआ हो. सौभाग्य से उन्हें एक बच्चे का पता चल गया, जो खेत में काम करनेवाली महिला का था.
अमावस्या का दिन आया, तो दोनों खेत जा पहुंची और वहीं बैठकर इंतज़ार करने लगीं कि महिला बच्चे के पास से हटे, तो वह बच्चे के बाल ले सकें.
तभी महिला ने बच्चे को दूध पिलाकर चटाई पर लिटा दिया और उसके पास अपनी बड़ी बेटी को बैठा कर खेत में काम करने चली गई. जब दोनों ने देखा कि महिला चली गई है, तो वे बच्चे के पास आईं और लड़की को कहा, “जाओ खेत में तुम्हे तुम्हारी मां बुला रही है. तब तक हम बच्चे का ख़्याल रखेंगे.”
लड़की चली गई. उसके जाते ही जेठानी ने जल्दी से बच्चे के बाल मुट्ठी में पकड़ कर नोंच लिए, जिससे बच्चा तड़प उठा और बहुत ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा.
उस दुधमुंहे बच्चे का करुण रुदन सुनकर देवरानी के आंसू आ गए. वह उसे गोद में उठा कर सिर को सहलाने लगी. तभी उसकी जेठानी बोली, “अरे ये क्या कर रही हो. जल्दी से बाल उखाड़कर चलो, नही तो वह महिला आ जाएगी.”
उसकी बात सुनकर देवरानी बोली, “नही दीदी, ये काम मुझसे ना होगा. आप देख रही हैं न कि आपके इस तरह से बाल नोंच लेने से बच्चा कैसे दर्द से छटपटा रहा है.”
“अरे पागल हो गई है क्या… ऐसे किसी भी बच्चे से ममता दिखाएगी, तो कभी भी तू मां ना बन पाएगी. तूने सुना नही था कि महात्माजी ने क्या कहा था कि इस उपाय से हमें संतान प्राप्ति अवश्य होगी.” जेठानी ने कहा.
“नही दीदी, भले ही मुझे संतान प्राप्ति हो या न हो, पर मैं किसी भी बच्चे के साथ ऐसा नहीं कर सकती.” देवरानी ने उत्तर दिया.
“हुंह! जैसी तुम्हारी मर्जी.” कहकर उसकी जेठानी चली गई.
इधर देवरानी बच्चे को चुप करा कर महिला के आने पर उसे सौंप कर घर आई.
शाम होने पर दोनोें महात्मा के पास पहुंची और प्रणाम किया. महात्मा ने दोनों से पूछा, “क्या तुम दोनों बालक के बाल लेकर आई हो?”
यह सुनकर जेठानी ने तुरंत अपने हाथ आगे किए और बोली, “जी महात्माजी आपके कहे अनुसार मैं बालक के बाल ले आई हूं.”
फिर महात्मा ने देवरानी से पूछा, तो वह बोली, “मुझसे यह काम ना हो सका. मैं अपने स्वार्थ के लिए किसी अबोध बालक के बाल नहीं उखाड़ सकती. जब जेठानीजी बच्चे के बाल उखाड़ रही थीं, तो उसे कितनी पीड़ा हो रही थी, जो मुझसे देखी नहीं गई. अब चाहे मुझे संतान सुख की प्राप्ति हो या ना हो पर मैं यह घृणित कार्य नहीं कर सकती.”
महात्माजी मुस्कुराते हुए बोले, “यह तो तुम दोनों की परीक्षा थी, जिसमें तुम सफल हुई.”
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“जिस स्त्री में हर बच्चे के प्रति ममता और वात्सलय हो, जो अपने स्वार्थ के लिए किसी और का अहित ना करे. मेरा आशीर्वाद उसके साथ है. भगवान तुम्हारी मनोकामना जल्द पूरी करेंगे.”
वहीं जेठानी अपना सा मुंह लेकर रह गई.
– रिंकी श्रीवास्तव
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