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कहानी- दो जोड़ी मुस्कान… (Short Story- Do Jodi Muskan…)

पूनम ठिठक कर उसकी दंतुरित मुस्कान को देखती रही. कल बेवजह खिलौने ख़रीदने का मलाल मन से दूर हो गया. उसे लगा मात्र दो सौ बीस रुपए में उसे दो जोड़ी अनमोल मुस्कान मिल गई हैं और पूनम के चेहरे पर भी परम संतुष्टि की मुस्कान खिल उठी.

पांच घंटे मेले में जी भर कर घूमने के बाद पूनम अपनी सात साल की बेटी का हाथ थामे रात के नौ बजे घर जाने के लिए मेले से बाहर निकली. आज तो उसने जम कर ख़रीददारी की थी. अपने लिए भी और बेटी के लिए भी. हाथ में सामान से भरी ढेर सारी थैलियां झूल रही थीं
बेटी जूही भी बहुत ख़ुश थी. उसके लिए खिलौने, कपड़े, कंगन-चूड़ियां जाने क्या-क्या लिया था मां ने. तरह-तरह की चीज़ें खाईं, ख़ूब झूले झुले.
मेले से बाहर निकलते ही दरवाज़े के पास ज़मीन पर कपड़ा बिछाए एक आठ-दस बरस का लड़का छोटे-छोटे सस्ते खिलौने बेच रहा था.
“माताजी, कुछ ले लीजिए घर में मां बीमार है सुबह से कुछ खाया भी नहीं है. ये खरगोश ले लीजिए बस बीस रुपए का है, देखिए लाइट भी जलती है इसमें.” लड़का दो छोटे से प्लास्टिक के खरगोश हथेली पर रखकर दिखाने लगा.
जूही वहां अचानक ठिठक गई, “मां, देखो खरगोश में लाइट जल रही है. कितना चमक रहा है, ले लो न.”


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“अरे अभी तुम्हे इतने सुंदर महंगे खिलौने ले दिए न. इन बेकार सस्ते खिलौनों का क्या करोगी. दो दिन में टूट जाएंगे, चलो.” पूनम उसका हाथ खींचकर आगे बढ़ने लगी.
“ले लीजिए न माताजी. भले ही खिलौने सस्ते हैं, लेकिन मेरे और मेरी मां के लिए रोटी कमा देंगे. बीस-पचास रुपए आपके लिए तो ज़्यादा नहीं होते.” लड़के की आंखों में आंसू भर आए. खरगोश पकड़े हुए हाथ जुड़ कर मिन्नत करने लगे.
“मां, बेचारा रो रहा है. बहुत गरीब लगता है. ले लो न. अंदर तुमने इतने सारे रुपए ख़र्च किए. थोड़े इसको भी दे दो. ये भी तो अपना सामान बेचने की उम्मीद में सुबह से बैठा होगा.” नन्ही जूही अपनी समझ से बोली. उसका बाल मन लड़के के आंसू देखकर विचलित हो रहा था.
“पर तुम इनका करोगी क्या? पहले से ही इतने खिलौने हैं.” पूनम ने टालना चाहा.
“भूरी बाई के बेटे को दे देना. वो भी ख़ुश हो जाएगा. रोज़ मेरे खिलौनों को टुकुर-टुकुर देखता रहता है. इसे पैसे मिल जाएंगे, उसे खिलौने मिल जाएंगे.” जूही ने बड़ा आसान सा हल सुझा दिया.
“ले लो माताजी मेरी बीमार मां रात में रोटी खा लेगी.” लड़का हाथ जोड़कर पैरों में झुकने लगा.
“ठीक है, ठीक है दो-चार खिलौने दे‌ दो.” पूनम ने पीछा छुड़ाते हुए कहा.
जूही ने उत्साहित होते हुए खरगोश, बेट-बल्ला, कुत्ता, गुड़िया उठा लिए. दो सौ बीस रुपए जब लड़के के हाथ में पूनम ने थमाए, तो लड़के की आंखों में आंसू और चेहरे पर कृतज्ञता की बड़ी सी मुस्कान थी.
दूसरे दिन जूही भूरी बाई की राह देखती रही. दस बजे भूरी अपने बेटे को लेकर आई. घर पर कोई न होने से वह अपने ढाई साल के बेटे को काम पर लेकर आती थी. जूही ने कल ख़रीदे खिलौनों की थैली उसे पकड़ा दी. बच्चे ने थैली में खिलौने देखे, तो उसके चेहरे पर ख़ुशियों के दीपक झिलमिलाने लगे. उसकी ख़ुशी देखकर जूही भी बहुत ख़ुश थी.


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पूनम ठिठक कर उसकी दंतुरित मुस्कान को देखती रही. कल बेवजह खिलौने ख़रीदने का मलाल मन से दूर हो गया. उसे लगा मात्र दो सौ बीस रुपए में उसे दो जोड़ी अनमोल मुस्कान मिल गई हैं और पूनम के चेहरे पर भी परम संतुष्टि की मुस्कान खिल उठी.

विनीता राहुरीकर

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