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कहानी- एहसास तुम्हारे प्यार का (Short Story- Ehsas Tumhare Pyar Ka)

उसने घड़ी की तरफ़ देखा. रात के दो बज रहे थे. कोई बात नहीं अगर गौतम उसे प्यार करता है, तो समझेगा भी. उसने गौतम का नंबर मिलाया. उधर से गौतम की नींद से भरी आवाज़ सुनाई दी, “हैलो… मैडम, इतनी रात को मैं कैसे याद आ गया?” 
“गौतम, आई लव यू.” वह जल्दी से एक सांस में ही बोल गई. थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद एक ज़ोरदार ठहाका गूंज उठा और नेहा पूरी तरह नर्वस हो पसीने-पसीने हो गई.

खिड़की के परदों के अगल-बगल से घुसपैठ करती सूरज की किरणों के कारण नेहा की नींद उचटने लगी थी. वह थोड़ी देर और सोना चाहती थी, पर एक बार नींद उचट जाए, तो फिर सोना मुश्किल हो जाता है. नेहा ने चुपचाप लेटे-लेटे घड़ी की तरफ़ नज़रें दौड़ाईं, तो दस बज चुके थे. उस दिन रविवार था और छुट्टी की सुबह वैसे भी आलसभरी होती है. वह उठकर एक कप कॉफी बना लाई. यह कॉफी ही तो उसके रसहीन जीवन में बचा एकमात्र रस था. वह कॉफी लेकर बालकनी में आ खड़ी हुई.
रूम से बाहर निकलते ही 14वीं मंज़िल के फ्लैट के सामने फैली कॉलोनी की सड़कों पर भागती गाड़ियां और लोग नज़र आने लगे. बाहर के शोर-शराबे तो उस तक नहीं पहुंच पाते थे, फिर भी उनकी गति उसे जीवित होने का एहसास ज़रूर करा देती थी. तभी कॉलबेल की आवाज़ से उसकी तंद्रा भंग हुई. कमला होगी, वह  छुट्टी के दिन देर से आती थी. उसने दरवाज़ा खोला, तो कमला अंदर आकर ख़ामोशी से अपने काम में जुट गई. हल्के-फुल्के बर्तनों का शोर और वॉशिंग मशीन की खटपट, कभी-कभी आसपास फैली ख़ामोशी को तोड़ रही थी. कमला ने अपना काम समाप्त कर दोपहर का खाना बनाकर डायनिंग टेबल पर रख दिया. फिर दरवाज़ा बंद करने के लिए उसे बोलकर चली  गई. कमला के जाने के बाद वह सीधे बाथरूम में घुसी. नहाने के बाद फ्रेश होकर बाहर निकली, तो मन काफ़ी हल्का हो गया था. नाश्ता करके वह फिर बिस्तर पर आ लेटी. पास पड़ी पत्रिका को उलटती-पलटती रही. फिर लैपटॉप निकालकर ऑफिस के कुछ अधूरे काम पूरे करके खाना खाया ओैर एक बार फिर बालकनी में आ बैठी. समय से आकर कमला रात का खाना बनाकर चली गई.
माहौल में फिर वही एकाकीपन और ख़ामोशी पसर गई. तभी उस ख़ामोशी को चीरती मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उसकी मम्मी का फोन था. वही पुराना राग कि जल्दी शादी के बारे में सोचो. फिर उन लड़कों की जानकारियां देने लगीं, जो उनकी गुड लिस्ट में थे. नेहा ने हां-हूं कर अपना मोबाइल रख दिया. मोबाइल रखते ही उसे याद आया कि कल ऑफिस जाना है. जल्दी नहीं सोई, तो समय पर ऑफिस नहीं पहुंच पाएगी. मन में उपजे अवसाद को झटक वह सोने की कोशिश करने लगी.

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दूसरे दिन ऑफिस में घुसते ही, गुडमॉर्निंग की आवाज़ ने उसे चौंका दिया. नज़रें घुमाई तो गौतम था. पिछले हफ़्ते ही कानपुर से ट्रांसफर होकर आया था. जब से इस ऑफिस को जॉइन किया था, तब से किसी न किसी बात की जानकारी हासिल करने के बहाने उसके पास चला आता. शायद नेहा का सबसे कटे-कटे रहकर अपने काम में मशगूल रहना उसे खटकता था, पर चाहकर भी नेहा उससे खुलकर बातें नहीं कर पाती थी. हालांकि वह चाहती थी कि वह भी बाहर के शोर-शराबे का हिस्सा बने, ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाए और सबसे तर्क-वितर्क करे और अपने अंदर जमा अकुलाहट और छटपटाहट को बाहर आने दे, पर स्वभाव के अनुरूप बात होंठों तक आकर रुक जाती थी. 
उसे लगता कि उसके मन की संवेदनशीलता, उसके दुख-दर्द और प्यार की भावना को मन की परतों में कहीं गहरे चुन दिया गया था, जिसे वह महसूस तो कर पाती थी, पर प्रकट नहीं कर पाती थी. उस दिन घर लौटी, तो उसे याद आया कि आज उसका बर्थडे था. देर तक इंतज़ार करती रही, पर मम्मी-पापा में से किसी का फोन नहीं आया. दोनों कहीं किसी पार्टी में व्यस्त होंगे, उसकी आंखें भर आईं. तभी कॉलबेल बजी. दरवाज़ा खोला, तो अचंभित रह गई. सामने गौतम खड़ा था, हाथों में केक थामे हुए. इसे कैसे पता चला कि आज उसका बर्थडे है? फिर भी दरवाज़े से हटकर उसे अंदर आने के लिए जगह बना दी. वह इत्मीनान से अंदर आकर केक को टेबल पर रखते हुए बोला, “बैठने के लिए नहीं कहोगी?”
नेहा का दिल चाहा कि उससे कहे कि अब तक सब कुछ क्या तुम मेरी इजाज़त से कर रहे थे, जो अब तुम्हें इजाज़त की ज़रूरत पड़ गई, पर मुस्कुराकर उसे बैठने के लिए कहना ही पड़ा. फिर नेहा ने केक काटने की औपचारिकता निभाई और दोनों ने मिलकर केक खाया. अब तक दोनों के बीच की झिझक भी काफ़ी कम हो गई थी. देर तक वे इधर-उधर की बातें करते रहे. थोड़ी देर बाद गौतम चला गया, पर नेहा की सोच बहुत देर तक गौतम के आसपास ही घूमती रही. उसे लगा कि कुछ तो दम है गौतम में, क्यों उसके मन में गौतम के लिए सम्मोहन बढ़ने लगा था.
बरसों से दिल के अंदर छुपे निश्छल प्यार की चाह की संभावना शायद उसे गौतम में दिखने लगी थी. वह बिस्तर पर आ लेटी, पर आज उसका मन कहीं ठौर ही नहीं पा रहा था. मन के झरोखे से दादी मां का प्यारभरा चेहरा उसके दिलो-दिमाग़ पर दस्तक देने लगा था. कितना सुकून मिलता था उसे दादी मां की गोद में.
जब भी दादी मां गांव से आतीं मम्मी के परायों जैसे व्यवहार से दुखी भले ही उनके मुख पर अनाधिकार का बोझ नज़र आता, पर उनका शालीन व्यवहार और शीतल ममत्वभरी दृष्टि उनके प्रति श्रद्धा और आत्मीयता की भावना जगाता था. उन्हें भी अपने बेटे और पोती से बेहद प्यार था, फिर भी उनकी ख़ुशी और घर की सुख-शांति के लिए वे गांव के एक मामूली-से मकान में रहती थीं. उसके पापा एक प्रशासानिक अधिकारी थे और मां एक कॉलेज में पढ़ाती थीं. नेहा उन दोनों की इकलौती संतान थी.
उसके पापा एक अतिसाधारण परिवार से थे. उन्होंने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था. बहुत कठिनाइयों का सामना करके उनकी मां ने उन्हें पढ़ाया था. नेहा की मम्मी ने उच्च पद पर देखकर उनसे शादी ज़रूर की थी, पर पति के विपन्न और गंवई परिवार को कभी अपना नहीं पाई थीं, जिसकी वजह से उसके पापा चाहकर भी अपनी मां तक को भी अपने साथ नहीं रख पाते थे. उसने जब से होश संभाला, यही देखा था कि मम्मी हमेशा पापा से असंतुष्ट रहतीं. एक तो पुरुष वर्चस्व को स्वीकारना उनके स्वभाव में नहीं था. दूसरे, उन्हें लगता कि पापा के अतिसाधारण परिवार के साथ उनके उच्चवर्गीय परिवार का कोई मेल ही नहीं.
नेहा को संभालने के लिए उन्होंने एक आया को रखा था, पर उसकी मां दादी मां को अपने घर में टिकने नहीं देती थीं. जबकि नेहा, दादी मां के रहने से अपने को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती और ज़्यादा ख़ुश रहती, पर जब भी दादी मां आतीं एक हफ़्ते में ही, उसकी मम्मी किसी न किसी बहाने से उन्हें गांव भेज देतीं. वह अंदर से तिलमिला उठती. चाहती तो थी कि मम्मी के इस फ़ैसले के विरुद्ध आवाज़ उठाए, पर उसके मन का विरोध मन में ही घुटकर रह जाता. एक डर, तनाव और असुरक्षा की भावना हमेशा उसके दिलो-दिमाग़ में बनी रहती.
जड़ता से भरी घुटन, उसके अंदर एक अनजानी-सी छटपटाहट भर रही थी. हालात से मर्माहत और टूटी हुई नेहा ने एक ख़ामोशी का आवरण ओढ़ लिया था. धीरे-धीरे वही ख़ामोशी उसके वजूद का हिस्सा बन गया. अचानक उसे लगा कि उसकी आंखें भीगने लगी हैं. वह अपनी हथेलियों से अपनी आंखें सुखाती हुई सोने की कोशिश करने लगी.
दूसरे दिन ऑफिस गई, तो सुबह से ही बारिश हो रही थी. नेहा को ऑफिस से लौटने के लिए कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी. गौतम ने लिफ्ट देने की पेशकश की, तो वह झट से मान गई. पहले गौतम का घर पड़ता था, फिर नेहा का. रास्ते में गौतम ने अपने घर के सामने कार रोकते हुए उसे घर में चलकर एक कप चाय पीने के लिए आमंत्रित किया, तो वह मना न कर सकी.
गौतम के पापा नहीं थे. घर में उसकी मां गायत्री देवी और एक छोटी बहन गौरी थी. दोनों ने उसका स्वागत बड़े प्यार से किया. घर का वातावरण तो साधारण ही था, पर उसकी सीधी-सादी और धीर-गंभीर मां के चेहरे पर झलकनेवाले प्यार और ममता में ऐसा आकर्षण था कि नेहा को वह अत्यंत आत्मीय लगीं. चाय पीने के बाद वह चलने लगी, तो बड़े प्यार से गायत्रीजी ने गौतम को घर तक छोड़ आने की हिदायत देकर भेजा. उनका निश्छल प्यार और अपनापन देखकर उसका मन भीग उठा. न जाने क्यूं दादी मां की यादें ताज़ा होने लगीं, तभी तेज़ बारिश के कारण गाड़ी ने एक ज़ोर का हिचकोला खाया और वह गौतम की बांहों में जा गिरी.
गौतम उसे मुस्कानभरी नज़रों से देखते हुए बोला, “मैडम, सीट बेल्ट लगाओ. बारिश का फ़ायदा मत उठाओ. कहीं किसी ट्रैफिक पुलिसवाले की नज़र पड़ गई कि आपने बेल्ट नहीं लगाई है, तो हम दोनों की रात हवालात में गुज़रेगी.” उसकी बातों से नेहा तो जैसे पानी-पानी हो गई.
“नहीं… वो गाड़ी के हिचकोले…” उसकी ज़बान न जाने क्यों लड़खड़ा गई. गौतम ने प्यारभरी मुस्कान से नेहा को देखा, तो वह और भी नर्वस हो गई. बारिश तेज़ होती जा रही थी. गौतम की सतर्क नज़रें अब सड़क पर जम-सी गई थीं और नेहा की चोर नज़रें गौतम के चेहरे पर. एक अनजानी-सी अनुभूति उसे मोहित करने लगी थी. तभी गौतम द्वारा अपनी चोरी पकड़े जाने का ख़्याल मन में आते ही उसके गाल सुर्ख हो गए और उसने नज़रें घुमा लीं, पर दिल चाह रहा था कि वे दोनों उम्रभर ऐसे ही चलते रहें, लेकिन मंजिल आ ही गई.


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उसके फ्लैट के कैंपस में काफ़ी पानी भर गया था. कहीं ऐसा न हो कि नेहा पानी में चलते हुए गिर जाए. यह सोचकर गौतम बेझिझक उसकी बांह पकड़कर उसे लिफ्ट तक छोड़ आया.
अपने फ्लैट में आकर कपड़े बदलकर सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. गौतम की छुअन में जाने ऐसा क्या था कि वह देर तक प्यार से अपनी बांह सहलाती रही, जैसे सारे जहां की ख़ुशियां उसके दामन में भर गई हों. तभी अचानक उसकी सारी सोच पर जैसे लगाम लग गया, जब उसे याद आया कि उसकी मम्मी इस रिश्ते के लिए कभी इजाज़त नहीं देंगी. उन्होंने अब तक उसके दिमाग़ में भी यही डाला था कि उसके पापा की अच्छी नौकरी के कारण वह एक ग़लत परिवार में फंस गई, जिसका समाज में कोई स्टेटस ही नहीं था. वह गौतम के लिए भी वैसा ही सोचेंगी, पर नेहा क्या करे? उसका मन ख़ुद-ब-ख़ुद एक अनजाने, अनकहे प्यार की डोर में बंधता चला जा रहा था. एक दिन ऑफिस स्टाफ नमन की शादी में ऑफिस के सभी लोग आमंत्रित थे. नेहा वहां पहुंची, तो कोई परिचित चेहरा नज़र नहीं आ रहा था, तभी उसकी नज़र गौतम पर पड़ी. वह झट से उसके पास पहुंचकर बोली, “बहुत देर कर दी आने में.”
“क्यों, मुझे मिस कर रही थी? वैसे आज साड़ी में बहुत सुंदर लग रही हो.” गौतम के शरारतभरे जवाब ने उसे शर्मसार कर दिया. वह इधर-उधर देखती हुई अपने मन की बात छुपाने के लिए बोली, “ऑफिस के और लोग दिख नहीं रहे हैं…” तभी आसपास जमा भीड़ में से किसी ने उसे ज़ोर का धक्का दिया और वह सीधे गौतम की बांहों में जा गिरी. दोनों की नज़रें मिलीं और उसी पल जैसे दोनों के दिल जुड़ गए. वह चाहकर भी उसके आलिंगन से अपने को मुक्त नहीं कर पा रही थी. दिल चाह रहा था कि समय रुक जाए और वह यूं ही उसकी बांहों में पड़ी रहे. न अपना होश था, न आसपास की भीड़ का.
जीवन में पहली बार वो किसी के लिए ऐसा महसूस कर रही थी. पर लोगों की बेधती नज़रें और व्यंग्यात्मक मुस्कानों ने जल्द ही उसे होश में ला दिया और वह ख़ुद को संभालती हुई गौतम से अलग जा खड़ी हुई. देखते-देखते ऑफिस के और लोग भी आ गए. फिर तो हंसी-मज़ाक, खाने और बातों का सिलसिला शुरू हो गया. अंत में जब सब घर चलने को तैयार हो गए, तो वह गौतम से बोली कि उसे घर तक छोड़ दे.
तभी नैना को जैसे कुछ याद आ गया. वह अपने बैग से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर गौतम को देते हुए बोली, “गौतम, तुम्हारी शादी के लिए आंटी ने जिस लड़की की फोटो और कुंडली मंगवाई थी, इस लिफ़ा़फे में है, उन्हें दे देना और तुम भी देख लेना. एक बात और,  इन लोगों को जल्दी जवाब भी चाहिए, तो एक-दो दिन में अपना जवाब मुझे बता देना.” 

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नैना तो चली गई, पर उसे गहरा झटका दे गई. अब तक जो वह सोच-समझ और महसूस कर रही थी, क्या वह सब झूठ था?  क्या गौतम उसके विषय में गंभीर नहीं है? तभी गौतम ने उसे चलने के लिए कहा, तो वह यंत्रचालित-सी उसके बगल में जा बैठी. रास्तेभर दोनों चुप ही रहे. घर आकर कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेटी, तो उसके मन में बवंडर-सा मचा था. कभी  मम्मी के आग्नेय नेत्रों का आतंक, तो कभी गौतम का आकर्षण, उसका प्यारभरा चेहरा. फैसला तो उसे लेना ही पड़ेगा. उसकी मम्मी ने अपना जीवन हमेशा अपने हिसाब से जिया. न पापा की ख़ुुशियों का ध्यान रखा, न ही दादी के सम्मान का. उन्होंने हमेशा उसे यही समझाया कि अपनी ख़ुशी ही आदमी के लिए सर्वोपरि होती है. रिश्तों में त्याग की बातें आडंबर के अलावा कुछ नहीं हैं, फिर मम्मी की ख़ुशी के लिए वह क्यों त्याग करे?
मन के आक्रोश से अब कालिमा छंटने लगी थी. ऐसा न हो कि यही सब सोचने-समझने में गौतम को ही खो दे. कभी-कभी किसी के जीवन में कोई संबंध अचानक इतना आत्मीय हो जाता है कि उसे खो देने का भय बर्दाश्त करना भी मुश्किल हो जाता है. उसने घड़ी की तरफ़ देखा. रात के दो बज रहे थे. कोई बात नहीं अगर गौतम उसे प्यार करता है, तो समझेगा भी. उसने गौतम का नंबर मिलाया. उधर से गौतम की नींद से भरी आवाज़ सुनाई दी, “हैलो… मैडम, इतनी रात को मैं कैसे याद आ गया?” “गौतम, आई लव यू.” वह जल्दी से एक सांस में ही बोल गई. थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद एक ज़ोरदार ठहाका गूंज उठा और नेहा पूरी तरह नर्वस हो पसीने-पसीने हो गई.
गौतम जैसे बिना देखे ही उसकी स्थिति समझ गया. “घबराओ मत. मैं भी तो इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था, जब तुम अपने दिल की बात मुझसे कहो. अब सो जाओ. कल मिलते हैं.” “ज़रूर…” नेहा ने इत्मीनान की एक लंबी सांस ली. ज़िंदगी में शायद पहली बार उसने सही समय पर अपने लिए सही स्टैंड लिया था.

रीता कुमारी




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