एक बहुत ख़ूबसूरत शहज़ादा था. एक तो राजकुमार और फिर ख़ूबसूरत. विवाह योग्य उम्र होने पर माता-पिता यानी राजा और रानी ने उस पर विवाह करने का दबाव डाला. उन्होंने राज्य भर की सुन्दर और योग्य लड़कियों के तस्वीरों को इकट्ठा कर राजकुमार के सामने रख दीं.
परन्तु राजकुमार अपने जीवनसाथी में सौंदर्य से अधिक ईमानदारी की कामना रखता था.
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उसने उन युवतियों को बुलाकर उनके सामने एक शर्त रखी. सब के हाथ में कुछ बीज रखते हुए उसने कहा, “तुम इन बीजों से गुलाब के पौधे लगाओ. हम ठीक एक वर्ष पश्चात यहीं मिलेंगे. जिसका गुलाब सबसे बड़ा, सबसे ख़ूबसूरत होगा मैं उसी से विवाह करूंगा.”
वर्ष बीत गया. सब युवतियां उसी जगह एकत्रित हुईं. उन के हाथों में एक से बढ़कर एक सुन्दर गुलाब थे- अनेक रंगों के. कुछ तो गुच्छे भर भर गुलाब ले आई थीं.
बारी-बारी उन सब ने राजकुमार को अपने-अपने गुलाब भेंट किए.
पर एक युवती चुपचाप एक किनारे खड़ी रही खाली हाथ.
राजकुमार ने पास जाकर पूछा, “तुम्हारा गुलाब कहां है? तुम क्यों नहीं लाई अपना गुलाब?”
“आपने जो बीज दिए थे वह तो गुलाब के थे ही नहीं. तो मैं कहां से लाती गुलाब?” युवती ने विश्वासपूर्वक उत्तर दिया.
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राजकुमार ने प्रसन्न होकर कहा, “यही युवती सबसे ईमानदार है. जब मैंने किसी को गुलाब के फूलों के बीज दिए ही नहीं, तो उनसे तुम सब के गुलाब कैसे निकल आए?”
निश्चय ही राजकुमार ने उसी राजकुमारी से विवाह किया.
– उषा वधवा
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