Short Stories

कहानी- इश्क़ तुम्ही से… (Short Story- Ishq Tumhi Se…)

डॉ. गौरव यादव

“आपने मुझे मिस किया?” पूर्वी ने मेरी तरफ़ देखकर पूछा.
“नहीं, ऑफिस से टाइम ही नहीं मिला. और तुमने?” मैंने सच छिपाते हुए कहा.
“मैंने तो आपको बहुत मिस किया. जब-जब मम्मी बाल बांधती थी, तो आपकी याद आ जाती थी.”

बारिश का मौसम था. आज दिनभर ही बारिश होती रही. मैं अपना काम ख़त्म करके घर को निकल पड़ा, जिसमें मैं अकेला ही रहता हूं.
घर पहुंचते-पहुंचते सात बज चुके थे. फ्रेश होकर कॉफी बनाई और टीवी खोलकर बैठ गया. नौ बजे तक डिनर करूंगा और अगले दिन इसी रूटीन को फॉलो करने के लिए शरीर को बिस्तर को सौप दूंगा.
बारिश रात होने के साथ तेज़ हो गई. मैंने एसी बंद करके खिड़की के परदे खोल दिए. अचानक बिजली चमकती, अंधेरे कमरे में उजाला हो जाता और फिर रोशनी खिड़की तक सीमित रह जाती.
मेरी आंख लगे अभी कुछ घंटे ही बीते थे कि किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी. नाइट बल्ब बुझा पड़ा था. शायद पावर कट हुआ था. हाथ में मोबाइल टॉर्च थामे मै लिविंग रूम में आ गया और पूछा, “कौन?”
“मैं पाखी, आपके सामने वाले फ्लैट में रहती हूं. थोड़ी हेल्प चाहिए.”
जवाब आया.
मैंने टाइम देखा. रात के ढाई बज रहे थे. दरवाज़ा खोल टॉर्च लड़की के चेहरे पर मारते हुए मैंने कहा, “बोलो?”
“मेरी फे्रंड बाथरूम में गिर गई है, उसे हॉस्पिटल लेकर जाना है. पावर कट हुआ है, इसलिए लिफ्ट नहीं चल रही. मैं गार्ड के पास गई थी, पर वो शराब के नशे में था. हम हॉस्पिटल चले जाएंगे. आप बस नीचे तक जाने में हेल्प कर दीजिए.” पाखी ने कहा.
कुछ पल मैं वहीं खड़ा विचार करता रहा और फिर कहा, “ठीक है.” और उसके साथ चल पड़ा.
हम कमरे में पहुंचे. कमरे में अंधेरा था. एक लड़की कुर्सी पर बैठी दर्द को सहने की कोशिश कर रही थी.
“किस पैर में लगी है?” मैंने उसके क़रीब जाकर पूछा.
“दाएं पैर में.” उसने धीरे से जवाब दिया.
“ठीक है, हॉस्पिटल चलते हैं.” कहकर मैं उसकी बाईं ओर आ गया. उसने अपना हाथ मेरी गर्दन में डाला और कुर्सी से उठ गई. हम सहारे से सीढ़ियों की तरफ़ चल पड़े. पाखी एक हाथ से टॉर्च थामे हुए थी और दूसरे हाथ से अपनी सहेली को.
हम सीढ़ियों के पास पहुंचे. सीढ़ियां ऐसी नहीं थीं कि एक साथ तीन लोग उतर सकें.
“देखो यहां से इस तरह उतर पाना संभव नहीं है. अंधेरा भी है, तो हममें से किसी एक को तुम्हें गोद में उठाना होगा.” मैंने सुझाव दिया, लेकिन दोनों में से किसी का कोई जवाब नहीं आया.
“यार मुझे ग़लत मत समझना, लेकिन मुझे इसके सिवाय और कोई तरीक़ा समझ नहीं आ रहा है, बाकी तुम लोग कुछ और आसान बता सको, तो मैं मदद कर सकता हूं.” मैंने उन दोनों को ख़ामोश देखकर कहा.

यह भी पढ़ें: प्यार में क्या चाहते हैं स्री-पुरुष? (Love Life: What Men Desire, What Women Desire)

“नहीं… नहीं… कोई प्रॉब्लम नहीं है. आपको जैसा सही लगे आप करिए, बस हम हॉस्पिटल पहुंच जाएं.” पाखी ने जवाब दिया और कुछ सीढ़ियां आगे बढ़कर टॉर्च दिखाने लगी. मैंने झुककर उस लड़की को गोद में उठा लिया. उसका वज़न किसी बच्चे की तरह था. उसकी कमर एकदम पतली थी. मेरी उंगलियां उसके ठंडे शरीर पर धंसी हुई थीं. उसका जिस्म इतना नरम था कि मुझे लग रहा था मेरे सख़्त हाथों से कहीं उसे और भी चोट न लग जाए.
नीचे देखते हुए मैं सीढ़ियां उतरने लगा. उसके बाल रह-रहकर मेरे चेहरे पर आ जाते, मैं उन्हें फूंककर दूर करने की कोशिश करता और वो लड़की ‘सॉरी’ कहते हुए अपनी गर्दन झटककर उन्हें मेरे चेहरे से दूर हटाने की.
जल्द ही हम नीचे आ गए.
“पूर्वी, तू रुक मैं स्कूटर लेकर आती हूं.” पाखी ने नीचे आते ही कहा.
“यार, चेयर पर तो बैठा नहीं जा रहा था स्कूटर पर कैसे बैठूंगी.”
“देखो तुम लोग परेशान मत हो, मैं कार से तुम्हें हॉस्पिटल छोड़ देता हूं, वैसे भी इतनी रात में कैसे जाओगे.” उन दोनों की बात सुनकर मैंने कहा था.
“नहीं हम चले जाएंगे.” पूर्वी ने जवाब दिया.
“अच्छा, खड़े तो तुमसे हुआ नहीं जा रहा, स्कूटर पर चली जाओगी?” कहकर मैं गाड़ी निकाल लाया था और फिर हम हॉस्पिटल में थे.
कुछ देर बाद पता चला कि पूर्वी के राइट लेग और राइट हैंड दोनों पर फ्रैक्चर था. पूर्वी को महीनेभर के लिए प्लास्टर चढ़ाया जाना था. घर वापस आते-आते हमें आसमान पर लालिमा दिखने लगी थी.
सुबह नींद देर से खुली. मैं नाश्ता किए बगैर ही ऑफिस के लिए निकल पड़ा.
जाते-जाते एक नज़र सामने फ्लैट पर डाली, दरवाज़ा बंद था. शायद दोनों लड़कियां अब तक सो रही थीं.
सारा दिन ऑफिस में ऊंघता रहा. शाम वापस आकर कपड़े बदले और कॉफी बनाने लगा. फिर जाने क्या सूझा कि एक और कप निकाल उसमें भी कॉफी डाली. फ्लैट लॉक किया और दूसरी तरफ़ के फ्लैट के बाहर था. दरवाज़ा खुला हुआ था. मैंने दरवाज़े पर नॉक किया.
“कौन?” आवाज़ आई.
“अथर्व. कल रात वाला.” मैंने ज़ोर से कहा.
“अंदर आ जाइए.” इस बार उसने मुझे पहचान लिया था.
पूर्वी लिविंग रूम में फ़र्श पर बिछे गद्दे में दीवार से टिककर बैठी थी.
“हाय.” मुझे देखते ही उसने उठने की कोशिश की.
“पाखी घर पर नहीं है क्या?” मैंने कॉफी का कप उसकी ओर बढ़ाकर पूछा.
“नहीं वो बाहर गई है.” पूर्वी ने कप थाम लिया था.
हम बातें करने लगे. उसने बताया कि वो एक कंपनी में जॉब करती है. उसने ये भी बताया कि वो उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर से 60 किलोमीटर दूर एक गांव से है.
हम बातें कर ही रहे थे कि पाखी आ गई. वो भी हमारे साथ ही बैठ गई.
मैं वहीं था, जब मैंने उन दोनों के चेहरे पर कुछ उलझन के भाव देखे और पूछ बैठा, “कोई परेशानी है क्या?”
“छोटी सी. बात ये है कि पूर्वी को घर जाना है, क्योंकि यहां अकेले 30 दिन कैसे रहेगी. मैं छुट्टी भी लूंगी, तो ज़्यादा से ज़्यादा तीन दिन और फिर मेरे बगैर इसका यहां रहना संभव नहीं. लेकिन किसी भी ट्रेन में रिजर्वेशन मिल नहीं रहा है.” पाखी ने बताया.
उस वक़्त उनकी समस्या का हल मेरे पास भी नहीं था.
अगले दिन ऑफिस से आकर एक बार फिर मैं पूर्वी के फ्लैट पर था. पाखी आज भी नहीं थी.
“वैसे कुछ हुआ तुम्हारे घर जाने का?” मैंने कॉफी पीते हुए सवाल किया.
“कुछ नहीं, तत्काल में भी देखा, पर मिला नहीं और अब स़िर्फ एक वीक बाद की जो सीट है, उसी में टिकट कराया है. एक वीक अकेले रह लूंगी, लेकिन कल से पाखी का ऑफिस जाना ज़रूरी है.”
“वैसे कल से मेरी एक वीक की छुट्टियां शुरू हो रही हैं. तुम कहो तो मैं पाखी की जगह आ जाया करूंगा.” मैंने कल शाम ही घर जाते सोच लिया था कि मैं ऑफिस से छुट्टी लूंगा और पूर्वी के साथ रहूंगा.
“नहीं, छुट्टी आप ने अपनी ख़ातिर ली है. मैं आपकी और हेल्प नहीं ले सकती.” उसने कहा ही था कि पाखी आ गई.
“किसको छुट्टी मिल रही है?” उसने पूर्वी की आवाज़ सुन ली थी. मैंने उसे अपनी
बात बताई.
“सच, ऐसा हो सकता है क्या?” मेरी छुट्टी वाली नकली कहानी सुन पाखी ने ख़ुश होते हुए कहा.
“हां, अगर पूर्वी को कोई परेशानी न हो तो.”
“पूर्वी को क्या परेशानी होगी.”
“नहीं पाखी, अथर्व ने छुट्टी अपने लिए ली है.” पूर्वी ने पाखी को टोकते हुए जवाब दिया.

यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: अभी तक नहीं समझी… (Love Story- Abhi Tak Nahi Samjhi…)

“अरे पर उन्होंने कहा न कि उन्हें परेशानी नहीं है और फिर कुछ दिन ऑफिस जाकर मैं एक-दो दिन की छुट्टी ले लूंगी और अथर्व फ्री हो जाएंगे.”
पूर्वी अब भी मेरे ़फैसले से ख़ुुश नहीं थी, लेकिन मैं उसे कैसा समझाता कि मैंने ये छुट्टी स़िर्फ उसकी ख़ातिर ली थी.
अगले दिन सुबह मैं किचन में था जब पाखी आई.
“अथर्व मैं ऑफिस जा रही हूं, आप प्लीज़ एक-दो बार पूर्वी को देख लेना.” उसने बाहर से ही आवाज़ दी और चली गई.
वो पूरा दिन मैं पूर्वी के साथ ही रहा. हमने साथ ही लंच किया. शाम फ्लैट पर लौट आया. अगले दो दिन इसी तरह बीत गए. सुबह पाखी के जाते ही मैं पूर्वी के पास चला जाता और शाम तक वहीं रहता. वक़्त कैसे बीत जाता, मालूम ही नहीं पड़ता. दो दिनों में साथ रहकर मैं और पूर्वी अब क़रीब आ गए थे.
तीसरे दिन ऑफिस से आते ही पाखी ने एक ख़बर दी जिसे सुनते ही पूर्वी उछल पड़ी थी और साथ ही मैं भी. उसने कहा, “पूर्वी मुझे ऑफिस के ग्रुप के साथ दो दिन के लिए बैंग्लुरू जाना होगा.”
“क्या, कब, और मैं कैसे रहूंगी तेरे बगैर?”
“कल ही जाना है, स़िर्फ दो दिन की बात है. अगले दिन मैं आ जाऊंगी.”
“पाखी, लेकिन मैं कैसे रहूंगी अकेले.”
“यार मेरे मन से थोड़ी जा रहे हैं, और अथर्व तो दिनभर तेरे साथ ही रहते हैं, बस रात की बात है थोड़ा मैनेज कर लेना. फिर मैं आ जाऊंगी. अथर्व प्लीज़ एक लास्ट हेल्प और कर दो. वापस आते ही मैं पक्का छुट्टी ले लूंगी. एक लास्ट हेल्प प्लीज़.” पाखी ने रुआंसी सूरत बनाकर कहा.
“अरे कोई बात नहीं, मैं वैसे भी खाली ही हूं तुम आराम से जाओ.”
अगले दिन सुबह छह बजे पाखी चली गई. सात बजे तक मैं पूर्वी के फ्लैट पर था. वो बेडरूम में अब तक नींद में थी. मैंने उसे जगाया नहीं और लिविंग रूम में न्यूज़ पेपर पढ़ने लगा.
कुछ देर बाद पूर्वी जाग गई.
“गुड मॉर्निंग.” मैंने बेडरूम के दरवाज़े के क़रीब जाकर कहा था.
“आप इतनी सुबह यहां? और पाखी कहां है?”
“वो तो छह बजे ही चली गई, तुम सो रही थी तो जगाया नहीं.”
“ये पाखी भी न, बताकर तो जाती.” मेरी बात सुन उसने बेड से उतरने की कोशिश करते हुए ख़ुद से कहा.
मैंने आगे बढ़कर उसे थाम लिया और वॉशरूम में छोड़ आया. कुछ देर में वो बाहर आई. मैंने उसे उसके फ़र्श वाले गद्दे पर बैठने में मदद की और दोनों के लिए चाय बना लाया. दोपहर रोज़ की ही तरह बीत गई. शाम तेज़ बारिश होती रही. डिनर के बाद मैं कुछ देर उसके साथ बैठा रहा और फिर मेरा वापस जाने का टाइम हो गया. मैंने उसे बेडरूम पहुंचाने में मदद की, गुड नाइट कहा और दरवाज़ा बाहर से लॉक करके आ गया.
आधे घंटे तक सोने की कोशिश करता रहा, लेकिन नींद आई ही नहीं.
मैं फिर से उठा और पूर्वी के फ्लैट पहुंच गया. दरवाज़ा खोल अंदर आया ही था कि पूर्वी ने सहमी हुई आवाज़ में पूछा, “कौन?”
शायद वो अब तक सोई नहीं थी.
“मैं हूं.” वो अब मेरी आवाज़ से मुझे पहचानने लगी थी.
“नींद नहीं आई, इसलिए यहां आ गया. तुम सो जाओ. मैं यहीं बाहर हूं.”
“थैंक यू अथर्व.”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और लिविंग रूम के फ़र्श पर बिछे गद्दे पर जाकर लेट गया. रात नींद खुलने पर मैंने जाकर उसे देखा. वो सुकून से बिना किसी डर के सो रही थी.
सुबह मैंने उसे चाय बनाकर दी. दोपहर तक उसके बाल खुलकर बिखर गए थे. वो उन्हें समेटने की कोशिश करती. कभी कानों के पीछे लपेटती, तो कभी गर्दन के. उसका हाथ चाहकर भी ऊपर जा नहीं रहा था और जब मुझसे उसे इस परेशानी में देखा नहीं गया, तो मैं जाकर कंघी उठा लाया. उसे अपनी तरफ़ खींचा और उसके बाल समेटने लगा. इस हरकत के लिए उसने मुझे कुछ नहीं कहा था.
उस रात खाने के बाद हम दोनों उस छोटे गद्दे में बैठ मूवी देखते रहे. वो मुझसे सटकर बैठी थी. मेरा हाथ उसके हाथ से टकरा रहा था. वो भी उसे दूर न करती. कुछ देर बाद मैंने उसे बेडरूम में पहुंचाया और बाहर आकर सो गया.
अगले दिन पाखी वापस आ गई.
आज रात मैं अपने बिस्तर पर उलटता पलटता रहा, लेकिन नींद तो उस फ़र्श वाले बिस्तर पर टिकी थी.
सुबह आंख देर से खुली. पूर्वी के पास जाने को मैं जल्दी ही तैयार हो गया. दरवाज़े के नज़दीक पहुंचा ही था कि पाखी दिख गई.
“अथर्व, मैं तुम्हारे ही पास आ रही थी. ये बताने कि आज से मैंने छुट्टी ले ली है और तुम आराम कर सकते हो.”
उसकी बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुड़कर वापस आ गया.
अब भी मेरी दो दिन की छुट्टी बाकी थी. वो सारा दिन मैंने सोकर बिताया और शाम होते ही पूर्वी से मिलने पहुंच गया.
पूर्वी अपनी जगह पर थी.
“मुझे लगा आप बाहर चले गए. आए भी नहीं सारा दिन.” मुझे देखते ही उसने शिकायती नज़रों से कहा.
“घर पर बहुत काम था इसलिए.”
दो दिन बाद मेरी छुट्टियां ख़त्म हो गईर्ं. सुबह होते ही ऑफिस चला गया. वापसी में पाखी ने बताया कि दोपहर पूर्वी अपने घर चली गई है. मैं उसे आख़िरी बार मिल भी नहीं सका था.
“ज़िंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर लौट आई थी. हर दिन ऑफिस से वापस आते ही नज़र सबसे पहले सामने वाले फ्लैट पर जाती. दरवाज़ा बंद रहता. कभी अंदर से तो कभी बाहर से. रोज़ रात सोचता कि पूर्वी को कॉल करूं. पूछूं कि उसकी तबियत कैसी है. वो वापस कब आएगी, पर फिर इसी उधेड़बुन में सो जाता.
महीना बीत गया. एक शाम ऑफिस से घर पहुंचा, तो देखा कि पूर्वी के फ्लैट का दरवाज़ा खुला हुआ था. अंदर से आवाज़ें आ रही थीं. पैर अपने आप ही उस तरफ़ मुड़ गए.
पाखी और पूर्वी साथ बैठे बातें कर रही थीं. “अथर्व…” मुझे देखते ही पूर्वी अपनी जगह से उठी और मेरे क़रीब आई.
उसका प्लास्टर खुल चुका था. मैं उसे ऐसे देख रहा था जैसे मैंने पहली बार किसी लड़की को चलते हुए देखा हो.
“बैठोगे नहीं?” अब तक मुझे खड़े देख पूर्वी ने कहा.
मैंने बैग नीचे रखा और चुपचाप बैठ गया.
कुछ देर में पाखी बहाने से बाहर चली गई. एक बार फिर हम दोनों फ़र्श पर बिछे गद्दे पर बैठे थे.
“आपने मुझे मिस किया?” पूर्वी ने मेरी तरफ़ देखकर पूछा.
“नहीं, ऑफिस से टाइम ही नहीं मिला. और तुमने?” मैंने सच छिपाते हुए कहा.
“मैंने तो आपको बहुत मिस किया. जब-जब मम्मी बाल बांधती थी, तो आपकी याद आ जाती थी.”

यह भी पढ़ें: बर्थडे से जानें लव मैरिज होगी या अरेंज मैरिज (Love Marriage Or Arranged Marriage- Your Birthdate Can Predict)

मैंने पूर्वी से डिनर के लिए पूछा. उसने हां कर दी. कुछ देर बाद हम दोनों एक रेस्टोरेंट के टेबल में आमने-सामने बैठे थे. पूर्वी ब्लैक कलर के बॉडीकॉन ड्रेस में बेइंतहा ख़ूूबसूरत लग रही थी. उसने बालों को जूड़े में बांध रखा था. उफ़… मेरी नज़र उससे हट ही नहीं रही थी. पूर्वी को चोर नज़रों से देखते और बातें करते खाना ख़त्म हो गया और हम घर को निकल पड़े.
सोसासटी पहुंच कर मैंने गाड़ी लगाई और दोनों लिफ्ट की तरफ़ चल पड़े. हमारे हाथ टकरा रहे थे. मैंने अपनी छोटी उंगली उसकी छोटी उंगली में फंसा दी. उसने भी बदले में वैसा ही किया था. अब तक ये साफ़ हो गया था कि पूर्वी भी मुझे पसंद करती है. मैं अचानक से रुका और कहा, “पूर्वी, मैंने झूठ कहा था. मैंने तुम्हीं बहुत मिस किया.”
“अच्छा तो फिर छिपाया क्यों?”
“डर रहा था इसलिए…”
“मेरे लिए छुट्टी ले सकते हैं, मेरी रखवाली कर सकते हैं, फ़र्श पर सो सकते हैं, लेकिन बताने से डरते हैं.”
“तुम्हें खोने से डरता हूं पूर्वी. कहीं मेरे सच कह देने से तुम नाराज़ न हो जाओ. मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं.”
“प्यार तो हम भी आप से बहुत करते हैं.”
“सच पूर्वी?”
“हां अथर्व.” उसने कहा और मेरे नज़दीक आ गई. मैंने उसे बांहों में भर लिया. अचानक तेज़ बिजली चमकी और बारिश होने लगी. दूर आसमान में भी शायद दो लोग गले मिल रहे थे.
मैंने उसके बाल खोल दिए. उसके होंठों पर अपने होंठों की एक छाप छोड़ दी. उसका चेहरा सफ़ेद से लाल हो गया था. ख़ुशी हम दोनों की आंखों में तैर रही थी.
लाइट थी, लिफ्ट चल रही थी, फिर भी मैंने उसे गोद में उठा लिया और तीसरी मंज़िल के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगा था.

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Recent Posts

नेत्रविकारांची भयावह वाढ : त्यावर मात कशी कराल? (Excessive Use Of Digital Screens Are Leading To Increase In Eye Disorders : How To Get Rid Of It)

“आपल्या देशात सुमारे २५ कोटी लोकांना दृष्टीदोष झालेला आहे. त्यापैकी १४ कोटी लोक तरी मोतीबिंदूची…

February 17, 2025

शोएब इब्राहिमने दीपिका कक्करच्या आईसाठी विकत घेतला कोट्यवधींचा फ्लॅट, सासूबाईंनी केलं भरभरुन कौतुक (Shoeb Ibrahim Buys An Apartment For Mom In Law, Dipika Kakar’s Mother Breaks Down In Tears)

शोएब इब्राहिम आणि दीपिका कक्कर यांचा विवाह आंतरधर्मीय होता, परंतु त्यांचे एकमेकांशी चांगले नाते आहेच,…

February 17, 2025

सान्या मल्होत्रा अभिनीत ‘मिसेस’ हा चित्रपट सध्या गुगलवर सर्वाधिक सर्च होतोय (Sanya Malhotra-starrer Mrs shatters records with biggest ever opening on ZEE5, becomes most searched film on Google !!)

झी5 या ओटीटी प्लॅटफॉर्मवर प्रदर्शित झालेल्या या चित्रपटाने असंख्य महिलांमध्ये चर्चा घडवून आणली आहे. अनेकांना…

February 17, 2025
© Merisaheli