कहानी- पहला प्यार (Short Story- Pahla Pyar)

ऐना नेहा को टोकना चाह रही थी कि वह अनजाने में अंकल को पापा बोल बैठी है. पर नेहा तो अपनी ही धुन में बोले जा रही थी.
“… मैंने मम्मी से कहा भी कि सेलिब्रेशन होटल में कर लेते हैं, पर वे मानी नहीं. कहने लगीं घर के खाने की बात ही और है. अंजली और तुम्हारे पापा भी घर का खाना खाना ही पसंद करेंगे.” ऐना आंखें फाड़-फाड़कर नेहा को देख रही थी. नहीं, यह अनजाने में अंकल को पापा नहीं बुला रही है, तो क्या?

नेहा का निमंत्रण पाकर ऐना समझ नहीं पा रही थी कि वह ख़ुश होए या परेशान. नेहा ने उसे एक सरप्राइज़ पार्टी के लिए आमंत्रित किया था और ऐना ऐसी पार्टियों की दीवानी थी. लेकिन उसे शत प्रतिशत विश्‍वास था कि नेहा ने इस पार्टी में अंजली को भी अवश्य ही आमंत्रित किया होगा और इसी से वह बचना चाह रही थी. एक समय था जब अंजली उसकी नेहा से भी प्रिय दोस्त थी. कॉलेज में तिकड़ी के नाम से मशहूर तीनों मिलकर ख़ूब मस्ती करती थीं. फिर कुछ ऐसा हुआ कि ऐना ने अंजली से हमेशा के लिए किनारा कर लिया.
“ऐना, तुम अभी तक पार्टी के लिए तैयार नहीं हुई?” मम्मी ने आकर चेताया, तो ऐना की विचार श्रृंखला टूटी. यदि वह नहीं जाएगी, तो मम्मी फिर दस सवाल करेंगी. ऐना नहीं चाहती थी कि सवाल-जवाबों की इस श्रृंखला में उसके मुंह से अनजाने में गड़े मुर्दे उखड़ जाएं और अंजली से विद्वेष के घाव फिर से हरे हो जाएं. इसलिए वह तुरंत तैयार होने चली गई.
जैसा कि ऐना को उम्मीद थी अंजली पार्टी में पहले से ही मौजूद थी. ऐना ने ज़बरदस्ती चेहरे पर फीकी सी मुस्कान बिखेरी. लेकिन उसके आश्‍चर्य की सीमा नहीं रही जब अंजली ने आगे बढ़कर बेहद गर्मजोशी से उसे बांहों में भर लिया.
“तुम सोच भी नहीं सकती ऐना, आज मैं कितनी ख़ुश हूं.”
ऐना अनुमान ही लगाती रह गई कि अंजली उससे मिलकर ख़ुश है या और किसी वजह से. नेहा शायद रसोई में मां का हाथ बंटा रही थी. सोफे पर अंजली के पापा को बैठा देख ऐना चौंक उठी. रंगीन कुर्ते-पायजामे में सजे-धजे वे पहले से भी यंग नज़र आ रहे थे. उनका ध्यान टीवी में था, इसलिए उन्हें ऐना के आने का पता ही नहीं चला. अंजली ने उनके हाथ से रिमोट खींच लिया.
“क्या पापा, आज के दिन भी टीवी? देखो, कौन आया है?”
“अरे, ऐना बेटी! आओ, आओ इधर मेरे पास बैठो. तुमने तो एकदम घर आना ही छोड़ दिया? मैंने अंजली से पूछा भी तो कहने लगी नई-नई नौकरी में कहां वक़्त मिल पाता है पापा… और बताओ, स्कूटी बराबर चल रही है ना? कोई परेशानी तो नहीं है?”
“नहीं अंकल, कोई परेशानी नहीं. सब ठीक है.” ऐना अचकचा उठी थी. अंजली उसकी मनःस्थिति समझ रही थी.


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“मैं नेहा को बाहर भेजती हूं. तू तब तक पापा से बातें कर. वे तुझे बहुत याद करते हैं.” अंजली रसोई में चली गई. ऐना फिर यादों के सागर में गोते लगाने लगी. कितना लाड़-दुलार करते थे अंजली के पापा उसे!
ऐना के मस्तिष्क में अपने पापा की तो स्मृति मात्र भी शेष न थी. बहुत छुटपन में ही उसके सिर से पिता का साया उठ गया था. अंजली के साथ ही उसने उसके पापा से पहले साइकिल, फिर स्कूटी चलाना सीखा. कॉलेज में एक लड़का ऐना के पीछे ही पड़ गया था. उसे बहुत परेशान करता था. न जाने कब अंजली ने अपने पापा को इसकी जानकारी दी और उन्होंने उसे धमकाकर उसके रास्ते से हटा दिया. ऐना को तो बहुत बाद में पता चला. जब उसने अंकल का शुक्रिया अदा करना चाहा, तो उन्होंने बेहद प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा था, “मैंने तुम्हें हमेशा अंजली की तरह अपनी बेटी ही माना है. कभी भी कोई भी परेशानी हो निःसंकोच मुझे बताना.”
शायद इसीलिए अंकल आज भी उससे कोई परेशानी तो नहीं ऐसा पूछ रहे थे.
अंजली भी तो उसकी मम्मी से कितना घुलमिल गई थी. जितनी बार आती मम्मी के हाथ की डिशेज़ चटखारे ले लेकर खाती.
“तू कितनी लकी है ऐना! रोज़ नए-नए व्यंजन उड़ाने को मिलते हैं. तेरा घर कितना साफ़-सुथरा और व्यवस्थित रहता है!” ऐना मन ही मन आह भरकर रह जाती. वह कैसे कहे कि उसे तो अंजली लकी लगती है, जिसके पास सब समस्याओं का तोड़ उसके पापा मौजूद हैं.
हर इंसान को अपना अभाव सबसे ज़्यादा खलता है. जहां ऐना की सोच ऐसे मनोवैज्ञानिक विश्‍लेषण तक ही सीमित रह जाती, वहीं अंजली की आंखों में एक सपना पलने लगा था. शायद वही सपना दोनों के बीच दूरी का कारण बन बैठा.
“हाय ऐना, कैसी है तू? बहुत दिनों बाद मिलना हुआ है. नौकरियों के चक्कर में ऐसा फंस गई हैं हम! कॉलेज की लाइफ कितनी मस्त थी! मैं तो वो समय बहुत मिस करती हूं. आप बोर तो नहीं हो रहे पापा? रसोई में बहुत थोड़ा-सा काम बचा है. मम्मी और अंजली अभी आते हैं…”
ऐना नेहा को टोकना चाह रही थी कि वह अनजाने में अंकल को पापा बोल बैठी है. पर नेहा तो अपनी ही धुन में बोले जा रही थी.
“… मैंने मम्मी से कहा भी कि सेलिब्रेशन होटल में कर लेते हैं, पर वे मानी नहीं. कहने लगीं घर के खाने की बात ही और है. अंजली और तुम्हारे पापा भी घर का खाना खाना ही पसंद करेंगे.” ऐना आंखें फाड़-फाड़कर नेहा को देख रही थी. नहीं, यह अनजाने में अंकल को पापा नहीं बुला रही है, तो क्या?
तभी रसोई से अंजली एक हाथ में बड़ा-सा केक और दूसरे हाथ से नेहा की मम्मी का हाथ पकड़े प्रकट हुई.
“सरप्राइज़!”
गुलाबी साड़ी में लिपटी आंटी के चेहरे की रंगत भी ऐना को गुलाबी-गुलाबी लग रही थी.
“ओह, मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा कि ऐना को केक कटने के बाद मम्मी-पापा की शादी के बारे में बताना था. मैं तो कब से पापा-पापा… बोले जा रही हूं और शायद इसीलिए ऐना मुझे ऐसे आंखें फाड़-फाड़कर देख रही है. ऐना, पापा-मम्मी की कल ही कोर्ट मैरिज हुई है.”


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केक कटा. पापा-मम्मी ने एक-दूसरे को खिलाया. ऐना बुत बनी ताकती रही. अंजली का मोबाइल बजा, तो उसे होश आया. अंजली की दीदी का यूके से फोन था. बेहद उत्साहित अंजली उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी शादी का विवरण दे रही थी.
“हां दीदी, हम कल ही उन्हें फ्लाइट से रवाना कर रहे हैं. अब वहां हनीमून आप संभाल लेना.”
शर्म से लाल होती आंटी रसोई में खाना लगाने चली गई, तो अंजली भी पीछे-पीछे मदद के लिए चली गई. अंकल हाथ धोने उठ गए. नेहा ऐना की ओर मुख़ातिब हुई.
“बहुत चिंता रहती थी दीदी को पापा की. शादी के बाद उनका इंडिया आना बहुत कम ही हो पाता है. अंजली की शादी के बाद पापा का क्या होगा? वे तो अपनी तरफ़ से बिल्कुल लापरवाह हो जाएंगे. किसी बेटी के संग रहना भी उन्हें मंज़ूर नहीं. सच कहूं ऐना, तो ऐसी ही चिंता मुझे भी मम्मी को लेकर थी. मेरे जाने के बाद उनका क्या होगा? वे तो अभी भी मेरा खाना बाहर हो जाने पर अपने लिए कुछ नहीं बनातीं. कभी दूध तो कभी बस एक फल खाकर पूरा दिन गुज़ार देती हैं. इस ऊहापोह की स्थिति में जब अंजली ने मेरे सम्मुख यह प्रस्ताव रखा, तो मैं इंकार नहीं कर पाई.
हालांकि हम दोनों को ही अपने पापा-मम्मी को मनाने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा. कितने ही प्रॉमिसेज़ करने पड़े, शर्तें माननी पड़ीं, पर आख़िरकार सब ठीक हो गया. अंत भला तो सब भला… सच कह रही हूं ऐना, ज़िंदगी में इतना सुकून इससे पहले कभी महसूस नहीं किया. हमारे अभिभावक लाख हम बच्चों पर अपनी ज़िंदगी न्यौछावर करें, पर आख़िरकार हर इंसान की अपनी भी तो एक व्यक्तित्व ज़िंदगी होती है. जिस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका अधिकार होना चाहिए कि वह उसे अपनी ख़ुशी के लिए जीए. अभी उन दोनों की ऐसी उम्र ही क्या है? और सच तो यह है कि जीवन के ढलान भरे इस मोड़ पर ही जीवनसाथी की कमी शिद्दत से महसूस होती है. पापा-मम्मी के चेहरे का नूर ही उनके अंदर की ख़ुशी बयां कर रहा है… अं, मैं देखती हूं खाना लगने में कितनी देर है?”
ऐना को गंभीर चिंतन में धकेलकर नेहा भी अंदर चली गई.
यही प्रस्ताव तो अंजली ने उसके सम्मुख रखा था. तब कैसी बिफर उठी थी वह?…
“तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई यह सब सोचने और मुझसे कहने की? मैंने सोचा भी नहीं था कि हमारी दोस्ती का तुम ऐसा नाजायज़ फ़ायदा उठाने का प्रयास करोगी?” एक झटके में सालों की दोस्ती का बंधन तोड़कर वह लौट आई थी… क्या सच में उसे अपनी मम्मी की ख़ुशियों की कोई परवाह नहीं है? उसने तो शायद कभी मम्मी से पूछा भी नहीं कि वे क्या करना चाहती हैं? और उनकी ख़ुशियां किसमें हैं? वह इतनी ख़ुदगर्ज कैसे हो गई?..
ऐना घर जाने के लिए अकुला उठी थी. बुझे मन से वह खाना खाती रही, वार्तालाप में शरीक होती रही. चारों के चमकते चेहरे संपूर्ण परिवार की ख़ूबसूरत तस्वीर पेश कर रहे थे. उनकी ख़ुशी उसे संतोष प्रदान कर रही थी. लेकिन एक अपराधबोध का एहसास अंदर ही अंदर कचोट रहा था.
घर आने के बाद भी वह खोई-खोई-सी बैठी रही, तो मम्मी ने टोक ही दिया, “किस बात की सरप्राइज़ पार्टी थी? बताया नहीं तूने?”
“अंजली के पापा और नेहा की मम्मी की शादी की पार्टी थी.” कहकर ऐना मम्मी की आंखों में झांकने लगी.
“बहुत अच्छी बात है यह तो. दो घर आबाद हो गए.”
मम्मी के साधारण से प्रति उत्तर पर भी ऐना तड़प उठी.
“अंजली ने यह प्रस्ताव पहले मेरे सम्मुख रखा था मम्मी. पर मैंने ठुकरा दिया. मैं आपकी गुनहागार हूं.”
“लेकिन बेटी, मेरी फिर से गृहस्थी बसाने में कोई रुचि नहीं है. मैं तो… मैं तो…”
“हां, बोलिए न मम्मी.” अपराधबोध का बोझ उतरा, तो ऐना थोड़ा सहज हुई.


“वो बिस्वास अंकल है ना?”
“हां वे! उनके संग…” ऐना के चेहरे पर फिर से परेशानी के बादल घिर आए थे. बिस्वास अंकल नाना के दोस्त के लड़के थे और अक्सर उसके घर आते रहते थे.
“तू फिर ग़लत समझ रही है. उन्हें तो मैंने बचपन से भाई माना है. दरअसल वे चाहते हैं मैं फिर से अपने पहले प्यार से जुड़ जाऊं.”
“पहला प्यार… तो क्या आपकी ज़िंदगी में पापा के अलावा भी?”
“उफ़! तू तो क्या-क्या कयास लगा लेती है. मेरा पहला प्यार है थिएटर. बिस्वास चाहता है जैसे मैं शादी के पहले रंगमंच पर अभिनय करती थी, वैसे फिर से करने लग जाऊं. मैंने अपनी ढलती उम्र की दुहाई भी दी, तो उसने कहा मुझे ध्यान में रखकर उसने कुछ भूमिकाएं लिखी हैं, जिनमें मेरा महत्वपूर्ण क़िरदार है. अभिनय में सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं होती. तभी तो कई वयोवृद्ध अभिनेता-अभिनेत्री इस क्षेत्र में अभी तक सक्रिय हैं… बस, तुझसे बहुत संकोच हो रहा था, क्योंकि है तो तू भी अपने पापा की बेटी. उन्हें मेरा थियेटर करना पसंद नहीं था… बेटी, अगर मैं फिर से थियेटर करने लगूं, तो तुझे बुरा तो नहीं लगेगा न? तेरी प्रतिष्ठा पर कोई आंच…”
“नहीं.. नहीं मम्मी… मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा, बल्कि बहुत ख़ुशी होगी. आपको मेरा, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी ख़ुशी का इतना ख़्याल है और मैं अपनी ही दुनिया में खोई रही.” ऐना मम्मी से लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ी तो मम्मी के नैन भी सजल हो उठे.

– संगीता माथुर

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Photo Courtesy: Freepik

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