“राजू…” जगन ने घर मे घुसते ही बेटे को आवाज़ लगाई, तो उसका चार साल का बेटा गाल फुलाए सामने आकर खड़ा हो गया.
“क्या हुआ, मम्मी ने डांट लगाई है क्या?” पूछने पर उसने हां में सिर हिलाया. मम्मी ने उसे क्यों डांटा है यह पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी राजू की मां पानी के ग्लास के साथ शिकायतों का पुलिंदा ले आईं और खोलकर बैठ गईं.
“दिनभर खेलता रहता है ये राजू… आज इसकी टीचर ने भी इसकी शिकायत की है.” राजू की परेशान मम्मी अपने सिर पर हाथ रखकर देर तक उसकी शिकायतें करती रहीं.
“पढ़-लिखकर बड़ा अफ़सर बन जाए, इसलिए चार घरों का काम करके खटती हूं. तुम सड़क पर गिट्टी-बजरी ढोकर इसकी स्कूल की फीस भर रहे हो और ये हमारी मेहनत पानी किए दे रहा है.”
“जब देखो पढ़ाई… पढ़ाई… मत जमा करो फीस, मत पढ़ाओ मुझे.” बोलते-बोलते राजू बुक्का फाड़ कर रोने लगा, तो उसकी मां और जगन दोनों हैरान रह गए.
कुछ देर बाद जगन राजू की मां से हताशा भरे स्वर में बोला, “कितना छोटा है अपना राजू. तुम तो पढ़ाई-पढ़ाई करके पढ़ने के प्रति अरुचि पैदा करवा दोगी.”
“छोटा है, इसलिए अभी से इसे अच्छी आदतें सिखा रही हूं. पढ़ाई-पढ़ाई सिर्फ़ पढ़ने के समय ही कहती हूं. खेलने से किसने मना किया है. ख़ूब खेले, पर ये तो पढ़ने के समय ही खेलना चाहता है.”
राजू की मम्मी की बात सुनकर जगन ने प्यार से राजू से कहा, “राजू, ये तो सही नही है. खेलने को मना थोड़े करती है तुम्हारी मम्मी, पर पढ़ने के समय खेलोगे तो ग़ुस्सा करेंगी ही…”
हमेशा राजू का पक्ष लेनेवाले पापा भी मम्मी का पक्ष लेने लगे, तो वह रूठकर , “मै किसी से बात नहीं करूंगा. कोई मुझे प्यार नहीं करता. कोई खेलने नहीं देता…” कहकर फिर से बिसूरने लगा.
अपने लाडले को रूठा देखकर जगन ने झोले में हाथ डाला और लाल रंग का एक प्लास्टिक का ट्रक निकालकर उसको थमाया, तो बिसूरता राजू सहसा ख़ुश हो गया और आंखें चमक उठी.
मम्मी की डांट के चक्कर में वह भूल ही गया था कि आज तो पापा उसके लिए खिलौनावाला ट्रक लानेवाले थे. चार दिन पहले उसने दुकान में इसे देखा था और मचल उठा था, “मुझे ये चाहिए…”
बाद में ले दूंगा का आश्वासन जगन ने दिया और अपनी खाली जेब दिखलाई, तब वह दुकान से टला.
दो दिन से वह शाम को अपने पापा का दौड़कर स्वागत करता है और खिलौनेवाला ट्रक न देखकर ठुनकने लगता है. पर आज के लिए पापा ने पक्का वायदा किया था कि जो भी हो जाए वह उसके लिए लाल वाला ट्रक लेकर ही आएंगे.
“वैसे ही नही पढ़ता-लिखता है आपने खिलौना और लाकर दे दिया.” राजू की मम्मी बड़बड़ाती हुई चली गई, तो जगन उससे बोले, “मम्मी बहुत नाराज़ है. उनको ख़ुश करने के लिए पढ़ना होगा.”
“पापा, मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता.” राजू ने मुंह बनाकर कहा, तो जगन ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “पढ़ोगे नहीं, तो मेरी तरह गिट्टी-बजरी ढोना पड़ेगा. तुम्हारे नरम-नरम हाथ मेरे हाथों की तरह खुरदरे और कटे-फटे से हो जाएंगे.”
“नही होंगे, मैं हाथों से बजरी थोड़ी न उठाऊंगा. मेरा ट्रक उठाएगा.” अपने खिलौनेवाले ट्रक के साथ खेलने में मगन राजू बोला, तो उसके पापा चौंक उठे. फिर प्यार से उसका सिर सहला दिया और सोच में डूब गए. रात को राजू सो गया, पर उसके मम्मी-पापा देर रात तक बात करते रहे.
दूसरे दिन सुबह-सुबह राजू को उठाते हुए जगन बोले, “ए राजू उठ जा. आज मेरे साथ काम पर चल…”
काम पर जाने की बात सुनकर राजू आंखें मींचता हुआ उठा और बोला, “और स्कूल…”
“छोड़ न स्कूल… तुम्हारा तो वैसे भी पढ़ने में मन नही लगता…”
“और मम्मी, वह जाने देंगी?”
“क्यो नहीं जाने दूंगी. अब जब तुम्हारा पढ़ने में मन ही नहीं लगता है, तो फिर ठीक है, जा अपने पापा का हाथ बंटा आ….” ।
यह सुनकर राजू तो खु़शी से झूम उठा. आज न स्कूल, न पढ़ने की बात… वह फटाफट उठकर तैयार हुआ और खिलौने वाला ट्रक उठाकर पापा के साथ साइट पर जहां काम हो रहा था वहां चल दिया.
“अरे जगन, धूल, धूप-मिट्टी में बच्चे को क्यों ले आए.” जो मिलता वह यही पूछता. जवाब में, “हमारा राजू अब से स्कूल नहीं जाएगा मेरी मदद करेगा.” कहकर जगन सबको हैरान और नन्हे राजू को ख़ुश कर देता.
साइट पर जगन के साथ राजू को देखकर ठेकेदार ने पूछा, “इसे क्यों ले आए.”
“साहब, मेरा बेटा मेरी मदद करने आया है. अपनी गाड़ी में बजरी भर कर पहुंचाएगा.” राजू के हाथ में खिलौनेवाले ट्रक की ओर इशारा करते हुए जगन बोला, तो ठेकेदार ने हंसकर कहा, “बजरी पहुंचे न पहुंचे चाइल्ड लेबर के अपराध में मैं ज़रूर जेल पहुंच जाऊंगा.”
हंसी-मज़ाक के बीच जगन ने धूप में पड़ी बजरी के पहाड़नुमा ढेर के ऊपर बैठाकर कहा, “देख राजू, इतनी सारी बजरी हमें ढोना है।”
“इत्ती सारी…” कहकर बेचारा राजू आंखें फाड़कर कभी अपने ट्रक को देखता, तो कभी बजरी…
“तू चलकर आया है, इसलिए थोड़ा सुस्ता ले, तब तक मैं काम पर लगता हूं.” कहकर जगन तसले में बजरी उठाने लगा और सिर पर लादकर सड़क पर डालने लगा. पच्चीसों चक्कर लगाकर जब जगन अपने चेहरे का पसीना पोंछता हुआ आया, तो देखा राजू बजरी के सिंहासन पर बुत बना बैठा था.
“क्या सोच रहा है राजू, अब मैं आराम करता हूं तू अपने ट्रक से बजरी पहुंचा वहां.”
जगन की बात ठेकेदार के कानों में पड़ी, तो वह हंसते हुए गुमसुम से बैठे राजू से बोला, “राजू बेटा, जो पापा की बात मानी, तो पूरा जीवन इस ट्रक में बजरी लेकर वहां पहुंचाओगे तब भी नही पहुंचेगी. और जगन तुम पिता हो या क्या हो, धूप में झुलस रहा है बच्चा, उठाओ उसे वहां से…”
“साहब, पिता हूं इसीलिए झुलसा रहा हूं. स्कूल न जाना पड़े, इसलिए यह ख़ुशी-ख़ुशी मेरे साथ चला आया है… अब कल शायद…” जगन की अधूरी बात ठेकेदार को पूरी समझ में आ गई.
शाम को राजू घर आया, तो मां ने पूछा, “क्यों राजू, तुमने पापा की मदद की या नही…”
“ज़रूर करता पर बजरी ढोने के लिए इसका ट्रक थोड़ा छोटा पड़ गया था.” जवाब जगन ने दिया, तो राजू झट से बोला, “थोड़ा नहीं बहुत-बहुत छोटा था.”
थके हुए राजू के कुम्हलाए चेहरे को देख मम्मी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “थक गया होगा, चल हाथ-मुंह धो ले फिर दूध दे दूं.”
“हां बहुत थक गया, पर पापा तो बहुत-बहुत ज़्यादा थके हैं. उनको मेरे हिस्से का भी दूध देना और हां पापा कल से आप बजरी मत ढोना.”
“क्यों?”
“क्यो क्या! कितना मेहनतवाला काम है कोई और काम देखो…”
“अब तुम्हारा पापा पढ़ा-लिखा नहीं है न राजू, इसलिए उसे बजरी तो ढोनी ही पड़ेगी.”
राजू का मुंह उतरा देख वह स्नेह से बोले, “इसीलिए मम्मी तुम्हे पढ़ने-लिखने को कहती है, ताकि तुम बड़े अफ़सर बनो और…”
“बड़ा अफ़सर बन जाऊंगा, तब तो नहीं ढोओगे न…”
“बिल्कुल नहीं…” जगन ने कहा, तो राजू गंभीर मुद्रा में बैठ गया और उसकी मम्मी मुस्कुराते हुए जगन की कल रात को कही बात याद करने लगीं, “पढ़ने के प्रति रुचि जगाने के लिए बजरी कैसे उठाई जाती है यह उसे दिखाना पड़ेगा.”
उस दिन तो थका हुआ राजू सो गया, पर अगले दिन की स्वर्णिम किरण राजू को सही राह पर ले जाएगी, इस बात का विश्वास राजू के मम्मी-पापा को सुकूनभरी नींद में डूबा गई.
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