कहानी- साथ भी.. पास भी.. (Short Story- Sath Bhi.. Paas Bhi)

सबके बहुत कहने पर शांतनु गाना गाने के लिए तैयार हुए. मेरी तो हालत‌ ही ख़राब थी… आज तो नाक कटकर रहेगी, जो‌ इंसान कभी गुनगुनाता नहीं, वो इतने लोगों के बीच क्या गाएगा? लेकिन मैं हतप्रभ रह गई, जब इन्होंने ‌गाना शुरू किया, “वैसे तो‌ तेरी ना में भी मैंने ‌ढूंढ़ ली अपनी ख़ुशी… अगर तू हां कहे, तो‌ बात होगी और ही…” सब मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे. गाना खंत्म होते‌ ही पूरा आंगन तालियों से गूंज उठा! मम्मी ने आकर इनकी नज़र उतारी, तो‌ शांतनु शरमाने लगे. आज मुझे ये कुछ अलग लग रहे थे!

भाई की शादी में रिश्तेदार इकट्ठा हो रहे थे, मेरी छोटी बहन निम्मी और उसके पति के आने का समय हो रहा था. सब बेचैनी से इंतज़ार कर रहे थे… बस मैं थोड़ी परेशान थी… कारण था- मेरी हीनभावना! मेरी शादी हुई थी क़रीब पांच साल पहले, मुझसे १० साल बड़े शांतनु से. मम्मी की बीमारी में, बड़ी बेटी होने का ये टैक्स चुकाया था मैंने…
बी.ए. करते ही जो पहला रिश्ता मिला, आनन-फानन में शादी तय कर दी गई या कहें निपटा दी गई! मेरा और शांतनु का कोई जोड़ नहीं था- मैं मचलती हुई लहर सी अल्हड़ और वो ऐसा शांत समंदर, जिसमें मिलकर लहर मचलना और इठलाना भूल जाती है! उम्र का अंतर, स्वभाव का अंतर… मैं एक नृत्यांगना, थिरकती हुई, सुर लय ताल में डूबी और शांतनु- हिंदी के प्रोफेसर… पता नहीं कौन सी दुनिया में खोए रहने वाले! ऐसा नहीं कि मुझे कोई तकलीफ़ थी, बस जैसा जीवनसाथी सोचा था वो मिला नहीं… गृहस्थी स्वीकार कर ली थी. एक पुत्र की मां हो चुकी थी, लेकिन शांतनु से दिल ना लगा था, ना शायद कभी लगेगा. और इसी दूरी को बढ़ाने आ गया था मेरी छोटी बहन निम्मी का पति, समीर! बेहद हंसमुख, गुनगुनाता हुआ… मुश्किल से दो‌ सालों का अंतर था पति-पत्नी में… कल छोटे भाई की सगाई है, सारे रिश्तेदार इकट्ठा होंगे… और मेरी हीनभावना मुझे फिर बौना कर देगी.

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“दीदी!.. कितनी पतली हो गई हो… जीजाजी कहां हैं, किट्टू कहां है?”
“निम्मी छह महीने की बिटिया को गोद में ‌लिए थी. आते ही लिपट गई. उसके पीछे-पीछे समीर आ रहा था, हंसता-गुनगुनाता… मैंने कहा, “अब तुम ‌आ गए हो, अब रौनक़ होगी!”
शाम को सब बैठे हंसी-मज़ाक कर रहे थे, जहां समीर की हाज़िरजवाबी और चुटकुले माहौल को उमंग से भर रहे थे, वहीं मेरे पति एक नपी-तुली ‌मुस्कुराहट फेंक कर किट्टू के साथ खेलने में व्यस्त थे… हद कर देते हैं ये भी!
“स्वाति दीदी, एक डांस हो जाए…” मेरे भाई ने मुझे खींचा, शांतनु को भी बुलाने लगा. इन्होंने दूर से ही हाथ जोड़कर मना कर दिया… कुछ लोगों की ‌फुसफुसाहट मेरा मन खिन्न कर गई, “स्वाति के पति बहुत मनघुन्ने टाइप के लगते हैं…” मैं पलटने वाली ही थी कि समीर ने हाथ पकड़कर रोक लिया, “मैं हूं ना आपका डांस पार्टनर…” उस दिन मैं इतना खुलकर नाची, हालांकि निम्मी की क़िस्मत से थोड़ी ईर्ष्या भी हुई.
सबके बहुत कहने पर शांतनु गाना गाने के लिए तैयार हुए. मेरी तो हालत‌ ही ख़राब थी… आज तो नाक कटकर रहेगी, जो‌ इंसान कभी गुनगुनाता नहीं, वो इतने लोगों के बीच क्या गाएगा? लेकिन मैं हतप्रभ रह गई, जब इन्होंने ‌गाना शुरू किया, “वैसे तो‌ तेरी ना में भी मैंने ‌ढूंढ़ ली अपनी ख़ुशी… अगर तू हां कहे, तो‌ बात होगी और ही…” सब मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे. गाना खंत्म होते‌ ही पूरा आंगन तालियों से गूंज उठा! मम्मी ने आकर इनकी नज़र उतारी, तो‌ शांतनु शरमाने लगे. आज मुझे ये कुछ अलग लग रहे थे!
खाना खाते-खाते बहुत रात हो गई थी. हम दोनों बहनें अपने बच्चों को सुलाकर छत पर आ गए… कितने‌ सालों बाद मायके की छत पर… मैं बहुत ख़ुश थी, लेकिन ‌निम्मी कुछ ‌सोच रही थी, “दीदी, आपके और जीजाजी के बीच सब सही चल रहा है ना? मतलब…”
मैंने लंबी सांस लेकर कहा, “हां, तुम्हारे जैसा परफेक्ट हिसाब तो नहीं है यार, बस चल रहा है… क्यों पूछ रही हो?”
निम्मी एकदम से उदास हो गई, “आज जब जीजाजी गा रहे थे, मुझे ‌लगा आपके लिए ‌गा रहे थे… मुझे लगता भी है कि आपने उन्हें ‌अब तक पूरी तरह स्वीकार नहीं किया है, ऐसा है क्या?” मैं चौंक गई, इसने कैसे समझ लिया… जो‌ बहुत अंदर की बात है! मैंने खुलकर बता ही दिया, “निम्मी! हम दोनों में दस सालों का अंतर है, बहुत होता है… हमारे प्रोफेसर साहब कुछ ज़्यादा ही गंभीर हैं… क्या बोलूं, बस कट रही है… तुम नहीं समझोगी, तुम लोग तो ‘लव बर्डस हो!”
निम्मी मेरे कंधे पर सिर रखकर चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, “दीदी, जिसको जो‌ नहीं मिलता है… वही अच्छा लगता है! जीजाजी की गंभीरता उन्हें लाखों में एक बनाती है. आपको ये जो‌ समीर की चंचलता, स्टाइल पसंद है ना… मुझसे पूछिए, कितनी भारी पड़ती है कभी-कभी!” मैं उसका मुंह ताक रही थी, ऐसा कैसे हो सकता है… उसने बात आगे बढ़ाई, “अपने ही सजने-संवरने से इनको फ़ुर्सत नहीं मिलती, कभी मेरी ‌ओर ध्यान नहीं देते… बच्ची रो-रोकर परेशान हो जाती है, लेकिन क्या मजाल कि भीड़-भाड़ में उसको संभाल लें… बस मौज-मस्ती, नाच-गाना! शाम को‌ नहीं ‌देखा आपने, मैं ‌कहां शामिल हो‌ पाई… दीदी! मैंने हमेशा ‌देखा है, जीजाजी ‌आपको ख़ुश ‌देखना चाहते हैं… किट्टू को हमेशा संभालते हैं, आपके किसी काम में ‌रोक-टोक नहीं, इतनी स्टेज परफॉर्मेंस आप देती रहती हैं, ये सब जीजाजी के सहयोग के बिना संभव है क्या?.. हां, आ रही हूं…” उसकी बच्ची जागकर रोने ‌लगी थी, वो‌ नीचे ओर भागी! मैं घंटो‌ं वहीं छत पर उसी तरह बैठी रह गई… एक-एक घटना मेरे सामने घूम रही थी. शांतनु का प्यार, देखभाल, समझदारी… कैसे इन सबसे मैं अनछुई रह गई! आंखें और मन भीगता जा रहा था…
सुबह होते ही मैं बदल चुकी थी. पूरा घर फूलों से‌ सजाया जा रहा था… महक मेरे ‌अंदर‌ भर आई थी. शांतनु को चाय दी, इनके पास बैठी रही… कुछ ‌ना कुछ ‌बोलती रही. अपनी साड़ी देखने के लिए सूटकेस खोला… मुस्कुराहट फैल गई, कुछ सोचकर बाज़ार निकल गई!

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शाम को सब तैयार हो रहे थे. मैंने पीली साड़ी पहनी और शांतनु के लिए वैसा ही कुर्ता-पायजामा निकालकर उनकी ओर बढ़ा दिया!
शांतनु ने हैरत से मेरी ओर देखा, “ये किसका है? मेरा वाला कुर्ता दो…” मैंने शरमाते हुए कहा, “आपका ही है, हम दोनों मैचिंग पहनेंगे…”
शांतनु एकटक मेरी ओर देखते हुए बोले, ” आज कुछ अलग लग रही हो, बात क्या है?”
मैंने बाहर झांककर देखा, कोई था नहीं… इनके पास आकर कंधे पर सिर टिका दिया, “आप कल कह रहे थे ना, अगर मैं हां कहूं, तो बात होगी और भी… बस वही बात है!”
शांतनु और मैं साथ भी थे, पास भी… बिजली की लड़ियां जगमगा रही थीं, सब कुछ रौशन था, घर भी… दिल भी!

लकी राजीव

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Photo Courtesy: Freepik

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