कहानी- सिर्फ़ तीन दिन (Short Story- Sirf Teen Din)

सोती हुई काव्या को देख उसे तरस आया. बेचारी कैसे माहौल में आ गई है. कैसे रहेगी तीन दिन… देर रात तक तीन दिन के सामंजस्य पर जोड़-तोड़ सवाल-जवाब सब ख़्यालों में चलते रहे.
सुबह पायल की छमछम और चूड़ियों की खनखन से नींद टूटी. माँ आई होंगी उसे जगाने उसने सोचा… काव्या शॉर्ट्स में अभी भी उससे लिपटी महसूस हो रही थी.

बस की खिड़की से बाहर झांकती काव्या के चेहरे को चूमती लटों को देख विहान मुस्कुरा पड़ा.
प्रपोज़ से शादी तक का अंतराल बहुत कम रहा था. चट मंगनी पट ब्याह शायद इसे ही कहते है. पहली नज़र में प्यार हो जाना अतिश्योक्ति नहीं है ये काव्या को पहली बार देखकर महसूस हुआ था.
अपने ऑफिस कलीग के घर गेट-टुगेदर में उसने काव्या को देखा और दिल हार बैठा. मां-बाबूजी से साफ़ कह दिया था कि वो काव्या से प्यार करता है और बहुत ही सादगी से ब्याह करना चाहता है.
“मैं शादी में फ़िज़ूलख़र्ची नहीं चाहती. जिन रिश्तेदारों को सालों से नही देखा है उनको बुलाना और सारी एनर्जी और मनी उन पर ख़र्च करना बेतुका है.” काव्या ने पहले ही कह दिया था.
एक तो लव मैरिज दूसरा सादा विवाह… बाबूजी ख़ुश नही थे, पर आने वाले समय की आहट और होने वाले टकराव को टालने के लिए “जैसा ठीक समझो करो.” कहकर उन्होंने उनका रास्ता साफ़ कर दिया था.

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बड़ी बहन, उसके पति, मां-बाबूजी शादी में ही आए और दो दिन होटल में रहकर चंद परिचितों की मौजूदगी में शादी हो गई. आशीर्वाद देकर वह भी चले गए.
हनीमून से लौटने के बाद मां ने फोन पर एक बार पगफेरा करवा जाने को कहा, तो वह मना न कर सका. मन ही मन बेचैनी भी थी कि छोटे कस्बे की संकुचित मानसिकता वाले परिवार से काव्या का निबाह कैसे होगा…
घर में शॉर्ट्स और क्रॉप टी-शर्ट में घूमने वाली काव्या को, “कुछ साड़ी रख लो. सिर्फ़ तीन दिन की तो बात है निकल जाएंगे.” यह कहना चाहता था, पर कह नही पाया.
“क्या सोच रहे हो?” काव्या ने ख़्यालों में डूबे विहान को टोका, तो वह चौंका.
“लग रहा है मैं नही, तुम पहली बार ससुराल जा रहे हो.”
कहकर वह ज़ोर से हंसी और विहान मुस्कुराकर रह गया.
घर पहुंचते-पहुंचते रात हो गई थी. माँ और बहन दरवाज़े पर स्वागत के लिए आई. इंडो वेस्टर्न ड्रेस में मुंह उघाड़े काव्या को देख विहान की बड़ी बहन ने अपना दुपट्टा उसे ओढ़ा दिया. दरवाज़े पर हल्दी की थाप लगवाकर उसे अंदर लाया गया.
काव्या बड़े गौर से घर के सदस्यों के हावभाव ऑब्ज़र्व करती रही.
कमोबेश यही हाल मां-बाबूजी और बहन का भी था शायद वो भी काव्या को ऑब्ज़र्व कर रहे थे.
विहान भी उस अवसर की ताक में था कि कब पानी सिर से गुज़रे और वह अपनी आपत्ति दर्ज़ करवाते कह दे कि काव्या जैसी है वैसे ही स्वीकारना होगा.
रात को अपने कमरे में काव्या शॉर्ट्स टी-शर्ट में आ गई. वह उसे घर और घर के परिवेश के बारे में उससे बात करता, कुछ बताता या सिर्फ़ तीन दिन किसी तरह से गुज़ारने की प्रार्थना करता वह बिस्तर पर ढह गई और उससे लिपटकर सो गई.
सोती हुई काव्या को देख उसे तरस आया. बेचारी कैसे माहौल में आ गई है. कैसे रहेगी तीन दिन… देर रात तक तीन दिन के सामंजस्य पर जोड़-तोड़ सवाल-जवाब सब ख़्यालों में चलते रहे.
सुबह पायल की छमछम और चूड़ियों की खनखन से नींद टूटी. माँ आई होँगी उसे जगाने उसने सोचा… काव्या शॉर्ट्स में अभी भी उससे लिपटी महसूस हो रही थी.
“काव्या, उठो देखो शायद मां आई है.” बंद आंखों से उसने उसे हिलाया, पर तकिया बोल सकती तो बोलती.
उसी वक़्त दरवाज़ा किरर की आवाज़ के साथ खुला, तो वह हड़बड़ाकर उठा और दंग रह गया. गुलाबी साड़ी में लिपटी काव्या अपने दोनों हाथों की चूड़ियों को उसके कानों में बजा रही थी.
उसे आंखे मिचमिचाते देख शरारत से उसने अपने भीगे बालों के छींटे उस पर डाल दिया. वह आंखें फाड़-फाड़कर उसे देख रहा था. माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, आंखों में काजल, ललाट में सिंदूर अप्रतिम लग रहा था.
न्यूड कलर की लिपिस्टिक लगाने वाली काव्या चटख गुलाबी लिपस्टिक लगाए मुस्कुराती हुई बड़ी अदा से उसे देख रही थी.
“ये सब क्या है. अरे नहीं, तुम्हें यह सब करने की ज़रूरत नही. मैं बात करता हूं माँ-बाबूजी से…”
“क्यों? मैं तुम्हें अच्छी नही लगी?”
“बात अच्छे-बुरे की नही बात तुम्हारे अस्तित्व की है.”
“अरे ऐसी की तैसी अस्तित्व की. देखो न कितनी अलग लग रही हूं. यहां ही तो ऐसे शौक पूरे कर सकती हूं. वहां मुंबई में तो फिर वही कैजुअल वियर्स.”
“तुम ये सब पहनकर ख़ुश हो?” विहान के होंठ थरथराए…
“ओ यस! सी, आय एम सो थ्रिल्ड…” काव्या आंचल लहराती इठला रही थी. विहान ने उसकी कलाई संभालकर पकड़ी और पूछा, “ये साड़ियां, ये चूड़ियां कब ख़रीदी.”
“मेरे पास बहुत अच्छा कलेक्शन है. अच्छी लगती थी, तो ले लेती थी पर पहनने का न मौक़ा लगा न गट्स हुए. अब पहनूंगी.”
वह बड़े प्यार से अपनी चूड़ियों को देखते हुए बोली.
खिड़की पर लगे पर्दे से आती सुबह की किरणें उसके चेहरे की आभा को बढ़ा रही थी.

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काव्या का यह रूप तो बस शादी में ही दिखा था वेस्टर्न आउटफिट में देख फिदा होने वाला विहान आज इस रूप में देख अपनी धड़कनों पर काबू न कर पाया.
“अरे, छोड़ो अब… बहूरानी को ज़्यादा तंग मत करो.”
वह इतराई कि तभी नीचे से आवाज आई, “बहू…”
और वह एकदम से भागी और वह उसके पीछे-पीछे…
ननद-ननदोई के हंसी के स्वर कान में पड़े, तो आंगन से बरामदे में जाता विहान सहसा रुक गया.
बरामदे में खड़ी काव्या के लजाते इशारे पर उसका ध्यान अपनी गर्दन और टी-शर्ट पर लगे सिंदूरी रंग की ओर गया. वहीं बैठे मां-बाबूजी को अख़बार के पीछे अपनी मुस्कुराहट छिपाते देख उसने झेंपकर सरसरी नज़र हंसती हुई काव्या पर डाली.
ननद-ननदोई, मां-बाबूजी के पीछे खड़ी काव्या को देख यूं लगा मानो वह इस घर का हिस्सा है और वह अजनबी…
जिसे बहुत कुछ समझना और जानना बाकी है.

मीनू त्रिपाठी

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