बेहिसाब ख़्वाहिशें, रिश्तों की उलझन, सबसे आगे बढ़ने की ज़िद, सब कुछ जल्दी से जल्दी पा लेने की इच्छाएं… इन सबने तमाम सुविधाएं देने के साथ ही हमारी लाइफ को स्ट्रेसफुल भी बना दिया है. कुछ लोग स्ट्रेस दूर करने के लिए दूसरे तरीके अपनाते हैं, तो कई लोग स्ट्रेस से बचने के लिए खाने का सहारा लेते हैं, जिसे स्ट्रेस ईटिंग या इमोशनल ईटिंग कहते हैं.
क्यों होता है ऐसा?
– प्राइमस सुपर स्पेशैलिटी हॉस्पिटल के जर्नल फिज़ीशियन डॉ. अनुराग सक्सेना के अनुसार, तनाव बढ़ने पर ऐडे्रनल ग्लैंड सक्रिय हो जाते हैं और ये कॉर्टिसोल नामक हार्मोन का स्राव करते हैं, जो भूख बढ़ाता है और खाने के लिए उकसाता है.
– जब स्ट्रेस वाली स्थिति ख़त्म हो जाती है, तो कॉर्टिसोल का लेवल गिर जाता है, पर अगर तनाव बना रहता है या इंसान तनाव से बाहर नहीं आता, तो कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ भी सकता है और तब लगातार कुछ खाते रहने की इच्छा होती है.
– तनाव के हार्मोन मुंह के स्वादवाली कोशिकाओं में छिपे होते हैं और तनाव की स्थिति में ये न स़िर्फ स्वाद को प्रभावित करते हैं, बल्कि मीठा खाने की इच्छा भी पैदा करते हैं.
– शोधकर्ताओं का मानना है कि जब मस्तिष्क तनाव में होता है, तो ग्लूकोकॉर्टिकोइड्स (जीसी) नामक हार्मोन्स सक्रिय हो जाते हैं. ये स्वाद की कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे मीठा खाने की तीव्र इच्छा होती है.
– अध्ययनों के अनुसार मीठा खाने की इच्छा और तनाव में संबंध है. यही वजह है कि कुछ लोग तनाव की स्थिति में अधिक मीठा खाते हैं.
– फिनलैंड में हुए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि बहुत ज़्यादा काम के कारण थके हुए लोग भी स्ट्रेस ईटिंग के शिकार हो जाते हैं.
– शोध में सामने आया है कि इस तरह खाने वाले लोग अक्सर खाते ही जाते हैं. तनाव या भावनात्मक अस्थिरता के कारण इन्हें हमेशा भूख लगी होती है और ऐसे लोग खाना तब तक बंद नहीं करते, जब तक प्लेट में रखा खाना ख़त्म नहीं हो जाए.
– मनोवैज्ञानिक नीरा पारेख के अनुसार, काम हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है और करियर में आगे बढ़ने के लिए हम एक जुनून की हद तक काम करते हैं और इस वजह से तनावग्रस्त रहते हैं
– यही नहीं, आजकल संबंधों में बने रहनेवाले टकराव के कारण भी युगल निरंतर तनाव से घिरे रहते हैं. ऐसी स्थिति में खाना ही उनके जीवन का एकमात्र सुख बन जाता है.
– उदासी या भावनात्मक रूप से आहत होने पर उसका आउटलेट अगर सही तरह से नहीं मिलता, तो हम खाने के माध्यम से उसे बाहर निकालने की कोशिश करते हैं.
– स्ट्रेस ईटिंग उन लोगों में ज़्यादा होती है, जो जल्दी से जल्दी तनाव से बाहर आना चाहते हैं.
– तनाव के समय फैट्स और कार्बोहाइड्रेटयुक्त भोजन खाने की इच्छा होती है. इससे शरीर में सेरोटोनिन का स्तर तुरंत बढ़ जाता है, जिसका प्रभाव ठंडक देनेवाला होता है.
– इसके अलावा एंडोफिन हार्मोन का स्तर भी बढ़ता है, जिसे ङ्गफील-गुडफ हार्मोन कहा जाता है. चूंकि अच्छा महसूस होता है, इसलिए धीरे-धीरे व्यक्ति स्ट्रेस ईटिंग का आदी हो जाता है.
ज़रिया बनाते हैं नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करने का
– यह जानना ज़रूरी है कि कौन-सी चीज़ें आपको इमोशनल ईटिंग के लिए उकसाती हैं?
– किन हालात, जगह अथवा भावनाओं के वशीभूत होकर हम खाने की ओर दौड़ते हैं.
– आमतौर पर नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए ही हम भोजन को इलाज मानते हैं, वहीं कई बार ख़ुशी भी इसका कारण हो सकती है.
– लक्ष्य हासिल करने की ख़ुशी में आप ख़ुद को पार्टी देते हैं. भावनाएं चाहे सकारात्मक हों या नकारात्मक- उनमें बहते इंसान को देर नहीं लगती.
– तनाव, डर, अवसाद, ख़ुशी, बोर होना, उत्तेजना या अन्य कई भावनाओं को शांत करने के लिए भी हम भोजन का सहारा लेते हैं.
– कई बार सामाजिक दबाव में भी पेट भरा होने के बाद भी आप कुछ न कुछ खा लेते हैं. यह दबाव भी स्ट्रेस ईटिंग की उपज होता है.
क्या हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं?
– स्ट्रेस ईटिंग से कुछ ख़तरनाक अंजाम भी हो सकते हैं. एक शोध में पाया गया कि तनाव के कारण ज़्यादा खानेवाली महिलाओं के शरीर में कैलोरी और फैट्स अधिक मात्रा में जमा हो जाता है.
– डायटीशियन मोना अग्रवाल के मुताबिक़, अधिक भोजन करने के कारण शरीर में वसा का प्रतिशत बढ़ सकता है और अपच व पेट की समस्या हो सकती है.
– महिलाओं में हार्मोन संबंधी असंतुलन भी पैदा हो सकता है, जिससे मासिक धर्म में अनियमितता आ सकती है.
– तनाव के दिनों में कुछ लोग अधिक खाना खाते हैं, तो कुछ बहुत कम भोजन करते हैं. इसकी वजह से लोगों में बाल गिरने, कैल्शियम की कमी, प्रतिरोधक क्षमता व चेहरे की चमक में कमी तथा एनीमिया की शिकायत हो जाती है.
– अत्यधिक खाने की वजह से वज़न बढ़ता है और इससे कई चिकित्सकीय जटिलताएं हो सकती हैं.
– डॉ. रमेश मलिक कहते हैं कि तनाव में भूख लगने पर हम पौष्टिक चीज़ें खाने की बजाय चिप्स, आइस्क्रीम, फ्रेंच फ्राईज़ जैसे जंक फूड खाते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इन चीज़ों में शुगर लेवल ज़्यादा होता है, जो हमें अच्छा महसूस कराता है.
– धीरे-धीरे हाल यह हो जाता है कि हर बार तनाव कम करने के लिए हम इन्हीं चीज़ों को खाना पसंद करते हैं.
शांत रहने की कोशिश करें
– जज़्बाती होकर खाने से हमारी भावनात्मक समस्याओं का हल नहीं होता. आमतौर पर इससे परेशानी बढ़ती ही है. तनाव तो ज्यों का त्यों बना ही रहता है, साथ ही हम ओवरईटिंग करने के कारण भी ग्लानि से भर जाते हैं.
– स्ट्रेस ईटिंग से बचने के लिए ख़ुद को शांत करें. ख़ुद से पूछें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं और आपको क्या चाहिए.
– कुछ मिनट आनेवाले कल की प्लानिंग में लगा दें. भले ही वह अगले महीने घर में होनेवाली शादी की तैयारियों के बारे में हो या दो दिन बाद आनेवाला आपके बेटे का जन्मदिन. इससे आप उस व़क्त की समस्या से कुछ देर के लिए बाहर आ जाएंगे और धीरे धीरे शांत
हो जाएंगे.
– तनाव कम करने के और भूख पहचानने के तरी़के सीखें. इससे आप अपनी भावनाओं को जानना भी सीखेंगे. एक शोध में सामने आया था कि ऐसा करनेवाली महिलाओं का फैट काफ़ी मात्रा में कम हुआ.
ख़ुद से प्यार करें
– यह बात ख़ासतौर से महिलाओं पर लागू होती है कि वे घर-परिवार, बच्चे, करियर इन सब में बिज़ी होने के कारण ख़ुद पर ध्यान देना ही भूल जाती हैं.
– यहां तक कि कई बार छोटी-छोटी ख़ुशियों को भी नज़रअंदाज़ कर देती हैं. धीरे-धीरे एक तरह की उदासीनता उन पर हावी होने लगती है और वही तनाव का रूप ले लेती है.
– दिल की बात किसी से शेयर न कर पाने के कारण, खाने की तरफ़ रुख कर लेती हैं और स्ट्रेस ईटिंग की शिकार हो जाती हैं.
– इससे बचने के लिए ज़रूरी है कि ख़ुद से प्यार करें और अपनी ज़रूरतों पर भी ध्यान दें और बिना किसी ग्लानि के ख़ुद के लिए समय निकालें.
– अपने लिए रोज़ाना 30 मिनट निकालें. इससे आप ख़ुद को रिचार्ज महसूस करेंगे. दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलें. थोड़े सामाजिक हो जाएं. सकारात्मक लोगों से मिलना आपका जीवन स्तर सुधारता है और आप तनाव जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहते हैं.
– सुमन बाजपेयी
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