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पुरुषों की चाहत- वर्किंग वुमन या हाउसवाइफ? (What Indian Men Prefer Working Women Or Housewife?)

चूल्हा-चौका देखनेवाली… ऑफ़िस की फ़ाइलें पकड़े घर में बच्चों को संभालनेवाली या फिर कंपनी की मीटिंग में व्यस्त रहनेवाली… आख़िर किस तरह की पत्नी (Wife) चाहते हैं आज के पुरुष (Men)? यह प्रश्‍न आज निश्‍चित तौर पर महत्वपूर्ण है और चर्चा का विषय भी.

समाज बदला… परिवार बदले… साथ ही परिस्थितियां भी बदली हैं. इन बदलावों ने समाज में स्त्री की भूमिका ही बदल दी है. आज की स्त्री एजुकेटेड है, स्मार्ट है, करियर वूमन है… अब वो घर की ज़िम्मेदारियों के साथ ही बाहर की ज़िम्मेदारियां भी बख़ूबी निभा रही है, क़ामयाबी की नई बुलंदियों को छू रही है, लेकिन पुरुष को उनका ये नया रूप कितना पसंद आ रहा है? वे वर्किंग पत्नी चाहते हैं या घरेलू पत्नी, ये जानने के लिए हमने कुछ पुरुषों से बातचीत की.

दोनों का काम करना ज़रूरी है

प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे सुरेश जोशी कहते हैं, “मेरी पत्नी स्कूल में पढ़ाती है. हालांकि यह काम बहुत मुश्किल तो नहीं है, फिर भी समय तो देना ही पड़ता है. वो समय, जो घर-परिवार व बच्चों का है. पर क्या करें, आजकल आर्थिक बोझ इतना बढ़ गया है कि दोनों का काम करना ज़रूरी है. पुरुषों को पसंद हो या न हो, महिलाओं का काम करना आज की ज़रूरत है. फिर भी मेरी व्यक्तिगत राय पूछें, तो मुझे लगता है कि घर-परिवार को बांधकर रखने के लिए स्त्री की ज़रूरत घर में ज़्यादा होती है.”

चाय भी ख़ुद बनानी पड़ती है

ऐसा सोचनेवाले जोशी अकेले नहीं हैं. बैंक में जॉब करनेवाले आदित्य की भी कुछ ऐसी ही सोच है. वे बताते हैं, “आप जब ऑफ़िस से थके-हारे घर आएं और आपको घर का दरवाज़ा ख़ुद ना खोलना पड़े, तो कितना अच्छा लगता है. दिनभर ऑफ़िस की समस्याओं को झेलने के बाद शाम को घर पर पत्नी का मुस्कुराता हुआ चेहरा नज़र आए तो सारी परेशानियां और थकान अपने आप भाग जाती हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि आजकल ऑफ़िस से घर आने के बाद चाय भी ख़ुद ही बनानी पड़ती है. ऑफ़िस की चिंताएं, ऑफ़िस की थकान घर आकर भी दूर नहीं होती. दूसरे दिन फिर उन्हीं सारी चिंताओं के साथ ऑफ़िस जाना पड़ता है. पत्नी के लिए भी घर और ऑफ़िस को एक साथ संभालना मुश्किल होता है.”

ज़रूरत न हो, तो बेहतर है स्त्री घर पर ही रहे

इन्हीं विचारों का समर्थन करते हुए मंगेश कहते हैं, “सबसे ज़रूरी बात है स्त्री और पुरुष के बीच संतुलन बने रहना. इसके लिए स्त्री का समझदार होना आवश्यक है. अगर किसी प्रकार की ज़रूरत ना हो, तो बेहतर है कि स्त्री घर पर ही रहे. हाउसवाइफ़ होना कोई शर्म की बात नहीं है. स्त्री को इस मानसिकता से बाहर निकलना  पड़ेगा. वे जो घरेलू काम करती हैं, उस पर उन्हें गर्व होना चाहिए. रही बात उनकी क़ाबिलियत की, तो वे अपनी रचनात्मकता और ज्ञान का उपयोग घर-परिवार और समाज की बेहतरी के लिए कर सकती हैं. अगर पत्नी-पति में से किसी एक का बाहर जाना ज़रूरी है, तो किसी एक का घर में रहना भी उतना ही ज़रूरी है. स्त्री के बाहर जाने से पुरुषों को घर में कई सारी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है, जिसे कभी-कभी वे हैंडल नहीं कर पाते.”

घर की सारी व्यवस्था चरमरा जाती है

अहमद शेख बताते हैं कि अगर स्त्री घर से बाहर जाती है, तो घर की सारी व्यवस्था ही चरमरा जाती है. घर की देखभाल स़िर्फ और स़िर्फ एक स्त्री ही अच्छी तरह कर सकती है. यह काम किसी पुरुष के बस की बात नहीं है. समाज और घर में स्त्री की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. तो यह था सिक्के का एक पहलू, अगर दूसरी ओर गौर करें, तो चीज़ें काफ़ी अलग दिखाई देंगी. दूसरे पहलू में आप पाएंगे कि पुरुषों ने इस बदलाव में अपने आपको बहुत अच्छी तरह से ढाल लिया है.

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महिलाओं की भी अपनी ज़िंदगी है

एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले ए. मुरली कहते हैं, “हमें इस बदलाव को नकारात्मक रूप में नहीं लेना चाहिए. यह एक अच्छी शुरुआत है. हमारी सामाजिक व्यवस्था हमेशा से पुरुष प्रधान रही है. उसे बदलने की ज़रूरत है. बदलते समय के साथ हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी, क्योंकि आज महिलाओं की अपनी ज़िंदगी है, उनका अपना करियर है और उनके अपने सपने भी हैं. केवल अपने आराम के लिए उनके सपनों को दांव पर लगाना तो ठीक नहीं. मैं अपनी पत्नी के बाहर काम करने से बहुत ख़ुश हूं. वह अपने टैलेंट का, अपनी क़ाबिलियत का सही उपयोग कर रही है.”

बदलाव का स्वागत करें

कुछ ऐसी ही सोच रखने वाले पूनेंद्र शाह बताते हैं, “आप दिनभर के लिए घर से बाहर रहते हैं. ऐसे में अगर आपकी पत्नी को बैंक, नेट आदि बाहर के काम आते हों, तो आपका भार काफ़ी हद तक कम हो जाएगा. इस तरह का व्यावहारिक ज्ञान अगर स्त्रियां बाहर जाएं, तो ही उन्हें मिल सकता है. आजकल स्त्रियां भी पुरुषों की तरह शिक्षा प्राप्त करती हैं. फिर घर में रहकर उस शिक्षा को व्यर्थ जाने देना मूर्खता है. समाज में आ रहे इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए.”

स्त्रियां कोई रचनात्मक कार्य करें

पवन कुमार के अनुसार, “घर में रहकर सास-बहू सीरियल्स देखकर अपनी मानसिकता ख़राब करने से अच्छा है कि घर से बाहर निकलकर स्त्रियां कोई रचनात्मक काम करें. अपनी बुद्धि की धार को तेज़ करें. हां, इसके लिए हम पुरुषों को घर के कामकाज में उनका हाथ बंटाना पड़ेगा.”

समाज स्त्री और पुरुष दोनों के कंधों पर टिका है

समाजशास्त्री कमल शर्मा के अनुसार, समाज की प्रगति में स्त्री की भूमिका अहम् है, इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. स्त्री और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं . स्त्री के जीवन में आए बदलाव समाज में बदलाव लाते हैं. पिछले कुछ सालों में स्त्री की भूमिका में काफ़ी बदलाव आया है. साथ ही सामाजिक व्यवस्था में भी कई तरह के बदलाव आए हैं. हमारे परिवार संयुक्त से एकल हो गए हैं. ऐसे में परिवार में सदस्य भी कम हो गए हैं. जहां पुरुषों पर आर्थिक भार बढ़ा है, वहीं स्त्रियों पर बाल-बच्चों, पति और घर की ज़िम्मेदारी का बोझ बढ़ा है. ना चाहते हुए भी कभी-कभी स्त्री को बाहर काम करने जाना पड़ता है, पर इसके साथ घर की ज़िम्मेदारियां, तो कम नहीं होतीं. इस भार से स्त्रियों में अवसाद या चिड़चिड़ापन आ सकता है, जो घर और समाज के संतुलन को बिगाड़ सकता है. अगर ऐसे में पुरुष स्त्री का हाथ थाम लें, तो बातें सुलझ सकती हैं. दूसरी बात स़िर्फ अपनी ज़िद या फिर ़फैशन या फिर किसी झूठी स्पर्धा या मान-सम्मान  के लिए बाहर काम पर जाना ख़ुद स्त्री के व्यक्तित्व के लिए भी हानिकारक हो सकता है. समाज स्त्री और पुरुष दोनों के कंधों पर टिका है, इसलिए समाज के इन दोनों ही घटकों को समझदारी से इस साझेदारी को निभाना चाहिए.

 

– विजया कठाले

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Aneeta Singh

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