विचारों की रेल पूरी तेज़ी से दौड़ रही थी. तभी फोन की घंटी बजी और रेल वर्तमान के स्टेशन पर…
"… आपको याद है, आप किस तरह मुझे मैथिलीशरण गुप्तजी की वो पंक्तियां सुनाते थे- जो भरा नहीं है भावों…
कोई याद खटखटाती रहीउम्र भर खिड़कीदरवाज़े चेतना के, परखुल न सका कोईयाद का झरोखा कहींरूह कसमसाती रहीसदियों तक…तब फलक से…
ममता यदि यह सब सुन लेती तब क्या होता? नहीं-नहीं, उसे कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए, वरना उसका बीमार…
जाने कितनी बिजलियां दौड़ गईं शरीर में एक साथ. उसने मेरे गाल ही नहीं छुए, मेरे वजूद को छू दिया…
“तू अभी भी अपनी उसी संकीर्ण मानसिकता से घिरी है. मेरे हिसाब से ये एक गुनाह है, जिसमें सिर्फ़ सज़ा…
"क्यों जा रही हो? यहीं रहो अपने घर, जो सम्मान कभी-कभी जाने से मिलता है, वो वहां बस जाने से…
“लेकिन फिर भी एक बात तुमसे कहना चाहूंगा, ख़ुद पर तरस खाना बंद करो और तब तक तुम्हारी ज़िंदगी में…
उसके निर्दोष चेहरे की निर्मलता, शांत मासूम आंखों की पवित्रता बार-बार मुझे किसी अलौकिक मूर्ति का आभास दे रही थी.…
सौम्य, सुसंस्कृत लडका रिया को पहली नज़र में ही भा गया. जब दोनो एक ही स्टेशन पर उतरे और एक…