कोई याद खटखटाती रही
उम्र भर खिड़की
दरवाज़े चेतना के, पर
खुल न सका कोई
याद का झरोखा कहीं
रूह कसमसाती रही
सदियों तक…
तब फलक से एक सितारा
टूट कर
समय के झरने में गिरा
और एक कहानी बहती हुई
रूह के दरिया में
उतर गई
बाँसुरी की धुन सी
खुल गए झरोखे कई
यादें सुनहरी किरणों सी
उतर आई अचेतन
देह की इस हवेली में
और खिल गए
प्रेम के हरसिंगार
मन के आँगन में
जब समय के
बहते झरने में बहती
उस कहानी में
मैंने अपना अक्स
तेरी आँखों मे देखा…
– विनीता राहुरीकर
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