प्यार भी खिलौने की तरह हो गया है शायद एक टूटा नहीं कि दूसरा खरीद लाए तुम्हें पाने…
बोल रहे लोग कि दुनिया बदल गई! कहां बदली दुनिया? औरत तो एक गठरी तले दब गई.. गठरी हो…
ग़ज़ल 1 गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया इक इश्क़…
World Poetry Day मैं जब भी अकेला होता हूं क्यों ज़ख़्म हरे हो जाते हैं क्यों याद मुझे आ जाती…
उस दिन हम मिले तो मिले कुछ इस तरह जैसे मिलती है धूप छाया से जैसे मोती से सीपी मिल…
ज़िंदगी पूरी लगा दी एक-दूसरे को परखने में सोचती हूं काश! समय रहते कुछ वक़्त लगाया होता एक-दूसरे को समझने…
जब भी मायके जाती हूं फिर बचपन जी आती हूं टुकड़ों में बंटी ख़ुशियों को आंचल में समेट लाती…
ग़म इतने मिले ख़ुशी से डर लगने लगा है मौत क्या अब ज़िंदगी से डर लगने लगा है सोचा था…
जो महफ़िलें रुलाती मुझे हैं उनसे अच्छी मेरी तन्हाई है जो महफ़िलें इल्ज़ाम लगाती हैं उनसे अच्छी मेरी तन्हाई…
जब-जब तुमसे मुलाक़ात होती है मेरे दिल में कोई गीत उतर आता है सामने आ जाते हो तुम मेरा सूना-सा…