बेशक़ीमती हैं पल तुम्हारे यूं ख़्वाबों में आया न करो माना ह्रदय में उमड़ता प्यार बहुत है कहूं क्या बेबस…
अपने ख़्वाबों की ज़िंदगी तो सभी जीते हैं.. पर ज़िंदगी तो वह है, जो किसी का ख़्वाब हो जाए... …
गड़ा हुआ सीने पे कब से पत्थर तीन तलाक़ का क्यों नहीं गिरने देती तुम, पाखंड निरे नकाब का बुरखे…
मैं, मेरा व्याकुल मन, जब रात देर तक जाग रहे थे इक मुट्ठी भर आसमान, हम हसरत से ताक रहे…
रेत पे लिखती रही, मिटाती रही, वो तेरा नाम था रातभर जिसे दिल गुनगुनाता रहा, वो तेरा नाम था... रूह…
कंचन देवड़ा मेरी सहेली वेबसाइट पर कंचन देवड़ा की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट…
तन्हाई का ज़ख़्म ज़ख़्म कोशिश दर कोशिश बढ़ता गया ज्यों-ज्यों मैं तन्हाइयों से लड़ता गया…