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वर्क फ्रॉम होम में महिलाएं कर रही हैं तमाम चुनौतियों का सामना… (Challenges Of Work From Home For Women…)

एक पुरुष सहकर्मी अपनी महिला बॉस के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में बिना पैंट-शर्ट पहने आ गया. उसने शराब भी पी रखी थी.
ऑफिस के एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान पुरुष कर्मचारी ने एक महिला सहकर्मी की तस्वीर का बिना पूछे स्क्रीनशॉर्ट ले लिया.
एक सीनियर अधिकारी महिला सहकर्मी को देर रात फोन कर कहता है, “मैं बोर हो गया हूं, कुछ निजी बातें करते हैं…”
लॉकडाउन के दौरान घर से काम कर रही कई महिलाओं की शिकायतें थी कि उन्हें बेवक़्त ग़ैरज़रूरी वीडियो कॉल, मिलने के लिए अनुरोध, वर्चुअल मीटिंग के दौरान उन पर झल्लाए जाने आदि यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घर से काम करनेवाली कामकाजी महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कई बार उन्हें शीर्ष अधिकारी आवश्यक काम के बहाने रात में फोन कर देते थे, तो कई बार ऑनलाइन बैठकों के दौरान उनके सहकर्मी ऐसे कपड़े पहनकर बैठ जाते, जिससे महिलाएं असहज महसूस करती थीं. इतना ही नहीं इन कामकाजी महिलाओं को सोशल मीडिया पर पीछा करने से और ऐसे व्यक्तियों द्वारा उनकी तस्वीरों पर टिप्पणी किए जाने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा था, जो उनके दोस्त भी नहीं थे. उन्हें अनावश्यक रूप से ‘मित्रता अनुरोध’ भेजे जाने जैसी समस्या से भी जूझना पड़ा.

इस क्षेत्र से संबंधित विशेषज्ञ के मुताबिक़
लॉकडाउन ने कई महिला पेशेवर के लिए ढेर सारी चुनौतियां खड़ी कर दी, जो इतने लंबे वक़्त से घर से काम कर रही थीं और अपने काम व ज़िंदगी के बीच संतुलन कायम करने में संघर्षरत थीं. महिलाएं ऑनलाइन हो रहे इस यौन उत्पीड़न को लेकर इतनी परेशान थीं कि वे समझ नहीं पातीं थीं कि जो कुछ हो रहा है, वह यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है या नहीं, और अगर आता है, तो घर से काम करते समय इसकी शिकायत कैसे करें. कई महिलाएं इस बारे में विशेषज्ञों से सलाह भी ले रही थीं.
‘आकांक्षा अगेन्स्ट हैरासमेंट’ नामक संगठन की प्रभारी आकांक्षा श्रीवास्तव का कहना है, “कंपनियों की ओर से इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं थी कि संगठन में घर से काम कैसे होना चाहिए और यह महिलाओं को भ्रमित करता है. मुझे लॉकडाउन लागू होने के बाद से हर रोज़ इस तरह के उत्पीड़न की चार-पांच शिकायतें मिल रही थी.”
हालांकि, लॉकडाउन के बाद राष्ट्रिय महिला आयोग के पास कम संख्या में ऐसी शिकायतें आई. इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह यह हो सकती है कि कई महिलाएं आधिकारिक रूप से शिकायत नहीं करना चाहती हों और दूसरा यह कि वे इस बात के लिए राय लेना चाहती हों कि वे ऐसे मामले में क्या कर सकती हैं.
आकांक्षा का कहना था कि लॉकडाउन के दौरान कई महिलाओं को अपनी नौकरी की सुरक्षा की चिंता सता रही थी, इसलिए वे तय नहीं कर पा रही थीं कि उन्हें आवाज़ उठानी चाहिए या नहीं. महिलाएं लगातार इस दुविधा में भी थीं कि उन्हें समस्या खड़ी करनेवाले के रूप में न देखा जाए.
उनका कहना था कि घर से काम करने में कुछ दिक़्क़तें तो आई ही और किसी को भी इसे स्वीकार करना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था और ऐसे में महिलाओं में अधिक तनाव उत्पन्न हो रहा था. आकांक्षा ने उदाहरण देकर कहा कि एक महिला को उसके बॉस ने अनावश्यक काम के बहाने रात के 11 बजे फोन किया, लेकिन जब बात हुई तो ऐसा कोई ज़रूरी काम नहीं था. बॉस ने ऐसे काम के बारे में बात की, जो आसानी से मेल के ज़रिए हो सकता था.
एक अन्य मामलों में एक महिला को उसके बॉस ने वीडियो कॉल कर पूछा कि क्या वह दिए गए काम को घर से करने में सक्षम है? क्योंकि वह पीछे अपने खेलनेवाले बच्चे से परेशान दिख रही थी. यहां पर महिलाओं के ऊपर पड़ रही घर की ज़िम्मेदारियों का उन्हें दोषी अनुभव कराया जाता है, असमय उनसे ऑनलाइन होने की मांग की जाती है और ऐसा न होने पर महिलाओं पर झल्लाहट उतारी जाती है. महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने के ये कुछ तरीक़े हैं. आकांक्षा का कहना है कि चूंकि हमारा पहले से विशुद्ध रूप से घर से काम करने का अनुभव कभी रहा नहीं, इसलिए महिलाओं के दिमाग़ में यह बात आती है कि क्या यह उत्पीड़न है? कोई उसकी सीमा कहां खींचे. कोई हावभाव को कैसे तय करे कि यह अपमानजनक या अश्लील है.
इन्फोसेक गर्ल्स संगठन की एक विशेषज्ञ ने कहा कि बहुत से लोग शिकायत नहीं करते, लेकिन वे जानना चाहते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि कई बार लोगों को यह एहसास नहीं रहता कि कॉल पर महिलाएं हैं और वे जान-बूझकर या अनजाने में अनुचित शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. विशेषज्ञों ने कहा कि जब हर कोई घर पर है, तो लोग किसी भी समय कॉल करते हैं, बैठक करते हैं. महिलाओं के लिए यह असुविधाजनक हो रहा था.
वर्क फॉर्म होम पहले भी चलन में रहा है, लेकिन कोरोना काल के दौरान ये बड़ी ज़रूरत बन गया. सरकारी से लेकर निजी कंपनियां तक वर्क फॉर्म होम को प्राथमिकता देने लगी थी. लेकिन इसे लेकर जागरूकता कम थी कि अगर घर पर काम करते हुए यौन उत्पीड़न होता है, तो वो किस क़ानून के तहत आएगा. महिलाएं ऐसे में क्या कर सकती हैं.
यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सहायता करनेवाली संस्था ‘साशा’ की संस्थापक और वकील कांति जोशी के अनुसार, पहले हमें यह समझना होगा कि कार्यस्थल की परिभाषा क्या है. कार्यस्थल का दायरा सिर्फ़ ऑफिस तक ही सीमित नहीं है. काम के सिलसिले में आप कहीं पर भी हैं या घटना काम से जुड़ी है, तो वो कार्यस्थल के दायरे में आती है.

कांति जोशी के अनुसार, उनके पास एक मामला आया था कि मैनेजर ने महिला सहकर्मी से कहा कि ‘लॉकडाउन में मिले हुए काफी दिन हो गए. मैं तुम्हारे घर के सामने से जा रहा हूं, चलो मिलते हैं.‘ इस तरह के मामले भी यौन उत्पीड़न का ही हिस्सा है. सेक्सुअल प्रकृति का कोई भी व्यवहार, जो आपकी इच्छा के विरुद्ध है, आप उसकी शिकायत कर सकती हैं. ऐसे मामलों की जांच के लिए 10 से ज़्यादा कर्मचारियोंवाली किसी भी कंपनी में आंतरिक शिकायत सिमिति बनी होती है.
दुर्भाग्यवश, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कामकाजी महिलाओं के लिए एक आम समस्या है. महिलाओं को क़ानूनी सहयोग देने और उनके उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष ) अधिनियम, 2013 में लाया गया था. प्रत्येक महिला को इस अधिकार को मान्यता दी गई है कि उसे नियोजन, कार्य स्थिति को ध्यान में रखे बिना कार्यस्थल पर सुरक्षित और संरक्षित वातावरण प्राप्त हो. इसे विशाखा गाइडलाइन के नाम से भी जाना जाता है.

यह भी पढ़ें: महिलाओं में क्यों बढ़ रहा है स्ट्रेस, क्या हैं साइड इफेक्ट्स? (Why Women Are More Stressed Than Men? What Are The Side Effects)

यौन उत्पीड़न, क्या है विशाखा गाइडलाइन?
वर्ष 1992 में भंवरी देवी, जो राजस्थान के एक गांव भटेरी की रहनेवाली थी, उनका बलात्कार हुआ था. क्योंकि उन्होंने बालविवाह का विरोध किया था, जिसकी उन्हें इतनी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी थी. बलात्कार के अलावा भी उन्हें कई मुसीबतें झेलनी पड़ी थी. भंवरी देवी मामले में क़ानूनी फ़ैसलों के आने के बाद विशाखा और अन्य महिला गुटों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया था कि कामकाजी महिलाएं के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित कराने के लिए संविधान की धारा 14, 19 और 21 के तहत क़ानूनी प्रावधान किए जाएं.
महिला गुट विशाखा और अन्य संगठनों की ओर से दायर इस याचिका को विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और भारत सरकार के मामले के तौर पर जाना गया. इस मामले में कामकाजी महिलाओं को यौन अपराध, उत्पीड़न और प्रताड़ना से बचाने के लिए कोर्ट ने विशाखा दिशा-निर्देश को उपलब्ध कराया. अगस्त 1997 में इस फ़ैसले में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की बुनियादी परिभाषाएं दी. कोर्ट ने वे दिशा-निर्देश भी तय किए, जिन्हें आम तौर पर विशाखा दिशा-निर्देश के तौर पर जाना जाता है. इसे तब भारत में महिला गुटों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत के तौर पर माना गया था.
लेकिन हाल ही में ऐसे बहुत से मामले आएं, जिनमें महिलाओं और विशेष रूप से उच्च शिक्षित युवा महिलाएं ने इस आशय के मुक़दमे दर्ज कराए कि उन्हें यौन प्रताड़ना का शिकार बनाया गया. ऑफिस या कहीं भी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ क़ानून तो बने, पर जागरूकता नहीं आई या फिर ख़ुद महिलाएं ही ऐसी किसी घटना को लेकर लोगों के बीच बातचीत या गपशप का विषय नहीं बनना चाहती. वो जानती है कि सिर्फ़ क़ानून के बल पर यौन स्वेच्छाचारिता नहीं रोका जा सकता, परिणामस्वरूप अपराधियों के ख़िलाफ़ कोई सार्थक कार्यवाई नहीं हो पाती है और इसलिए वे अधिकतर ऐसे मामलों को ख़ुद ही अपने स्तर से निपटा लेना पसंद करती हैं.

कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिए वर्कप्लेस बिल, 2012 में लाया गया था, जिसमें लिंग समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर कड़े क़ानून बनाए गए थे. यह क़ानून कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा दिलाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण था. इन क़ानूनों के तहत यह रेखांकित किया गया था कि कार्यस्थल पर महिलाओं, युवतियों के सम्मान बनाए रखने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं. अगर किसी महिला के साथ कुछ भी अप्रिय होता है, तो उसे कहां और कैसे अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए? अगर किसी भी कार्यस्थल पर इस तरह की व्यवस्था नहीं है, तो वह अपने वरिष्ठों के सामने इस स्थिति को विचार के लिए रख सकती है या फिर समुचित क़ानूनी कार्यवाई कर सकती है.
कार्यस्थल पर क़ानून 2012 में बनाया गया था कि किन परिस्थितियों में एक महिला कार्यस्थल पर किन स्थितियों के ख़िलाफ़ अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है, जो इस प्रकार है-
यौन उत्पीड़न में किसी प्रकार का अस्वीकार्य संपर्क, मांग या अनुरोध, अनुग्रह अथवा झुकाव के रूप में यौन प्रवृत्त व्यवहार, यौन रंजित टिप्पणी, दिल्लगी, अश्लील साहित्य दिखाना, यौन प्रकृति या कोई अस्वीकार्य शारीरिक, मौखिक अथवा गैर-मौखिक आचरण शामिल है.

निम्नलिखित परिस्थितियों में महिलाओं के साथ किया गया व्यवहार भी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है-
• यौन स्वीकृति के बदले नियोजन में लाभ पहुंचाना. ये लाभ स्पष्ट अथवा अस्पष्ट तरीक़े से दिए जा सकते हैं.
• यौन अस्वीकृति के मामले में.
• नौकरी से हटा देने की धमकी.
• महिला को अपमानित करना या उसके साथ ग़लत व्यवहार करना.
• कार्यस्थल पर डरानेवाला या घृणास्पद, भयभीत करनेवाला या प्रतिकूल वातावरण बनाना.
• महिला के साथ इस हद तक अपमानजनक व्यवहार करना, जिससे महिला के स्वास्थ्य अथवा सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े.
• वर्चुअल या ऑनलाइन यौन उत्पीड़न की बात करें, तो उसमें आपत्तीजनक मैसेज, ऑनलाइन स्टोकिंग, वीडियो कॉल के लिए दबाव डालना, अश्लील जोक्स और वीडियो कॉन्फ्रेंस में उचित ड्रेस में ना शामिल होना है.

वर्कप्लेस पर महिलाओं के साथ यौन शोषण के 50 फ़ीसदी मामले प्राइवेट सेक्टर में-
सवाल यह उठता है कि सेक्सुअल हैरासमेंट ऐट वर्कप्लेस एक्ट 2013 के तहत कार्यस्थलों पर शिकायतों के निपटारे के लिए समितियां तो बना दी गईं, लेकिन ये सही तरीक़े से काम कर रही है या नहीं, इसे सुनिश्चित कौन करेगा?
कार्यस्थल पर बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलों के मद्देनजर संसद में वर्कप्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार के उठाए कदमों के बारे में महिला एंव बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इसका जवाब देते हुए बताया था कि 2017 में कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन शोषण से बचाने के लिए एक ऑनलाइन ‘पोर्टल शी बॉक्स’ यानी ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स’ बनाया गया. इसको लॉन्च करने के पीछे सरकार का उद्देश्य था कि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं, केंद्र और राज्य सरकारों, संगठनों या असंगठित सेक्टर में महिलाओं को किसी भी तरह के यौन शोषण से बचाया जा सके.
दो साल बाद महिला एंव बाल विकास मंत्रालय ने इस पोर्टल पर दर्ज हुई शिकायत का आंकड़ा जारी किया, तो पाया कि आंकड़ों के मुताबिक़ 2017 से लेकर अब तक कार्यस्थल पर यौन शोषण के 612 मामले दर्ज हुए. इनमें 196 मामले केंद्र सरकार और 103 केस राज्य सरकारों से जुड़े सामने आए. प्राइवेट संस्थानों में ये आंकड़ा 313 रहा यानी कि 50 फ़ीसदी मामले प्राइवेट सेक्टर में हुए.

‘शी बॉक्स’ क्या है ?
शी बॉक्स यानी सेक्सुअल हैरेसमेंट इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स यानी इलेक्ट्रोनिक शिकायत पेटी.
इसके लिए आपको http://www.Shebox.nic.in/ पर जाना होगा. ये एक ऑनलाइन शिकायत निवारण प्रणाली है, जिसे महिला बाल विकास मंत्रालय चलाता है.
आप इस पेटी में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं. यहां संगठित और असंगठित, निजी और सरकारी सभी तरह के दफ़्तरों में काम करनेवाली महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं.

कैसे काम करता है ‘शी बिक्स’
सबसे पहले http://www.Shebox.nic.in पर जाएं. वहां जाकर आप अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं. वहां आपको दो विकल्प मिलेंगे. आप अपनी नौकरी के विकल्प पर क्लिक करें. उसके बाद एक फॉर्म खुल जाएगा. उस फॉर्म में आपको अपने और जिसके बारे में शिकायत करनी है, उसके बारे में जानकारी देनी होगी. ऑफिस की जानकारी भी देनी होगी.
राष्ट्रिय महिला आयोग ने भी ‘मी टू’ अभियान के बाद महिलाओं के लिए ncw.metoo@gmail.com बनाई. एम. जे. अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगानेवाली एशियन एज की सुपर्णा शर्मा इस तरह की पहल का स्वागत करती हैं. वो कहती हैं कि अगर केस कोई बाहर से मॉनिटर करेगा, तो बिल्कुल फ़ायदा होगा. अगर किसी महिला ने अपने बॉस के ख़िलाफ़ शिकायत की है, तो उसे सेवगार्ड मिलेगा. लेकिन ज़रूरी ये है कि इस ‘शी बॉक्स’ को सही तरीक़े से हैंडल किया जाए. नहीं तो इतनी हेल्पलाइन शुरू होती है, फिर कुछ होता नहीं है. इसका भी हश्र ऐसा हुआ तो दुखद होगा.
‘शी बॉक्स’ को इसलिए बनाया गया था, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यस्थलों पर सेक्सुअल हैरेसमेंट ऐट वर्कप्लेस एक्ट 2013 क़ानून का सही से पालन हो. अन्तराष्ट्रिय स्तर पर चले ‘मी-टू’ मूवमेंट के बाद शी बॉक्स को रिलॉन्च किया गया था.
मंत्रालय के मुताबिक़ शी बॉक्स में हर तरह की महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं. लेकिन रंजना का मानना है कि देश में बहुत-सी महिलाओं के पास इन्टरनेट की पहुंच और सुविधा नहीं होती. ‘मी टू’ की तरह ये शी बॉक्स भी अंग्रेज़ी बोलनेवाली और पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए है. लेकिन पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी इससे कोई फ़ायदा हुआ है या नहीं, यह भी जानना ज़रूरी है.
शी बॉक्स को लेकर महिलाओं में जानकारी का अभाव है और राष्ट्रिय महिला आयोग के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो (2018) एनसीडब्ल्यू में यौन उत्पीड़न के क़रीब 780 मामले दर्ज कराए गए थे. देश की आबादी के हिसाब से देखा जाए, तो यह आंकड़ा काफ़ी कम है. तो क्या इसे जानकारी का अभाव माना जाए या महिलाएं अब भी शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं?
इस पर सुपर्णा कहती हैं कि हमारे सिस्टम की सुस्ती भी एक वजह है और ये भी सच है कि अब भी कई महिलाओं ने चुप्पी नहीं तोड़ी है. उन्हें हिम्मत देने के लिए पहले सिस्टम को दुरुस्त करना होगा.

यह भी पढ़ें: रिसर्च- क्या वाकई स्त्री-पुरुष का मस्तिष्क अलग होता है? (Research- Is The Mind Of A Man And Woman Different?)

बता दें कि देश में हर 10वीं महिला को अपने वर्कप्लेस पर कभी न कभी यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. ज़्यादातर महिलाओं के वर्कप्लेस पर इसकी शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई आंतरिक शिकायत समिति भी नहीं थी. अध्ययन में पाया गया है कि निजी और असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं को वेतन को लेकर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. राष्ट्रिय महिला आयोग व दृष्टि स्त्री अध्ययन प्रबोधन केंद्र की ओर से ज़ारी एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है. पिछले दो-तीन सालों में देश के 64 फ़ीसदी जिलों की 74, 095 महिलाओं से बात कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.

वर्कप्लेस पर क्रेच की सुविधा नहीं
अध्ययन के मुताबिक़, भारत में 87 फ़ीसदी वर्कप्लेस पर बच्चों की देखभाल के लिए डेकेयर या क्रेच की सुविधा नहीं है. यह एक बड़ी वजह है कि ज़्यादातर महिलाओं को मां बनने के तत्काल बाद नौकरी छोड़नी पड़ती है. इतना ही नहीं, सिर्फ़ 69 प्रतिशत वर्कप्लेस ही ऐसे हैं, जहां शौचालय जैसी सुविधाएं मौजूद है और सिर्फ़ 51 प्रतिशत महिलाओं को ही मिल पाती है नियमित तौर पर छुट्टियां यानी बाकी की 49 प्रतिशत महिलाओं को छुट्टी के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
जब कभी भी महिला को लगे कि उसे यौन प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है, तो उसे इसकी शिकायत दर्ज करानी चाहिए. कार्यस्थल पर किस तरह का व्यवहार आपत्तिजनक या यौन प्रताड़ना की श्रेणी में आता है, इस बात को सभी समुचित तरीक़ों से सभी कार्मिकों और विशेष रूप से महिला कार्मिकों की जानकारी में लाया जाए. इसके अलावा कार्य, मानसिक विकास, स्वास्थ्य और स्वच्छता को देखते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कार्यस्थलों का वातावरण महिलाओं के ख़िलाफ़ न हो और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी महिला कर्मचारी यह न सोचे या सोचने पर विश्वास करे कि रोज़गार को लेकर वह सुविधाहीन स्थितियों में है.

– मिनी सिंह

Usha Gupta

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