एक ज़माना था जब सास-बहू के रिश्ते में घबराहट, संकोच, डर, न जाने कितनी शंकाएं व आशंकाएं रहती थीं. लेकिन वक़्त के साथ ही हालात बदले और लोगों की सोच भी. अब पहले जैसी डरवाली बात तो बिल्कुल ही नहीं रही. जहां सास ने बहू को बेटी के रूप में अपनाना शुरू कर दिया है, वहीं बहू भी सास को मां का दर्जा देने लगी हैं. ऐसे तमाम उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं, जब सास-बहू की मज़ेदार जुगलबंदी दिलों को ख़ुशनुमा कर जाती हैं.
इससे पहले संयुक्त परिवार होने की वजह से मर्यादा, बहुत-सी पाबंदियां और हिचक रहती थी. बहू सास को खुलकर अपनी बात कह नहीं पाती थी और ना ही सास बहू से दोस्ताना व्यवहार ही रख पाती थी. दोनों के बीच प्यारा-सा बंधन होने के बावजूद एक दूरी बनी रहती थी. यही दूरी वजह होती थी उनके क़रीब ना आने की. लेकिन जैसे-जैसे वक़्त और हालात बदलते गए, बहुतों की सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन आया. आज बहू अपनी सास से बहुत कुछ शेयर कर लेती है. अपने सुख-दुख का साथी बना लेती है. हर बात को बिना किसी संकोच के कह देती है, फिर चाहे वह खाना-पहनना हो या फिर रिश्तेदारी निभाना.
पहले मन में बहुत से सवाल रहते थे कि अगर ऐसा करूंगी, तो सासू मां क्या कहेंगी.. ससुरालवाले क्या सोचेंगे.. अक्सर कई सारी ग़लतफ़हमियां भी दिलोंदिमाग़ पर हावी रहती थीं, जिससे बहू खुलकर अपनी बात सास से कह नहीं पाती थी.
कहते है ना एक्स्पोज़र का नुक़सान है, तो फ़ायदे भी बहुत है. जिस तरह से आपसी रिश्ते में खुलापन आता गया, धीरे-धीरे रिश्ते मज़बूत होते चले गए. इसमें टीवी और फिल्मों ने भी अहम भूमिका निभाई. यह और बात है कि हम इसे स्वीकार नहीं करते, लेकिन कई बार देखा गया है कि छोटा पर्दा हो या सिनेमा उसका कहीं-ना-कहीं असर लोगों पर होता ही है. रिश्ते प्रभावित होते हैं. फिर वो दोस्ती हो, प्यार-मोहब्बत हो या सास-बहू का रिश्ता ही क्यों ना हो.
क्योंकि सास भी कभी बहू थी…
हमारी एक रिश्तेदार जो दो उच्च पढ़ी-लिखी बहुओं की सास थीं अक्सर कहा करती थीं कि उन्होंने अपनी दोनों बहुओं को पूरी आज़ादी दे रखी है. वह भी आज से नहीं, बल्कि सालों से यह नियम बना दिया है कि बहू को जो करना है.. जैसे करना है.. इसकी पूरी खुली छूट उन्होंने दे रखी है. इसका असर यह हुआ कि बहू ने भी सास के मान और इच्छाओं को सिर आंखों पर रखा. आज वे सहेलियों जैसी रहती हैं. वे कहती हैं कि हम यह क्यों भूल जाते हैं बहू भी किसी की बेटी है. उसके भी कुछ अरमान-इच्छाएं हैं. यह क्यों कहा जाए या फिर मान लिया जाए कि मायके से ससुराल आई है, तो उसे ख़ुद को बदलना ही है. ससुराल को हौव्वा क्यों बना दिया जाता है. बहू को बेटी की तरह ही सुख-सुविधा और स्वतंत्रता मिले, तो ससुराल में किसी बात का तनाव हो ही ना!.. बड़े सुलझे हुए ढंग से उन्होंने अपनी बात को समझाया. साथ ही मज़ाक में यह भी कहा कि हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए… क्योंकि सास भी कभी बहू थी… हम भी कभी बहू थीं, तो हमने जो अनुभव लिए, जो परेशानी झेली, तो हमारी यही कोशिश रहनी चाहिए कि हमारी बहू को उन सब दिक़्क़तों का सामना ना करना पड़े.
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आज जिस तरह से सास-बहू के रिश्ते को नई परिभाषा मिल रही है, उन छोटी-छोटी बातों को देखते-समझते हैं...
खट्टे-मीठे अनुभव…
फिल्मी हस्तियां भी अपने इस रिश्ते की ख़ूबसूरती को बहुत ही प्यार से जी रही हैं और इसे नई परिभाषा दे रही हैं. इसमें चाहे भाग्यश्री, ऐश्वर्या राय बच्चन, करीना कपूर, शिल्पा शेट्टी हो या समीरा रेड्डी. सभी अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी सास से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव उनके साथ शेयर करती रहती हैं. इन सब में समीरा रेड्डी तो टॉप पर हैं. वह अपनी सास के साथ ऐसे-ऐसे वीडियोज़ बनाती हैं और उसे अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर डालती हैं कि जिसे देखकर आप दंग रह जाएंगे. उनकी सास भी उतनी ही मॉडर्न और खुले दिल की हैं. वह भी बहू को भरपूर साथ देने से नहीं चूकतीं. फिर चाहे वह कोई रेसिपी बनानी हो, जैसे उन्होंने गोवा की फिश करी की रेसिपी बनाई थी और उसको एक नए अंदाज़ में पेश किया था. या फिर रसोड़े में कौन था… वायरल गाने को ही अपने अंदाज़ में सास-बहू और पोती ने अंजाम दिया था. देखने-सुनने में यह बहुत ही मस्तीभरा मज़ेदार लगता है, क्योंकि जहां बहू मॉडर्न है, तो सास भी कुछ कम नहीं है. सास-बहू में आपसी सामंजस्य और तालमेल ग़ज़ब का है. अब किसी बात का दबाव या बंधन नहीं है कि सास ऐसा कहेगी, वैसा कहेगी. अब मदर इन लॉ की जगह केवल मदर है, वहीं डॉटर इन लॉ बस डॉटर है. सास-बहू दोनों ही अपने रिश्ते को सहजता से जीते हैं और एक नई परिभाषा गढ़ रहे हैं, जिसमें बस प्यार, स्नेह और अपनापन है. यह नई परिभाषा बहुतों को रास भी आ रही है. कह सकते हैं कि वक़्त के साथ हर रिश्ते की भूमिका कमोबेश बदल रही है, उससे सास-बहू का रिश्ता भी अछूता नहीं है. सास ने बहू को बेटी के रूप में स्वीकार किया है. वे हमराज़ कहे या सहेली के तौर पर भी इस रिश्ते को जी रही हैं. वहीं बहू भी सारे संकोच, डर को त्यागकर सास को मां के रूप में स्वीकार कर रही हैं. मां, जिससे हम प्यार भी करते हैं, तो लड़ते भी हैं… जिससे हम शिकायत भी करते हैं, तो रुठते भी हैं. नई परिभाषा के तहत यही मां-बेटी सा अटूट संबंध अब सास-बहू में भी देखने मिल रहा है.
– ऊषा गुप्ता
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