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बच्चे भी होते हैं डिप्रेशन का शिकार… (Depression In Children)

कोरोना महामारी ने हम सभी के जीवन को काफ़ी कुछ बदल दिया है. इस महामारी ने मेंटल हेल्थ पर भी बहुत असर किया है. घर के बड़े लोग तो कोरोना वायरस के कारण उदासीनता से घिर ही रहे हैं, वहीं घर में रहनेवाले बच्चों के भी मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर हो रहा है. कहा जाता है कि हमेशा हंसते-ख़ुश रहनेवालों को कभी डिप्रेशन नहीं होता. बचपन में अपने यहां डिप्रेशन के बारे में कोई बात ही नहीं करता. हमारे यहां लोग मानते हैं कि छोटे बच्चों को डिप्रेशन जैसी समस्या कभी नहीं होती, पर यह बात सच नहीं है.

अनेक कारण ज़िम्मेदार होते हैं
भारत में बच्चों के डिप्रेशन को कोई गंभीरता से नहीं लेता. एक सर्वे के बाद पता चला है कि अध्ययन, पारिवारिक समस्या, आर्थिक समस्या, पारिवारिक संबंधों की समस्या आदि अनेक कारण बच्चों में डिप्रेशन की वजह बनते हैं. अगर बच्चों में इस डिप्रेशन की पहचान समय रहते न हो, तो वह उन्हें आत्महत्या की ओर तक ले जाता है. इसलिए बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण पहचनना ज़रूरी है.


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बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
गेम या अन्य एक्टिविटी से बच्चों की रुचि ख़त्म हो जाती है. उनका वज़न तेजी से घटने लगता है. किसी भी चीज़ में वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. पाचनतंत्र बिगड़ जाता है और बच्चा छोटी-छोटी बात में चिढ़ने लगता है. बच्चे की नींद कम-ज़्यादा होने लगती है. हमेशा मौत या आत्महत्या की बात करना… ये तमाम लक्षण बताते हैं कि बच्चे में डिप्रेशन का असर है. अगर ये लक्षण दो सप्ताह से अधिक दिखाई दें, तो डाक्टर की सलाह लेना चाहिए.

पैरेंट्स का टोकना भी डिप्रेशन की वजह बनता है
बच्चों पर ग़ुस्सा करने या उनके साथ मारपीट करने से भी बच्चों में डिप्रेशन या बेचैनी बढ़ती है. माता-पिता बात-बात पर बच्चों को टोकते हैं या उन्हें मारते हैं, ऐसे में बच्चों में डिप्रेशन या बेचैनी बढ़ती है. इसका कारण यह है कि इसका सीधा असर उनके दिमाग़ पर पड़ता है. एक शोध से पता चला है कि बच्चों के साथ अधिक सख्ती करने से उनके दिमाग़ के इमोशंस को कंट्रोल करनेवाले हिस्से पर असर पड़ता है, जिससे उनमें बेचैनी और डिप्रेशन बढ़ता है.


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माता-पिता क्या करें?
अगर बच्चे में डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दे रहे हों, तो पैरेंट्स को इन लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए. इस स्थिति में बच्चे के ध्यान को डायवर्ट करना ज़रूरी है. उन्हें बाहर घुमाने ले जाएं. उनके साथ आउटडोर गेम खेलें. ऐसे में उन्हें खुली हवा और धूप मिलना बहुत ज़रूरी है.
डिप्रेशन में बच्चे दुखी नहीं दिखाई देते, पर चिड़चिड़े हो जाते हैं. उन्हें ख़ुद पता नहीं चलता कि वे क्या कर रहे हैं. घर के बड़े लोगों को यह सब समझना पड़ेगा. कभी-कभी भूत की कहानी सुनकर भी ऐसे बच्चे हताश हो जाते हैं. ऐसे में बच्चों को ऐसी बातों से जितना हो सके, उतना दूर रखें. अगर यह समस्या उसी तरह चलती रहे, तो डाॅक्टर की मदद अवश्य लें

– स्नेहा सिंह


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Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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