जैसा कि नाम से थोड़ा-बहुत स्पष्ट होता है कि यह फोबिया यानी एक प्रकार का डर है. डिसाइडोफोबिया (Decidophobia) का मतलब है डिसीज़न यानी निर्णय लेने का भय. हम अपने आसपास भी देखते हैं कि बहुत-से लोग निर्णय लेने से घबराते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है. यह डर बहुत-सी बातों को लेकर हो सकता है कि उनका निर्णय कहीं ग़लत न निकल जाए, इस निर्णय से कहीं उन्हें कुछ नुक़सान न हो जाए, कहीं अपने ही लोग उनके बारे में कोई धारणा न बना लें… आदि.जैसा कि नाम से थोड़ा-बहुत स्पष्ट होता है कि यह फोबिया यानी एक प्रकार का डर है. डिसाइडोफोबिया का मतलब है डिसीज़न यानी निर्णय लेने का भय. हम अपने आसपास भी देखते हैं कि बहुत-से लोग निर्णय लेने से घबराते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है. यह डर बहुत-सी बातों को लेकर हो सकता है कि उनका निर्णय कहीं ग़लत न निकल जाए, इस निर्णय से कहीं उन्हें कुछ नुक़सान न हो जाए, कहीं अपने ही लोग उनके बारे में कोई धारणा न बना लें… आदि.
कारण
इस तरह के भय के कई कारण होते हैं, जैसे बाहरी अनुभव, जैसे- पहले कभी कोई दर्दनाक हादसा हुआ है, तो व्यक्ति हर बात को उससे ही जोड़कर देखने लगता है और कहीं न कहीं इसमें उसके जींस का भी हाथ होता है. उसे कुछ गुण, कुछ तत्व अपने पूर्वजों से मिलते हैं, जो उसे ऐसा बनाते हैं. शोध यह बताते हैं कि अनुवांशिकता यानी जेनेटिक्स और ब्रेन केमिस्ट्री के साथ लाइफ एक्सपीरियंस मिलकर इस तरह की स्थिति का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. इसके अलावा अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि जो लोग तनावग्रस्त होते हैं यानी जब आप डिप्रेशन में होते हैं, तब निर्णय लेने से अधिक डरते हैं, तो डिप्रेशन और डिसाइडोफोबिया का भी कहीं न कहीं एक अलग तरह का संबंध हो सकता है.
लक्षण
इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप किस हद तक इस तरह के फोबिया का शिकार हैं. सामान्य लक्षणों में घबराहट, बेचैनी, सांस लेने में द़िक्क़त, पसीना आना, हृदय गति का तेज़ होना, मितली, मुंह का सूखना, ठीक से न बोल पाना आदि हो सकते हैं. हालांकि कुछ मामलों में यह डर बहुत नुक़सान नहीं पहुंचाता, लेकिन अगर ये आपकी सामान्य ज़िंदगी पर असर डालने लगे, तो समझ जाइए कि एक्सपर्ट की राय ज़रूरी है.
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कब जाएं एक्सपर्ट के पास?
जब आपके लक्षण बहुत ज़्यादा गंभीर हो जाएं, तो समझ जाएं कि अब देर नहीं करनी चाहिए.
आप निर्णय लेने से बचने के लिए हद से आगे बढ़ जाते हैं: आप कोई काम करना तो चाहते हो, लेकिन निर्णय लेने के डर से उसे नहीं करते. यह डर इतना हावी हो जाता है कि आप निर्णय लेने की स्थिति से बचने के लिए कई तरी़के अपनाने लगते हो. हालांकि यह जानलेवा नहीं है, लेकिन डिसाइडोफोबिया आपके रिश्तों को और प्रोफेशनल लाइफ को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.
निर्णय लेने के लिए आप दूसरों पर निर्भर रहते हो: काउंसलर्स का कहना है कि आप हर निर्णय के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहते हो और धीरे-धीरे आपकी दूसरों पर निर्भरता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि आप ख़ुद कुछ कर ही नहीं पाते.
ग़लत लोगों और ग़लत तरीक़ों से गाइडेंस लेने लगते हो: ख़ुद निर्णय लेने की क्षमता को इस कदर खो देते हो कि आप ज्योतिषियों, बाबाओं या अन्य लोगों से सलाह लेने लगते हो. यहां तक कि अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए भी इन्हीं पर निर्भरता बढ़ जाती है, जो पूरी तरह अस्वस्थ है.
निर्णय लेने की स्थिति में पैनिक अटैक की आशंका: जैसे ही ऐसी परिस्थिति आती है कि आपको निर्णय लेना है, आपको पैनिक अटैक होने लगता है. आप बेचैन होने लगते हो, पसीना, हार्टबीट, मुंह का सूखना, चक्कर आना आदि लक्षण उभरने लगते हैं.
आपका निजी जीवन प्रभावित होने लगता है: निर्णय न ले पाने का यह डर जब आपके रिश्तों, करियर व अन्य बातों को प्रभावित करने लगता है, तब समझ जाइए कि आपको प्रोफेशनल की मदद लेनी होगी.
ख़ुद करें अपनी मदद
– ब्रह्मानंद शर्मा
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