शरद पूर्णिमा पर बरसेगी मां लक्ष्मी की कृपा.. चंद्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हो अमृत किरणों की बरसात करेंगे… (Happy Sharad Purnima 2021)
हिंदू पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.
इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूरे सालभर में इसी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है, जिससे चंद्रमा की हीलिंग प्रॉपर्टी भी बढ़ जाती है.
हिंदुओं द्वारा इसी दिन कोजागर व्रत, जिसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं, रखा जाता है.
इसे अमृत काल भी कहा जाता है. इस दिन महालक्ष्मी का जन्म हुआ था. मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं.
इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था.
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा धरती के बेहद क़रीब होने के कारण उसके प्रकाश में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे धरती पर गिरते हैं.
पुराणों के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं.
इस दिन रात्रि को मां लक्ष्मी देखती हैं कि कौन जाग रहा है और जो मां की भक्ति में लीन होकर जागरण करते हैं, उन्हें वे धन-वैभव से भरपूर कर देती हैं.
इसलिए इस दिन रात को मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें प्रिय चावल के खीर का भोग लगाया जाता है.
मां लक्ष्मी की कृपा से भक्तों को कर्ज़ से मुक्ति मिलती है, इसलिए इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरी प्रकृति लक्ष्मीजी का स्वागत करती है, ख़ासकर रात को देखने के लिए समस्त देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आते हैं.
पौराणिक कथा- एक साहूकार की दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत करती थीं. एक बार जहां बड़ी बेटी ने विधिवत पूर्णिमा का व्रत किया, वहीं छोटी बेटी ने व्रत छोड़ दिया. इस कारण छोटी बेटी के बच्चों की जन्म लेते ही मृत्यु होने लगी. लेकिन बड़ी बेटी के पुण्य स्पर्श से छोटी बेटी के बच्चे जीवित हो गए. तब से पूर्णिमा का यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लगा.
मान्यता अनुसार, शरद पूर्णिमा में चंद्रमा द्वारा अमृत किरणों की बरसात होती है, इसलिए चांदनी रात में चावल की खीर बनाकर रखने और खाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है. साथ ही इससे कई तरह की बीमारियों भी दूर होती हैं.