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कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान बच्‍चों का ध्‍यान कैसे रखें? (How You Can Take Care Of Children During Lockdown)

दुनियाभर में अचानक आए सोशल आइसोलेशन या क्वारंटाइन जैसी स्थिति में, लोगों का भयभीत और चिंतित होना स्‍वाभाविक है. ऐसे में इसका बच्‍चों पर भी काफ़ी असर पड़ रहा है. उनके मन में भी एक अनकहा डर बैठ जाना कोई बड़ी बात नहीं है. इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि लॉकडाउन के चलते वर्किंग पैरेंट्स को उनके बच्‍चों के साथ अधिक समय गुज़ारने का मौक़ा मिल रहा है, लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां भी बहुत हैं. लॉकडाउन हो जाने से, परिवारों को दिनभर बच्‍चों को संभालना पड़ रहा है. अधिकांश बच्‍चों की परीक्षाएं रद्द हो गई हैं और अभी उन पर पढ़ाई-लिखाई का दबाव भी नहीं है. लेकिन साथ ही पैरेंट्स को घर से ही काम करना पड़ रहा है और ऐसे में बच्‍चों को दिनभर व्‍यस्‍त रखना आसान काम नहीं है.
यहां डॉ. शौनक अजिंक्‍या, जो कोकिलाबेन धीरूभाई अम्‍बानी हॉस्पिटल के कंसल्‍टेंट साइकिएट्रिस्ट ने कुछ महत्‍वपूर्ण जानकारियां दी हैं, जिन्‍हें अभी और आगे के लिए भी ध्‍यान में रखा जा सकता है.

सोशल मीडिया का प्रभाव
इन दिनों सोशल मीडिया चौबीस घंटे उपलब्ध है. ऐसे में पैरेंटिंग के मायने पूरी तरह से बदल गए हैं. व्हाट्सएप पर ऐसे अनेक मैसेज प्राप्त होते हैं, जिनमें कई वेबसाइट्स व ऐप्‍स के बारे में जानकारी दी गई होती है. इन वेबसाइट्स व ऐप्‍स के ज़रिए आप छुट्टियों के दिनों में अपने बच्‍चों को दिनभर न केवल व्‍यस्‍त रख सकेंगे, बल्कि इनमें बताई गई गतिविधियों को करने से उनकी दिमाग़ी क्षमता भी बढ़ेगी. लेकिन ज़रूरी नहीं कि ये सारी जानकारियां बच्‍चों के लिए उपयोगी ही हों. ऐसे में पैरेंट्स का यह दायित्‍व है कि वो अपने बच्‍चों के लिए सही व उपयोगी ऐप्‍स व साइट्स का चुनाव करें.

अनुशासन
बच्‍चों से जुड़ी कुछ चीज़ों को लेकर समझौता न करें, जैसे- भोजन का समय, पढ़ने का समय, दैनिक व्‍यायाम और उचित व्यवहार. बाकी चीज़ों के बारे में बच्‍चों को स्‍वयं से निर्णय लेने दें. कठोर अनुशासन के चलते किसी भी गतिविधि के प्रति उनका उत्‍साह समाप्‍त हो सकता है. बच्‍चों को उनके इच्‍छानुसार शेड्यूल्‍स तय करने दें और उन्‍हें यह निर्णय लेने की छूट दें कि वो किस गतिविधि को कैसे करना चाहते हैं.

सहानुभूति
अपने बच्चों को इस समय का उपयोग उनके मन लायक तरीक़े से करने दें. यह उनके लिए ऐसा सुनहरा समय हो सकता है, जो शायद ही कभी दोबारा आए. नियमों को लेकर दिन में हर समय कठोरता न बरतें.

मज़ेदार चीज़ें करें
फिर ऐसी चीजें भी हैं, जो आप मस्ती के लिए एक साथ कर सकते हैं, जैसे- खाना पकाना, वीडियो गेम या इनडोर बोर्ड गेम खेलना. अगर बच्चे बहुत छोटे हैं, तो उन्हें कहानियां पढ़कर सुनाना भी उनके साथ समय बिताने का एक अच्छा तरीक़ा है.

सामाजिक दायित्‍व
बच्चों को सामाजिक दायित्‍व के बारे में बताएं. उन्हें बताएं कि हम घरों में इसलिए हैं, क्‍योंकि अभी ऐसा करने में ही इस देश और यहां के लोगों की भलाई है. इससे ही हम बीमारी का डटकर मुक़ाबला कर सकते हैं.

तुलना न करें
हम स्‍वयं से बहुत अधिक उम्मीदें लगा लेते हैं. हमेशा अपनी और अपने बच्‍चे की तुलना दूसरों से न करें. कोई भी परफेक्‍ट नहीं होता है.

बार-बार सलाह न दें
ऐसी सलाह न दिया करें, जिनका पालन आप स्‍वयं न कर सकें. वहीं काम करें, जो आपको सबसे अच्‍छा लगे.

बच्‍चों की भी बातें मानें
बच्चों को उनके अपने तरीक़े से ख़ुश रहने दें. अपने बच्चे से पूछे कि उन्हें किन चीज़ों को करने से ख़ुशी मिलती है. अपने निर्णयों में अपने बच्‍चे को भी शामिल करें, इससे उन्‍हें लगेगा कि उनकी सोच व उनके एहसास आपके लिए मायने रखते हैं. बच्चों को ख़ुश देखकर पैंरेंट्स को भी दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल जाती है.

पहले ख़ुद का ध्‍यान रखें
यदि आप अपना ध्यान नहीं रखते हैं, तो आप किसी और की देखभाल नहीं कर सकते. आपकी भावनात्‍मक क्रियाशीलता सर्वोच्‍च स्‍तर की होनी चाहिए, ताकि आप उस समय अपने बच्‍चे के साथ मौजूद हों, जब उसे वास्‍तव में आपकी ज़रूरत हो. ओवर कमिटिंग या ओवर एक्‍सटेंडिंग से बचने के लिए ख़ुद के लिए समय निकालना भी अच्‍छी आदत है, जो आपके बच्‍चे को सीखने को मिलेगी. बच्‍चे केवल अपने माता-पिता की कही हुई बातों से ही नहीं सीखते हैं, बल्कि वो उनके द्वारा किए जानेवाले कार्यों का भी अनुसरण करते हैं. यदि पैरेंट्स ख़ुशहाल रहेंगे, तो बच्‍चे भी ख़ुशहाल रहेंगे.

नई पीढ़ी का स्‍वागत करें
जनरेशन ज़ेड, मिलेनियल जनरेशन के बाद वाली पीढ़ी है, जो इस सेंचुरी के शुरू में या उसके बाद पैदा हुए हैं. पिछली पीढ़ियों की तुलना में जनरेशन ज़ेड के लिए घरों के अंदर रहकर वर्चुअल वर्ल्‍ड से जुड़े रहना अधिक आसान होगा. जनरेशन ज़ेड इस मायने में पिछली पीढ़ियों से अलग है, क्‍योंकि वे अधिक ग्‍लोबल और विविधतापूर्ण हैं. उनके पास अनगिनत ऐसे प्‍लेटफॉर्म्‍स व चैनल्‍स हैं, जिनसे वो जुड़ सकते हैं और कंट्रिब्‍यूट कर सकते हैं. युवाओं में हमेशा से मानवता को नए-नए तरीक़ों से परिभाषित किया है, लेकिन आज यह पहले से कहीं अधिक तेज़ी से और अधिक बार हो रहा है. जैसे-जैसे टेक्‍नोलॉजी और कनेक्टिविटी तेज़ी से बढ़ेगी, वैसे वैसे पीढ़ियां भी उभरेगी और आगे बढ़ेंगी.
अतः इस कोरोना काल में अपने बच्चों को अधिक-से-अधिक प्यार, सहयोग और प्रोत्साहन दें, ताकि वे परिस्थितियों का सहजता से सामना कर सकें और सकारात्मक रह सकें.

– ऊषा गुप्ता

Usha Gupta

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