स्टोर रूम की सफ़ाई करते हुए अचानक मेरी नज़र वहां शेल्फ में रखी पुरानी एलबम्स पर पड़ गई.
ना जाने कितनी बार देखा होगा यादों से भरे इन एलबम्स को मैंने, किंतु हर बार उसे देखने को मन ऐसे लालायित हो जाता है जैसे पहली बार देख रही हूं.
सफ़ाई को दरकिनार कर मैं वहीं बैठ एलबम देखने लगी. परिवार, बचपन, दोस्त-सहेलियों के साथ स्कूल-कॉलेज की ख़ूबसूरत यादों का अनमोल संग्रह था उन एल्बम्स में. उन्हीं तस्वीरों में कुछ तस्वीरें मेरी और तुम्हारी भी थीं… तुम्हारी तस्वीर देखते-देखते मैं भी स्कूल के दिनों में विचरण करने लगी. तुम मेरे पापा के अज़ीज़ मित्र के बेटे थे. हम एक साथ एक ही स्कूल पढ़ते थे. तुम मुझसे एक साल सीनियर थे. पता नहीं तुम्हारे व्यक्तित्व में क्या कशिश थी कि मैं मन ही मन तुमसे प्यार करने लगी.
स्कूल में जब तुम मुझे क्लास बंक करते देख मुझे हक़ से डांटते, तो मुझे तुम्हारी डांट बहुत अच्छी लगती. तुम्हारी डांट सुनने के लिए मैं जान-बूझकर ऐसी हरकतें करती.
जब भी तुम हमारे घर आते, तो मैं तुमसे बात करने का बहाना ढूंढ़ती. पर मेरे प्यार से बेख़बर तुम हमेशा हमारे मध्य एक मर्यादा की लकीर खींच देते.
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मुझे समझ नहीं आता था कि क्या तुमने कभी मेरे दिल और आंखों की भाषा पढ़ी नहीं या फिर पढ़ना नहीं चाहते थे. मैं जितना तुम्हारे नज़दीक आने का प्रयास करती, तुम उतनी ही दूर चले जाते. मुझे बहुत बुरा लगता.
इसी आंख-मिचौली में बीतते वक़्त के साथ तुम्हारा प्यार मेरे दिल में और गहरा हो गया. कॉलेज के बाद हम अपने जीवन के नए अध्याय को पूर्ण करने में व्यस्त हो गए. तुम शहर से बाहर चले गए थे.
वक़्त अपनी लय में बह रहा था. घर में अब मेरे विवाह की बातें होनी लगी थीं, पर मेरे हृदय पर तो तुम्हारा एकछत्र राज़ था. इससे पहले कि मैं तुमसे अपने एकतरफ़ा प्यार का इज़हार कर पाती, पापा ने मेरा रिश्ता अपने किसी मित्र के बेटे के साथ तय कर दिया. मैं बहुत रोई, गिड़गिड़ाई, शादी के लिए मना भी किया, किंतु सब निष्फल.
मैं बस अब शादी से पहले एक बार तुमसे मिलकर अपने प्यार का इज़हार करना चाहती थी. तुम्हें जी भरकर देखना चाहती थी और तुम्हारे गले लग कर जी भर के रोकर अपना दिल हल्का करना चाहती थी.
उस दिन जब मैं तुमसे मिलने आई थी, तो तुम्हें देखते ही तुम्हारे गले लग कर रोने लगी और रोते-रोते इज़हार-ए-इश्क़ भी कर दिया.
मेरी बात सुनकर तुम ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. तुम्हारी हंसी पर मुझे बहुत ग़ुस्सा आया.
तुम बड़े प्यार से मेरे आंसू पोंछते हुए बोले, “अभी तक नहीं समझी… पगली लगता है
तुमने कार्ड पर नाम ध्यान से नहीं पढ़ा. आरोही संग आदित्य, आदि-आदि… बोलते-बोलते प्यार तुम मेरा नाम आदित्य भूल गई. अरे हमारे मम्मी-पापा हमारे मन की बात जानते थे.”
“इसका मतलब तुम…”
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“हां आरोही, तुम्हारा प्यार एकतरफ़ा नहीं है, पर मैं तुम्हारे पापा का विश्वास नहीं तोड़ना चाहता था, इसलिए चुप रहा. तो फिर अब तैयार हो तुम मिसेज़ आदित्य बनने के लिए…” कहकर तुमने शरारत भरी नज़रों से देखा, तो मैंने शरमा कर तुम्हारे दिल पर अपना सिर छुपा लिया था. वर्षों बाद आज भी जब उस दिन के विषय में सोचती हूं, तो चेहरे पर तुम्हारे प्यार की लालिमा छा जाती है.
– कीर्ति जैन
Photo Courtesy: Freepik
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