वो शाम आज भी मेरी स्मृति पटल पर उतनी ही गहराई से सजीव है, जितनी गहराई से मैंने तुमसे प्रेम किया था अंजली. उस शाम को मैंने तुम्हें अंतिम बार देखा था और आज अचानक दस वर्ष बाद तुम्हें सुपर बाज़ार में देखा… वो भी इस हाल में… ऐसा लगा मानो मेरे हृदय के भीतर कुछ तेज़ चुभ गया हो. मेरी चहकती, खिलखिलाती अंजली आज एकदम विपरीत थी, सूना चेहरा, सूना माथा, सादे कपड़े… अचानक एक-दूसरे को देख हम जड़वत हो गए. समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले… कैसे शुरुआत करें.. शब्द जैसे गले में अटक गए थे.. तुम्हें दोबारा देखूंगा… ये तो मेरी कल्पना से भी परे था.
इतने वर्षों बाद अपने प्यार को इस हाल में देखना.. मुझसे गवारा नहीं हो रहा था. तुम्हारा सूने माथे के साथ तुम्हारी सूनी, उदास पनीली आंखें.. तुम्हारा सारा हाल बयां कर रही थी. तुम्हें देखने के ख़ुशी से ज़्यादा मेरा हृदय तुम्हारा सूना माथा देख कर उदास हो गया था. ख़ुश तो तुम भी हुई थी मुझे देखकर, पर मुझे अनदेखा कर रही थी.
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो तुम मेरा सामना करने से कतरा रही हो. बहुत अनुनय-विनय करने के बाद जब तुमने अपना थोड़ा समय मेरे साथ कॉफी पीने को दिया, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे मृत समान देह को फिर से सांसें मिल गई हो. कितने समय बाद हम यूं आमने-सामने बैठे थे. मेरे “कैसी हो तुम?“ कहते ही वर्षों पुराना हृदय में ठहरा हुआ सैलाब बह निकला.
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“शादी के एक वर्ष बाद ही बॉर्डर पर मेरे पति शहीद हो गए थे और ससुरालवालों ने मुझे मनहूस करार देकर घर से निकाल दिया था. मम्मी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाईं और चल बसी. भले ही पापा आर्मी में थे और कितने ही कठोर थे, पर वो कहते हैं ना की औलाद के आगे फ़ौलाद भी पिघल जाता है. वो मेरे ग़म में घुटने लगे. हमने वो शहर छोड़ दिया और वापस अपने शहर आ गए. अब एक स्कूल में टीचर की जॉब मिली
है. चलो.. चलती हूं.. पापा इंतज़ार कर रहे होंगे.“
तुम चली गई, पर तुम्हारी आंखों में अपने लिए उमड़ता प्रेम मुझे विचलित कर तुम्हें पुन: पाने के लिए लालियत हो गया. मेरा मन तुम्हारी यादों में भटकने लगा. अंजली… मेरा पहला… कहते हैं, प्रथम प्रेम.. एक ख़ूबसूरत अनुभूति होता है, जो आजीवन आपके हृदय में सजता है. अंजली और मैं पड़ोसी और सहपाठी थे. अक्सर जब हम स्कूल साथ आते-जाते, तुम्हारी चंचलता और मासूमियतभरी बातें मुझे मंत्र-मुग्ध कर देती थीं. तुम बोलती रहती और मैं सुनता रहता. जब तुम हंसती, तो ऐसा लगता मानो फूल बरस रहे हों. जब तुम मेरे साथ होती, तो मैं दुआ करता की वक़्त थम जाए और हम यूं ही साथ रहे. तुम्हारा वो कुर्ती के साथ चूड़ीदार पजामा पहनना, हाथों में ढेर सारी चूड़ियां, माथे पर छोटी-सी बिंदिया.. उस पर तुम्हारे लंबे, काले बाल… ख़ूबसूरत शब्द भी तुम्हारी ख़ूबसूरती के आगे फीका पड़ जाता. सादगी और ख़ूबसूरती का बेमिसाल संगम. और जब मेरे तारीफ़ करने पर तुम शर्मोहया से अपनी पलकें झुका लेती, तो ऐसा लगता जैसे काले बादल पर्वतों पर झुक रहे हों.
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हम दोनों ही एक-दूसरे के हाल-ए-दिल से वाक़िफ़ थे, किंतु प्यार का इज़हार कभी नहीं किया. वक़्त यूं ही बीत रहा था. उस दिन तो मैंने तुमसे अपने प्रेम के बारे में कहनेवाला ही था कि तुमने एक आर्मी ऑफिसर से अपनी शादी तय होने का समाचार सुना दिया. तुम अच्छी तरह से जानती थी कि तुम्हारे पापा एक सिविलीयन से तुम्हारा रिश्ता कभी नहीं स्वीकारते, इसलिए तुमने भी उस शादी को अपनी स्वीकृति दे दी थी. तुमने और तुम्हारे घरवालों ने वो शहर भी छोड़ दिया. मेरा प्रेम तो खिलने से पहले ही मुरझा गया.
उस शाम तुम्हारी और मेरी अंतिम मुलाक़ात थी. तुम तो चली गई थी, पर मेरी आत्मा, मेरा अस्तित्व सब कुछ अपने साथ ले गई. और दस वर्ष बाद आज तुमसे मिल कर फिर से जीने की इच्छा हो रही है मुझे अंजली. क़ुदरत हमारे अधूरे प्रेम के अध्याय को पूरा करने का एक और अवसर दे रही है और अब मैं इस अवसर को किसी भी क़ीमत पर नहीं खोना चाहता. मैं आ रहा हूं अंजली तुम्हारे पास… सदा के लिए तुम्हें अपना बनाने के लिए…
– कीर्ति जैन
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