ज़िंदगी में कामयाब होने, व्यावहारिक बनने, आगे बढ़ने में हमारा दिमाग़ ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी ऐसी कई आदतें हैं, जिनके कारण हमारा दिमाग़ कमज़ोर होता जाता है. यदि समय पर ध्यान न दिया जाए, तो स्थिति ख़तरनाक भी हो सकती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार ब्रेन लगातार काम करता रहता है. जन्म से मृत्यु तक हमारा ब्रेन लगातार एक्टिव रहता है. इसलिए हमें इसे हेल्दी रखने पर फोकस करना चाहिए. आइए, उन तमाम आदतों व बातों पर नज़र डालते हैं, जिनसे हमारा दिमाग़ कमज़ोर होता है. उन पहलुओं को भी जानते हैं, जिनसे ब्रेन को हेल्दी रख सकते हैंं.
अधिक मीठा खाने की आदत
अल्ज़ाइमर व डिमेंशिया दो ऐसी बीमारियां हैं, जो कमज़ोर याददाश्त का कारण बनती हैं. कई बार आपकी कुछ ग़लत आदतें भी याददाश्त कमज़ोर होने की वजह बनती हैं. शोध के अनुसार, रिफाइंड शुगर खाने वालों में डिमेंशिया व अल्ज़ाइमर का ख़तरा अधिक होता है, इसलिए यदि आप अधिक मीठा खाते हैं, तो अपनी इस आदत पर लगाम लगाएं. मीठा कम खाएं. हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि बॉडी में शुगर की अधिक मात्रा दिमाग़ की कॉग्नीटिव स्किल व सेल्फ कंट्रोल को प्रभावित करती है.
नाश्ता न करने की आदत
अक्सर देखा गया है कि सुबह के समय अधिकतर लोग चाय-कॉफी तो बराबर लेते हैं, लेकिन ब्रेकफास्ट स्किप कर जाते हैं. ऐसा न करें. सुबह का नाश्ता दिमाग़ के लिए ज़रूरी होता है. साथ ही हमारा खानपान सही होना भी बेहद ज़रूरी है. सुबह के नाश्ते से लेकर दोपहर व रात का भोजन सही और संतुलित लें, क्योंकि खानपान की लापरवाही शरीर और दिमाग़ दोनों को ही कमज़ोर बनाती है. लेकिन ध्यान रहे कि अधिक खाना भी ठीक नहीं. यदि आप लंच या फिर डिनर हैवी लेते हैं, तो इससे भी दिमाग़ में उलझन पैदा होती है. प्रोटीन, फाइबर, विटामिन से भरपूर डायट लें, जो ब्रेन को एनर्जेटिक और एक्टिव रखें.
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नशे की लत भारी पड़ती है दिमाग़ पर
अल्कोहल, स्मोकिंग, ड्रग्स, भांग आदि नशीले पदार्थों के सेवन से दिमाग़ कमज़ोर होता जाता है. गुटखा, तंबाकू की लत जहां सेहत के लिए हानिकारक होती है, वहीं यह सबसे ज़्यादा प्रहार दिमाग़ पर ही करती है. इसलिए कोशिश करें कि इस तरह के नशे से दूर रहें. मैकगिल यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार, स्मोकिंग न केवल ज़िंदगी को कम करता है, बल्कि दिमाग़ को भी कमज़ोर बनाता है. इससे दिमाग़ की नसें सिकुड़ने लगती हैं और याददाश्त कमज़ोर हो जाती है. दरअसल, स्मोकिंग से कॉर्टेक्स पर प्रभाव पड़ता है, जो मेमोरी पावर व लैंग्वेज़ स्किल्स के लिए हानिकारक है.
मोबाइल, टीवी, लैपटॉप का एडिक्शन
माना आज सोशल मीडिया का युग है, हर शख़्स टेक्नो फ्रेंडली रहना चाहता है, पर अपनी सेहत की क़ीमत पर बिल्कुल नहीं. हर चीज़ की एक सीमा होती है और अति तो नुक़सानदेह होती ही है, फिर वो मोबाइल फोन हो, टीवी या कंप्यूटर ही क्यों न हो. आज अधिकतर लोग, ख़ासकर युवा वर्ग इन सबका इतना आदी हो गया है कि इनके बिना वो अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता. लेकिन आपकी यही आदत आपके ब्रेन को डैमेज करने में ख़ास भूमिका निभाती है. मोबाइल फोन से फेसबुक, इंस्टाग्राम पर सर्फिंग करना, वीडियो, पोस्ट आदि देखते रहना लोगों का प्रिय शौक बन गया है, परंतु यही हैबिट लॉन्ग टर्म में जी का जंजाल बन जाती है. कुछ तो ऐसे भी होते हैं, जिन्हें बेवजह टीवी के चैनल्स बदलते रहना, निरुद्देश्य रील्स, वीडियो देखते रहने की आदत सी रहती है. कइयों का तो यह भी कहना है कि वे ऐसा न करें, तो उन्हें नींद ही न आए. देर रात तक चैटिंग करते रहने का भी सीधा असर आपके दिमाग़ पर पड़ता है. इसलिए बेहतर होगा कि दिनभर स्क्रीन को देखते रहने की लत को अपनी इच्छाशक्ति व प्रयासों से धीरे-धीरे कम करें.
नेगेटिव ख़बरों का दिमाग़ पर पड़ता है बुरा असर
इन दिनों चैनल्स हो या सोशल मीडिया हर जगह पर पॉज़िटिव से ज़्यादा निगेटिव न्यूज़ अधिक देखने-पढ़ने को मिलती हैं. दिनभर ख़बरों को देखते रहने की भी आदत सी बनी हुई है. जाने-अनजाने ये हमारे दिलोदिमाग़ को इस कदर प्रभावित करती हैं कि उदासी व नकारात्मकता भरी सोच बढ़ती चली जाती है. बेवजह का ग़ुस्सा दिमाग़ पर हावी होने लगता है. नकारात्मक समाचार का कई बार इतना बुरा प्रभाव पड़ता है कि व्यक्ति अलग-थलग सा रहने लगता है. लोगों से कटने लगता है. अकेले रहना अधिक पसंद करने लगता है. ये ख़बरें मन पर इतनी हावी हो जाती हैं कि अंदर ही अंदर खोखला करने लगती हैं. ख़बरें अच्छी हों या बुरी, दोनों का ही दिमाग़ पर अलग-अलग असर होता है. जहां अच्छी ख़बरें दिमाग़ को हेल्दी रखने में सहायक होती हैं, वहीं बुरी व नकारात्मक न्यूज़ ब्रेन को डैमेज करते हैं. ऐसे में भरसक कोशिश करें कि बैड न्यूज़ की जगह गुड न्यूज़ देखने पर फोकस करें, जो हमें गुड फील कराएं और ब्रेन को भी स्ट्रॉन्ग बनाएं.
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दिनचर्या सही तो दिमाग़ भी तंदुरुस्त
हमेशा से ही यह बात कही जाती रही है कि रात को जल्दी सोना और सुबह समय पर उठना सेहत के लिए फ़ायदेमंद रहता है. जब आपका सोने-उठने का समय सही रहता है, तब दिमाग़ पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है. ज़िंदगी के प्रति नज़रिया अच्छा रहता है. चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है. इसके विपरीत यदि आप कभी भी सोते और उठते हैं यानी देर रात तक जागते रहना, सुबह बहुत लेट उठना, तब इसका सबसे अधिक प्रभाव ब्रेन पर पड़ता है. दिनभर सुस्ती सी बनी रहती है, आलस सो अलग. बेहतर होगा कि अपने रूटीन को सही करें. टाइम मैनेजमेंट को महत्व दें. समय पर सोना और उठना न केवल दिनभर तरोताज़गी का एहसास कराता है, बल्कि दिमाग़ को भी तंदुरुस्त रखता है.
हादसों व बीते कल से उबरें
कई बार हमारे जीवन में ख़ासकर बचपन में हुए कोई हादसे या ट्रॉमा का हमारे दिलोदिमाग़ पर बरसों तक बुरा असर बना रहता है. यदि आपके साथ ऐसी कोई घटना या दुर्घटना हुई हो, तो उससे उबरने की कोशिश करें. यदि ज़रूरत लगे, तो सायकोलॉजिस्ट की भी मदद ले सकते हैं. दरअसल, हमारी आदत सी बन जाती है उन बीते हुए दुख भरे लम्हों को याद करने की. इस तरह कल तो दुखी थे ही, कल को याद कर हम आज को भी ग़मगीन कर लेते हैं. आगे चलकर यही ज़ख़्म नासूर बन जाते हैं और दिमाग़ को कमज़ोर करने लगते हैं. इस तरह के हादसे दिमाग़ पर लंबे समय तक बने रहने से इसका दिमाग़ के फंक्शनिंग पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
इन बातों का भी ध्यान रखें
* ख़ूब पानी पीएं. प्यासे लोगों की तुलना में पानी पीने वाले लोगों का दिमाग़ 14% अच्छे से काम करता है.
* आप दिमाग़ से जितना अधिक काम लेंगे, वो उतना ही शॉर्प व क्रिएटिव होगा.
* हर रोज़ एक्सरसाइज़ करने से ब्रेन को एनर्जी मिलती है और वह अधिक बेहतर ढंग से काम करता है.
* कम या अधिक दोनों तरह की नींद का दिमाग़ पर बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लें.
* दिमाग़ को तेज करने वाले फूड्स- बादाम, अखरोट, ब्रोकली, ग्रीन टी, कद्दू के बीज, डार्क चॉकलेट इन सबमें दिमाग़ व याददाश्त को बूस्ट करने वाले गुण पाए जाते हैं. इन्हें अपने डेली डायट में शामिल करें.
* ब्रेन को हेल्दी रखने के लिए हर रोज़ मेडिटेशन, ध्यान करें. इससे ब्रेन शांत व एक्टिव रहता है और उसकी कार्य क्षमता भी बढ़ती है.
हेल्थ अलर्ट
– स्ट्रेस से बचें. इससे किडनी कॉर्टिसॉल पैदा करती है, जिससे दिमाग़ की कोशिकाओं पर बुरा असर पड़ता है.
– जंक फूड में एमएसजी नमक एडिटिव होता है, जो दिमाग़ के न्यूरॉन रिसेप्टर्स को नुक़सान पहुंचता है, इसलिए जंक फूड
कम खाएं.
– मुंह ढककर सोने से शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, जो दिमाग़ को रिलैक्स होने में बाधा पहुंचाता है.
– यदि आप छोटी-छोटी बात पर ग़ुस्सा होते हैं, तो इस आदत को बदलें. ग़ुस्से से दिमाग़ की रक्त धमनियों पर दबाव पड़ता है, जो उन्हें अस्वस्थ बनाता है.
– ईयरफोन से तेज़ आवाज़ में म्यूज़िक सुनने से ब्रेन टिशूज़ को नुक़सान पहुंचता है, अतः धीमी आवाज में म्यूज़िक सुनें.
– अकेले रहने की आदत का भी दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. ब्रेन को फिट रखने के लिए थोड़ा सोशल होना भी ज़रूरी है.
– ऊषा गुप्ता
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