बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपना डंका बजाने वाली देसीगर्ल प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) भले ही इंडस्ट्री से थोड़ी दूर हो गई हैं, लेकिन फैन्स…
बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपना डंका बजाने वाली देसीगर्ल प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) भले ही इंडस्ट्री से थोड़ी दूर हो गई हैं, लेकिन फैन्स के बीच उनके लिए दीवानगी का आलम पहले ही तरह की बरकरार है. प्रियंका बॉलीवुड की एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जिन्होंने हिंदी फिल्मों में तो नाम कमाया ही है, लेकिन हॉलीवुड में भी उन्होंने अपना टैलेंट दिखाकर दुनिया भर के दर्शकों का दिल जीता है. इस बात से हर कोई वाकिफ है कि प्रियंका ने निक जोनस से शादी की है, पर उनका नाम बॉलीवुड के कई कई एक्टर्स के साथ जुड़ चुका है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रियंका जब 17 साल की थीं, तब उन्हें पहली बार किसी से प्यार हुआ था. इसके साथ एक्ट्रेस ने एक इंटरव्यू में अपने पहले प्यार के साथ-साथ अपने पहले किस का अनुभव भी शेयर किया था. आइए जानते हैं.
अपने बेबाक और बिंदास अंदाज़ के लिए मशहूर प्रियंका चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें 17 साल की उम्र में पहली बार प्यार हुआ था. हालांकि टीनएज में हुई इस मोहब्बत को प्रिंयका प्यार से ज्यादा आकर्षण मानती हैं. प्रिंयका की मानें तो उन्हें पहली बार जिस शख्स के लिए आकर्षण हुआ था, उसे वो प्यार समझ बैठी थीं. यह भी पढ़ें: पति निक जोनस के लिए चीयरलीडर बनी प्रियंका चोपड़ा, लॉस वेगास में दिया प्यारा सा सरप्राइज (Priyanka Chopra Turns Cheerleader For Hubby Nick Jonas, Gives Him The Sweetest Surprise In Vegas)
वहीं एक्ट्रेस ने इंटरव्यू में अपने पहले किस का मज़ेदार किस्सा भी शेयर किया. एक्ट्रेस से जब उनके पहले किस के अनुभव के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने बताया था कि उनका पहला किस एकदम क्षणभंगुर था, जिसके बारे में उन्हें पता भी नहीं चला था. प्रियंका की मानें तो उनका पहला किस बेहद क्षणिक था, जिसके एहसास के बारे में उन्हें पता भी नहीं चल पाया था.
अपने पहले प्यार और पहले किस के अनुभव को शेयर करने के साथ ही एक्ट्रेस ने अपने डर और खराब आदत के बारे में भी खुलकर बात की थी. प्रियंका की मानें तो उनकी सबसे खराब आदत यह है कि वो जल्दी ही इमोशनल हो जाती हैं और ज्यादा सोचती हैं. उन्होंने कहा कि वो अपनी इस खराब आदत को बदलना चाहती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अगर किसी चीज़ से सबसे ज्यादा डर लगता है तो वो है याददाश्त खोने का डर. प्रियंका की मानें तो वो अपनी याददाश्त खोने से डरती हैं.
उधर, जब प्रियंका चोपड़ा से पूछा गया कि क्या वह लव ट्राएंगल में रही हैं तो एक्ट्रेस ने इस सवाल का जवाब बहुत मज़ेदार अंदाज़ में दिया था. उन्होंने कहा था कि जब दो लड़के आपको पटाने की एक साथ कोशिश करते हैं तो अच्छा लगता है. यह भी पढ़ें: प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस की कमाई जानकर उड़ जाएंगे होश, जानें कितनी है दोनों की नेट वर्थ (You Will Be Shocked After Knowing the Income of Priyanka Chopra And Nick Jonas, Know Their Net Worth)
अपनी प्रोफेशन और पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहने वाली प्रियंका चोपड़ा सलमान खान की अच्छी फ्रेंड मानी जाती हैं. उन्होंने सलमान के साथ कई फिल्मों में काम भी किया है. उन्होंने सलमान खान को लेकर तीन बातें बताई थीं, जिसके मुताबिक सलमान एक अच्छे एक्टर हैं, इंटेलिजेंट हैं और उन्हें गलत समझा जाता है.
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ये माना समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी. समाज कहने को तो पहले से कहीं ज़्यादा मॉडर्न ही गया है. लाइफ़स्टाइल बदल गई, सुविधाएं बढ़ गईं, लग्ज़री चीजों की आदतें हो गई… कुल मिलाकर काफ़ी कुछ बदल गया है, लेकिन ये बदलाव महज़ बाहरी है, दिखावाहै, छलावा है… दिखाने के लिए तो हम ज़रूर बदले हैं लेकिन भीतर से हमारी जड़ों में क़ैद कुछ रूढ़ियां आज भी सीना ताने वहीं कि वहींऔर वैसी कि वैसी खड़ी हैं… थमी हैं… पसरी हुई हैं. जी हां, यहां हम बात वही बरसों पुरानी ही कर रहे हैं, बेटियों की कर रहे हैं, बहनों की कर रहे हैं और माओं की कर रहे हैं… नानी-दादी, पड़ोसन और भाभियों की कर रहे हैं, जो आज की नई लाइफ़स्टाइल में भी उसी पुरानी सोच के दायरों में क़ैद है और उन्हें बंदी बना रखा हैखुद हमने और कहीं न कहीं स्वयं उन्होंने भी. भले ही जीने के तौर तरीक़ों में बदलाव आया है लेकिन रिश्तों में आज भी वही परंपरा चली आ रही है जिसमें लड़कियों को बराबरी कादर्जा और सम्मान नहीं दिया जाता. क्या हैं इसकी वजहें और कैसे आएगा ये बदलाव, आइए जानें. सबसे बड़ी वजह है हमारी परवरिश जहां आज भी घरों में खुद लड़के व लड़कियों के मन में शुरू से ये बात डाली जाती है कि वोदोनों बराबर नहीं हैं. लड़कों का और पुरुषों का दर्जा महिलाओं से ऊंचा ही होता है. उनको घर का मुखिया माना जाता है. सारे महत्वपूर्ण निर्णय वो ही लेते हैं और यहां तक कि वो घर की महिलाओं से सलाह तक लेना ज़रूरी नहीं समझते. घरेलू कामों में लड़कियों को ही निपुण बनाने पर ज़ोर रहता है, क्योंकि उनको पराए घर जाना है और वहां भी रसोई में खाना हीपकाना है, बच्चे ही पालने है तो थोड़ी पढ़ाई कम करेगी तो चलेगा, लेकिन दाल-चावल व रोटियां कच्ची नहीं होनी चाहिए.ऐसा नहीं है कि लड़कियों की एजुकेशन पर अब परिवार ध्यान नहीं देता, लेकिन साइड बाय साइड उनको एक गृहिणी बनने कीट्रेनिंग भी दी जाती है. स्कूल के बाद भाई जहां गलियों में दोस्तों संग बैट से छक्के मारकर पड़ोसियों के कांच तोड़ रहा होता है तो वहीं उसकी बहन मां केसाथ रसोई में हाथ बंटा रही होती है.ऐसा नहीं है कि घर के कामों में हाथ बंटाना ग़लत है. ये तो अच्छी बात और आदत है लेकिन ये ज़िम्मेदारी दोनों में बराबर बांटीजाए तो क्या हर्ज है? घर पर मेहमान आ जाएं तो बेटियों को उन्हें वेल्कम करने को कहा जाता है. अगर लड़के घर के काम करते हैं तो आस-पड़ोस वाले व खुद उनके दोस्त तक ताने देते हैं कि ये तो लड़कियों वाले काम करता है.मुद्दा यहां काम का नहीं, सोच का है- ‘लड़कियोंवाले काम’ ये सोच ग़लत है. लड़कियों को शुरू से ही लाज-शर्म और घर की इज़्ज़त का वास्ता देकर बहुत कुछ सिखाया जाता है पर संस्कारी बनाने के इसक्रम में लड़के हमसे छूट जाते हैं.अपने घर से शुरू हुए इसी असमानता के बोझ को बेटियां ससुराल में भी ताउम्र ढोती हैं. अगर वर्किंग है तो भी घरेलू काम, बच्चों व सास-ससुर की सेवा का ज़िम्मा अकेले उसी पर होता है. ‘अरे अब तक तुम्हारा बुख़ार नहीं उतरा, आज भी राजा बिना टिफ़िन लिए ऑफ़िस चला गया होगा. जल्दी से ठीक हो जाओ बच्चेभी कब तक कैंटीन का खाना खाएंगे… अगर बहू बीमार पड़ जाए तो सास या खुद लड़की की मां भी ऐसी ही हिदायतें देती है औरइतना ही नहीं, उस लड़की को भी अपराधबोध महसूस होता है कि वो बिस्तर पर पड़ी है और बेचारे पति और बच्चे ठीक से खानानहीं खा पा रहे. ये चिंता जायज़ है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं, लेकिन ठीक इतनी ही फ़िक्र खुद लड़की को और बाकी रिश्तेदारों को भी उसकीसेहत को लेकर भी होनी चाहिए. घर के काम रुक रहे हैं इसलिए उसका जल्दी ठीक होना ज़रूरी है या कि स्वयं उनकी हेल्थ केलिए उसका जल्दी स्वस्थ होना अनिवार्य है? पति अगर देर से घर आता है तो उसके इंतज़ार में खुद देर तक भूखा रहना सही नहीं, ये बात बताने की बजाय लड़कियों को उल्टेये सीख दी जाती है कि सबको खिलाने के बाद ही खुद खाना पत्नी व बहू का धर्म है. व्रत-उपवास रखने से किसी की आयु नहीं घटती और बढ़ती, व्रत का संबंध महज़ शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से होता है, लेकिनहमारे यहां तो टीवी शोज़ व फ़िल्मों में इन्हीं को इतना ग्लोरीफाई करके दिखाया जाता है कि प्रिया ने पति के लिए फ़ास्ट रखा तोवो प्लेन क्रैश में बच गया… और इसी बचकानी सोच को हम भी अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्साबना लेते हैं. बहू की तबीयत ठीक नहीं तो उसे उपवास करने से रोकने की बजाय उससे उम्मीद की जाती है और उसकी सराहना भी कि देखोइसने ऐसी हालत में भी अपने पति के लिए उपवास रखा. कितना प्यार करती है ये मेरे राजा से, कितनी गुणी व संस्कारी है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सुप्रिया कई दिनों से लो बीपी व कमज़ोरी की समस्या झेल रही थी कि इसी बीचकरवा चौथ भी आ गया. उसने अपनी सास से कहा कि वो ख़राब तबीयत के चलते करवा चौथ नहीं कर पाएगी, तो उसे जवाब मेंये कहा गया कि अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो देख लेना, सारी ज़िंदगी तुझे माफ़ नहीं करूंगी. यहां बहू की जान की परवाहकिसी को नहीं कि अगर भूखे-प्यासे रहने से उसकी सेहत ज़्यादा ख़राब हो गई तो? लेकिन एक बचकानी सोच इतनी महत्वपूर्णलगी कि उसे वॉर्निंग दे दी गई. आज भी हमारे समाज में पत्नियां पति के पैर छूती हैं और उनकी आरती भी उतारती दिखती हैं. सदा सुहागन का आशीर्वाद लेकरवो खुद को धन्य समझती हैं… पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने पर वो फूले नहीं समाती हैं… ऐसा नहीं है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेना कोई ग़लत रीत या प्रथा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बेहद ज़रूरी है और ये हमारेसंस्कार भी हैं, लेकिन पति को परमेश्वर का दर्जा देना भी तो ग़लत है, क्योंकि वो आपका हमसफ़र, लाइफ़ पार्टनर और साथी है. ज़ाहिर है हर पत्नी चाहती है कि उसके पति की आयु लंबी हो और वो स्वस्थ रहे लेकिन यही चाहत पति व अन्य रिश्तेदारों कीलड़की के लिए भी हो तो क्या ग़लत है? और होती भी होगी… लेकिन इसके लिए पति या बच्चों से अपनी पत्नी या मां के लिए दिनभर भूखे-प्यासे रहकर उपवास करने कीभी रीत नहीं… तो फिर ये बोझ लड़कियों पर क्यों?अपना प्यार साबित करने का ये तो पैमाना नहीं ही होना चाहिए.बेटियों को सिखाया जाता है कि अगर पति दो बातें कह भी दे या कभी-कभार थप्पड़ भी मार दे तो क्या हुआ, तेरा पति ही तो है, इतनी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता, रिश्ते नहीं तोड़े जाते… लेकिन कोई उस लड़के को ये नहीं कहता कि रिश्ते में हाथ उठानातुम्हारा हक़ नहीं और तुमको माफ़ी मांगनी चाहिए.और अगर पत्नी वर्किंग नहीं है तो उसकी अहमियत और भी कम हो जाती, क्योंकि उसके ज़हन में यही बात होती है कि जो कमाऊसदस्य होता है वो ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. उसकी सेवा भी होनी चाहिए और उसे मनमानी और तुम्हारा निरादर करने का हक़भी होता है.मायके में भी उसे इसी तरह की सीख मिलती है और रिश्तेदारों से भी. यही कारण है कि दहेज व दहेज के नाम पर हत्या वआत्महत्या आज भी समाज से दूर नहीं हुईं.बदलाव आ रहा है लेकिन ये काफ़ी धीमा है. इस भेदभाव को दूर करने के लिए जो सोच व परवरिश का तरीक़ा हमें अपनाना हैउसे हर घर में लागू होने में भी अभी सदियों लगेंगी, क्योंकि ये अंतर सोच और नज़रिए से ही मिटेगा और हमारा समाज व समझअब भी इतनी परिपक्व नहीं हुईं कि ये नज़रिया बदलनेवाली नज़रें इतनी जल्दी पा सकें. पत्नी व महिलाओं को अक्सर लोग अपनी प्रॉपर्टी समझ लेते हैं, उसे बहू, बहन, बेटी या मां तो समझ लेते हैं, बस उसे इंसान नहींसमझते और उसके वजूद के सम्मान को भी नहीं समझते.गीता शर्मा