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व्यंग्य- संबोधन सूचक नया शब्द…  (Satire- Sambodhan Suchak Naya Shabd…)

“अंकल, अपना बैग हटा लीजिए, मुझे बैठना है.”
जनाब अंकल शब्द के महात्म से परिचित नहीं थे, अतः अपने से बड़ी महिला के द्वारा अंकल पुकारे जाने से आहत होकर बोले, “बेटा, बैठ तो जाओ पर देखना हाथ खिड़की से बाहर मत निकालना, घायल होने का ख़तरा रहता है.”
वह महिला काफ़ी देर तक इन्हें घूरती रही. बेचारे घबराकर बोले, “सॉरी आंटी, अगर मेरी बात बुरी लगी हो तो.”
अब महिला के लिए यह असहय हो गया. ‘बेटा’ फिर भी ठीक था, पर आंटी?

अंग्रेज़ों ने हमारे देश को बहुत कुछ दिया है. वैसे जितना दिया है, उससे करोड़ गुना लिया है. आज भी हर साल कई भगोड़ों को शरण दे रहे हैं. जो कुछ भी उन्होंने हमें दिया, उनमें भाषा का बहुत महत्व है. हमें ऐसी भाषा दी कि हम अपनी भाषा को भूलने लगे. मातृभाषा तो दूर की बात है अपनी राजभाषा से भी हम अनभिज्ञ बने रहने में गर्व की अनुभूति करते हैं.
यहां तक कि जो राजभाषा अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए हैं वे पहले तो ख़ुद को राजभाषा अधिकारी न बताकर ऑफिशियल लैंग्वेज ऑफिसर बताते हैं. और राजभाषा को हतोत्साहित करने का काम करते हैं. काम के आधार पर इन्हें राजभाषा हतोत्साही अधिकारी का पदनाम मिलना चाहिए.

जब हमारे बच्चे पूछते हैं कि उन्यासी मतलब क्या होता है, तो हम अगल-बगल उपस्थित व्यक्ति को बहुत ही गर्व से देखते हैं कि देखो हम पैदा भले ही भारत में हो गए हों, देखने में भले ही पक्के रंग के हैं, पर दिल से, जिगर, नज़र और आत्मा से हम अंग्रेज़ ही हैं. इसका प्रमाण यह है कि हमारे बच्चे को नहीं पता कि उन्यासी क्या होता है. बड़े गर्व से हम बताते हैं कि उन्यासी मतलब एटी नाइन. अगर कोई टोक देता है कि एटी नाइन नहीं सेवेंटी नाइन, तो हमारा चेहरा और भी देदीप्यमान हो उठता है कि देखो हमारे बच्चे ही नहीं, हम भी ठीक से नहीं जानते कि उन्यासी का मतलब क्या होता है. झेंप कर उस व्यक्ति को सॉरी, थैंक यू कहते हैं. 

व्यंग्य- राशिफल और जीवन‌ (Satire- Rashifal Aur Jeevan)

फिर बच्चे को समझाते हैं कि उन्यासी मतलब सेवेंटी नाइन, नवासी मतलब एटी नाइन… आदि आदि.
एक शब्द बड़ा ही लोकप्रिय हो गया है अंग्रेज़ी का और वह है अंकल. अंग्रेज़ों के यहां अंकल में चाचा, ताऊ, ताया,  मामा, फूफा, मौसा, सभी आते हैं. हमने इससे अधिक व्यापक अर्थ में इस शब्द को लिया है. बहुत से शब्दों को हमने व्यापक रूप में लिया है. यही कारण है कि इंडियन इंग्लिश भी अब अंग्रेज़ी का एक रूप हो गया है. तो अंकल शब्द को हमने इतने व्यापक रूप में अपना लिया है कि सामने जो भी हो, उसे अंकल कहकर पुकार लेते हैं.
आंटी के बिना अंकल अधूरे रहते हैं, अतः आंटी शब्द का भी बहुतायत से प्रयोग होता है. परंतु महिला को आंटी कहने में थोबड़ा बेरंग या बदरंग होने का ख़तरा बना रहता है. अतः देखभाल कर, सोच-समझ कर सिर्फ़ उन महिलाओं को ही आंटी कहा जाता है, जिन्हें चलने-फिरने में और अंग संचालन में थोड़ी तकलीफ़ होती है, ताकि वे दौड़ा-दौड़ा कर न मारें. शेष के लिए भाभी या दीदी शब्द ही उपयुक्त रहता है.
बस में एक तीस वर्षीय बंदे को एक पैंतीस वर्ष की बंदी ने सीट से बैग हटाने के लिए संबोधित किया, “अंकल, अपना बैग हटा लीजिए, मुझे बैठना है.”
जनाब अंकल शब्द के महात्म से परिचित नहीं थे, अतः अपने से बड़ी महिला के द्वारा अंकल पुकारे जाने से आहत होकर बोले, “बेटा, बैठ तो जाओ पर देखना हाथ खिड़की से बाहर मत निकालना, घायल होने का ख़तरा रहता है.”

व्यंग्य- मैं अवसाद हूं… (Satire- Main Avsad Hoon…)

वह महिला काफ़ी देर तक इन्हें घूरती रही. बेचारे घबराकर बोले, “सॉरी आंटी, अगर मेरी बात बुरी लगी हो तो.”
अब महिला के लिए यह असहय हो गया. ‘बेटा’ फिर भी ठीक था, पर आंटी? वह उस सीट को छोडकर दूर चली गई. माननीया को ऐसे असभ्य व्यक्ति के बगल में बैठना गंवारा नहीं था, जो अपने से बड़ी महिला के द्वारा अंकल संबोधित करने पर षडयंत्रपूर्वक उसे आंटी संबोधित करे.
इस घटना का वर्णन करने का मेरा एक उद्देशय है. सभी अंकलों से अनुरोध है कि कृपया अंकल संबोधित होने पर व्यथित महसूस न करें. शब्द भी जीव की तरह होते हैं. इनकी भी यात्रा होती है. इनकी भी अवस्था होती है. अब अंकल शब्द संबोधन का शब्द बन गया है, जैसे- अजी, हे, अरे, अहो, महोदय, सर, एजी, भाईसाहब, बहनजी  आदि. पर यदि अपने चौखटे को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो आंटी शब्द के बारे में ऐसी धारणा न रखें. यह पहले भी ख़तरनाक शब्द था और अभी भी है.
-‌ विनय कुमार पाठक

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Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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