कहानी- बैकअप फ्रेंड (Short Story- Backup Friend)

विनीता राहुरीकर

चाय का एक गरम घूंट भरते हुए मनीषा ने मुस्कुराकर मृदुल को देखा, “कोेई भी कभी परफेक्ट नहीं होता. ना अजीत परफेक्ट है और ना ही मैं. पर हर किसी को एक बैकअप दोस्त की ज़रूरत होती है जीवन में.”
“बैकअप दोस्त?” मृदुल ने आश्‍चर्य से पूछा
.

आज सुबह से ही मनीषा के हाथ बड़ी तेज़ी से काम कर रहे थे. वैसे भी उसके काम करने की गति तेज़ थी, लेकिन आज हाथ अतिरिक्त ऊर्जा से भरे हुए थे. वह सुबह उठ भी अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी गयी थी. थोड़ी ही देर में मृदुल की फ्लाइट आनेवाली थी. अजीत मृदुल को लेने एयरपोर्ट की ओर निकल चुके थे. मृदुल अजीत के बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन सिर्फ़ अजीत के ही क्यों जब से विवाह हुआ है, पन्द्रह वर्ष हो गए मृदुल मनीषा के भी तो कितने क़रीब आ चुके हैं.
क्षण भर को मृदुल की पसंदीदा खट्ठी-मीठी तुअर दाल में कोकम डालते मनीषा के हाथ ठिठक गए. मृदुल का नाम सोचते ही चेहरे पर एक मीठी-सी मुस्कान आ गयी. मृदुल. अपने नाम के अनुरूप, सौम्य, नम्र, शांत. सबके मन को समझनेवाला, सबके मन को पहचानकर उसी अनुरूप साथ चलनेवाला. क्या है मनीषा का? बड़ा भाई, जेठ, दोस्त या…
दुनिया चाहे जो नाम दे पर मनीषा के लिए तो मृदुल उसके शुद्ध सखा हैं. खुले शुभ्र बादलों की अठखेलियों से भरे ताज़े नीले स्वच्छ आकाश जैसा निर्मल और स्वच्छन्द रिश्ता. हरी-भरी घास के बीच में उगे चमकीले सूरजमुखी जैसा ताज़गी और दिव्यता भरा रिश्ता. मृदुल का स्वभाव व्यवहार भी तो इतना परिपक्व, संतुलित और खुला हुआ है कि किसी भी प्रकार के संकोच या संशय का कहीं कोई स्थान ही नहीं है.
दोनों बच्चे श्रेयांश और यशांश भी अपने मृदुल चाचा के साथ इतना घुले-मिले हैं कि उनके आने की ख़बर सुनते ही चहकने लगते हैं. आज तो मनीषा ने दोनों को बताया ही नहीं था कि मृदुल चाचा आने वाले हैं, नहीं तो वो स्कूल ही नहीं गए होते. मनीषा का काम लगभग पूरा हो चुका था. मृदुल की शाम को छह बजे किसी क्लाइंट से मीटिंग थी. दिनभर वो घर पर ही रहेंगे. अजीत के ऑफिस जाने के बाद और बच्चों के स्कूल से वापस आने के पहले बहुत वक़्त रहेगा दोनों के पास गप्पे मारने के लिए. दोनों के बीच विषयों की सूची भी तो बहुत लंबी है. बचपन, स्कूल, कॉलेज, जूलॉजी, केमिस्ट्री के साथ फूल-पत्ते, घर, परिवार, समाज, किताबें, लेखक, फिल्में. ना जाने कितने अनगिनत टॉपिक हैं बस एक बार बातें शुरू होने की देर है.
और इस बार तो पूरी चार दिनों के लिए आ रहे हैं मृदुल. नौ बज गए थे. फ्लाइट आठ बजे आ गयी होगी. साढ़े आठ पौने-नौ बजे भी एयरपोर्ट से वापस निकले होंगे, तो साढ़े नौ बजे तक घर पहुंच जाएंगे.
मनीषा किचन साफ़ करके नहाने चली गयी. साढ़े नौ बजे चाय चढ़ा दी धीमी आंच पर. मनीषा की तरह ही मृदुल भी चाय के ख़ासे शौकीन थे.

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ठीक समय पर अजीत और मृदुल घर पहुंच गए. मनीषा ने बाहर जाकर उनका स्वागत किया. नाम के अनुरूप ही मृदु सी मुस्कान लिए मृदुल ने घर में प्रवेश किया. मनीषा चाय ले आयी. चाय पीने के बाद अजीत नहाने चली गए और फिर टिफिन लेकर ऑफिस निकल गए. मृदुल का भी नहाना हो गया था. मनीषा दो कप चाय बना लायी. ड्रॉइंगरूम में बैठकर दोनों बातें करने लगे. एक-एक बात निकलती गयी और कब दो बज गए पता ही नहीं चला. श्रेयांस और यशांश स्कूल से लौट आए मृदुल को देखकर चहकने लगे.
दूसरे दिन मृदुल की मीटिंग दिन में ही थी, तो वो अजीत के साथ ही ऑफिस के लिए निकल गए. मनीषा को थोड़ी मायूसी हुई कि आज मृदुल से बातचीत नहीं हो पाएगी.
घर के काम निपटाकर मनीषा थोड़ा आराम करने की नियत से पलंग पर लेटी थी कि दोनों बच्चे स्कूल से वापस आ गए. आते ही दोनों ने हल्ला मचा दिया. दोनों को ही साइंस के दो-दो प्रोजेक्ट दूसरे दिन स्कूल में जमा करवाने थे. दोनों बच्चे रुआंसे हो रहे थे, और उनसे अधिक मनीषा को रोना आ रहा था. ये स्कूलवाले भी अजीब होते हैं. एक तो इतने मुश्किल प्रोजेक्ट दे देते हैं कि बच्चों से बनते ही नहीं हैं उनकी मांओं को ही बनाने पड़ते हैं, उस पर दो-चार दिन का समय भी नहीं देते. अब मांएं घर का काम करें या बच्चों के प्रोजेक्ट बनाती रहे. मनीषा बच्चों को खाना खिलाकर तुरंत काम में जुट गयी. ये तो अच्छा हुआ कि ज़रूरी सामान घर में उपलब्ध था, नहीं तो पहले तो स्टेशनरी की दुकान पर भागना पड़ता. कभी श्रेयांश की मदद करवाती कभी यशांश की. स्टडी टेबल दोनों बच्चों के चार्ट बनवाने में छोटा पड़ रहा था, तो मनीषा ने सारा सामान डायनिंग टेबल पर इकट्ठा रख लिया. काम करते कब अजीत के ऑफिस से वापस आने का समय हो गया पता ही नहीं चला. कार की आवाज़ सुनकर मनीषा की तंद्रा टूटी. शाम के छह बज गए थे. अजीत और मृदुल वापस आ गए थे.
“ये क्या?” घर में पैर रखते ही अजीत झल्लाकर बोले.
“घर में दो-दो स्टडी टेबल हैं, फिर भी डायनिंग टेबल पर ही तुम लोग पूरा फैला कर रखते हो. घर में कभी भी पैर रखो, हमेशा फैला बिखरा ही रहता है.”
“दोनों के प्रोजेक्ट स्टडी टेबल पर आ नहीं रहे थे, तो यहां बैठ गयी. कल ही जमा करने हैं, तो इतना समय भी नहीं था कि एक-एक कर दोनों का काम करवा देती.” मनीषा उठते हुए बोली.
अजीत कुछ और कड़वा बोलने जा रहे थे कि मृदुल चहककर बोले, “अरे वाह प्रोजेक्ट बनाने में बड़ा मज़ा आता है. बताओ क्या बनाना है, अभी बनवा देता हूं. मनीषा एक कप बढ़िया-सी चाय पिला दो.” दोनों बच्चों के चेहरे खिल गए. मनीषा भी चाय बनाने किचन में चली आयी. मृदुल ने कड़वे होते माहौल को संभालकर तुरंत हल्का-फुल्का बना दिया, वरना अजीत जाने कब तक चिकचिक करते रहते और मृदुल के सामने मनीषा को कितना अपमानजनक लगता. आजकल अजीत हर समय मनीषा के काम में मीन-मेख ही निकालते रहते हैं ये नहीं सोचते कि बड़े होते बच्चों के साथ एक औरत की ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं.
मनीषा ने सबके लिए चाय बनाई. मृदुल बच्चों के प्रोजेक्ट तैयार करने में लगे हुए थे. मनीषा चैन से खाना बनाने लगी. खाना खाने के बाद मनीषा और मृदुल फिर बच्चों के काम में लग गए. थोड़ी देर बाद अजीत सोने चले गए. मनीषा और मृदुल ने बच्चों के साथ मस्ती-मज़ाक करते-करते कब सारे प्रोजेक्ट तैयार कर दिए बच्चों को पता ही नहीं चला.
“यू आर ग्रेट चाचाजी. थैंक्यू सो मच.” दोनों मृदुल के गले में बांहें डालकर झूल गए.
“चलो गुडनाइट अब सो जाओ दोनों.” मृदुल हंस दिए. बच्चे प्रसन्न मन से सोने चले गए.
मनीषा बहुत ख़ुश थी. कुछ लोगों का स्वभाव तनावपूर्ण वातावरण को भी सरल-सहज बना देता है. कड़वाहट को भी मिठास में बदल देता है.
अजीत के स्वभाव के कारण घर भर में एक बोझीलता-सी छाने लगती है. कुछ लोग होते हैं, जिन्हें हर जगह बस नकारात्मकता और कमियां ढूंढ़ते रहने की आदत होती है. ईश्‍वर के दिए निन्यानवें उपहारों पर प्रसन्न और संतुष्ट रहने की बजाय वे एक जो नहीं मिला उसके लिए रोने में अपना जीवन व्यर्थ गवां देते हैं.
अजीत को देखकर भी मनीषा को कभी-कभी ऐसा ही लगता है. जब तक वो घर में रहते हैं, तब तक सब सहमे हुए रहते हैं कि कहीं कुछ ग़लत ना हो जाए. जबकि मृदुल कितना सरल है. हमेशा कहते हैं, “अरे छोड़ो भी मनीषा हर समय काम में ही लगी रहोगी, तो जीवन से छोटी-छोटी ख़ुशियां उड़ जाएंगी. आओ बैठकर बातें करते हैं. ये लम्हे दुबारा लौटकर थोड़े ही आएंगे.”
मगर अजीत को इन लम्हों की क़ीमत का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं है. मनीषा की आंखों की कोरें भीग गयीं.
दो दिन और बीत गए. मनीषा के जीवन में इन दिनों दो धाराएं बह रही थी, बच्चों और मृदुल के साथ आनंद और उल्लास की धारा, तो वहीं दूसरी ओर अजीत की ओर से निरंतर अपमानित करते जाना.
लेकिन फिर भी मृदुल के आने से मनीषा ही नहीं अजीत भी ख़ुश थे. दो दिन सब साथ में घूमने-फिरने भी गए, समय बहुत अच्छा कटा.
चौथे दिन बच्चों को स्कूल भेजकर मनीषा ने अपनी और मृदुल की चाय बनाई और दोनों बाहर बगीचे में आकर बैठ गए. अजीत अभी सो रहे थे. अजीत के स्वभाव का परिचय तो मूदुल को था ही. भरसक वो हर बार उसे समझाकर जाता था. इस बार भी उसने अजीत को काफ़ी समझाया कि परिस्थितियां हर समय एक सी रहें ये आवश्यक नहीं. अब बच्चे बड़े हो गए हैं उनकी ज़रूरतें और पढ़ाई बढ़ गयी है. अब मनीषा के लिए प्राथमिक कर्तव्य है दोनों बच्चों की देखभाल. अब अगर इस चक्कर में घर का कोई छोटा-मोटा काम रह जाता है या मनीषा नज़रअंदाज़ कर देती है, तो अजीत को बुरा नहीं मानना चाहिए. रिश्तों में सामंजस्य स्थापित करके ही आनंदपूर्वक आगे बढ़ा जा सकता है.

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चाय का एक गरम घूंट भरते हुए मनीषा ने मुस्कुराकर मृदुल को देखा, “कोेई भी कभी परफेक्ट नहीं होता. ना अजीत परफेक्ट है और ना ही मैं. पर हर किसी को एक बैकअप दोस्त की ज़रूरत होती है जीवन में.”
“बैकअप दोस्त?” मृदुल ने आश्‍चर्य से पूछा.
“हां रिश्तों में, जीवन में कितना भी तनाव या मन-मुटाव क्यूं न हो कोई एक दोस्त ऐसा होता है, जिससे बातें करके हमारा मन हल्का हो जाता है, सारा तनाव दूर हो जाता है और हम फिर जीवन और रिश्तों को सहज रूप से निभाने की ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं.
मैं आपके साथ सारे विषयों पर बातें करके अपने मन का सारा गुबार निकाल देती हूं और बहुत अच्छा व तनावमुक्त महसूस करती हूं. और मैं अजीत को भी माफ़ कर देती हूं. मन तनावमुक्त हो, ख़ुश हो, तो व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों और लोगों से भी सहजता से बिना मन और जीवन में कोई बैर लाए निर्वाह कर पाता है. चाहे अजीत मेरे पति हैं? पर आप मेरे बैकअप फ्रेंड हो मेरी खोई हुई ख़ुशियों को लौटा देनेवाले बैकअप फ्रेंड.” मनीषा के मुख पर बहुत प्यारी-सी हंसी थी, सूरज की पहली किरण जैसी.
मृदुल मुग्ध दृष्टि से उस सहज हंसी को देखता रहा और मनीषा बड़े प्यार और आदर से अपने बैकअप फ्रेंड को देख रही थी.

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