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कहानी- एम्पायर स्टेट (Story- Empire State)

“तुम यहां मुझे पहली बार मिले थे जेम्स और याद है, यहीं पर तुमने मुझे प्रपोज़ भी किया था, तो फिर हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला भी इसी एम्पायर स्टेट बिल्डिंग पर होना चाहिए न!”

न्यूयॉर्क की शान एम्पायर स्टेट की 102 मंज़िल की बिल्डिंग एक समय में दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग थी. यहां से पूरे न्यूयॉर्क का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. इसीलिए मुझे एम्पायर स्टेट बिल्डिंग बहुत पसंद है. दरअसल, मुझे ऊंचाइयों से प्यार है. जीवन में ऊंचा मुक़ाम हासिल करने की ख़ातिर ही मैं आईटी इंजीनियर बनकर दो साल पहले अपनी कंपनी की तरफ़ से न्यूयॉर्क आई थी. तब से अब तक मेरे हर एहसास की साक्षी रही है यह एम्पायर स्टेट बिल्डिंग. और आज जब मुझे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला करना है, तब मैं इसके टॉप फ्लोर पर खड़ी कशमकश की स्थिति में पिछले दो वर्षों में जेम्स के साथ बिताए लम्हों को पुनः जीने का प्रयास कर रही हूं.

उससे जुड़ी एक-एक बात आज मेरी स्मृतियों के द्वार पर दस्तक दे रही है. पहली बार इसी एम्पायर स्टेट बिल्डिंग पर मिला था वह

मुझे. न्यूयॉर्क आए हुए दस दिन ही हुए थे मुझे. वीकेंड पर अपनी सहेली नेहा के साथ न्यूयॉर्क घूमने निकली थी. मेट्रो स्टेशन के बाहर थी, तभी नेहा के भाई का फोन आ गया. दो घंटे बाद मिलने के लिए कहकर वह चली गई. मैं एम्पायर स्टेट पहुंची. टिकट लेने के लिए जैसे ही बैग में हाथ डाला, पर्स नदारद देख मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उसमें मेरे क्रेडिट कार्ड्स थे. घबराई हुई मैं उसे चारों ओर तलाश कर ही रही थी कि एक अमेरिकन युवक ने मेरे क़रीब आकर कहा, “अरे,

कमाल करती हैं आप भी. कब से आपको पुकार रहा हूं, पर आप हैं कि एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. यह लीजिए आपका पर्स. स्टेशन पर गिर गया था. चेक कर लीजिए. सब कुछ ठीक है न.” मैं ख़ुशी से उसे ताकती रह गई थी. उसे धन्यवाद कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे. मुझे कितनी बड़ी मुसीबत से उबार लिया था उसने. हमने एक-दूसरे को अपना परिचय दिया. उसका नाम जेम्स था और मेरी तरह वह भी इंजीनियर था.

वह बोला, “चलो रिद्म, जब तक तुम्हारी फ्रेंड नहीं आती, मैं तुम्हारे साथ हूं.” एम्पायर स्टेट के टॉप फ्लोर पर पहुंचकर मैं न्यूयॉर्क की ख़ूबसूरती को निहारती रह गई. काफ़ी देर तक नेहा वापस नहीं लौटी, तो मैंने घर जाना चाहा, पर अकेले जाने में मुझे घबराहट हो रही थी, तब जेम्स मुझे घर पहुंचाने के लिए तैयार हो गया. घर पहुंचकर उसे धन्यवाद देते हुए मैंने कहा, “आज का तुम्हारा सारा दिन मेरी वजह से ख़राब हो गया.”

“लेकिन इसके बदले मुझे एक अच्छा दोस्त भी तो मिल गया. मैं अगले वीकेंड पर फ्री हूं. तुम चाहो तो हम साथ घूम सकते हैं.” मैंने मुस्कुराकर अपनी स्वीकृति दे दी.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. अब हर वीकेंड पर हम दोनों मिलते और सारा दिन साथ व्यतीत करते. मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरे हृदय की मरुभूमि पर प्रेम का एक छोटा-सा बीज अंकुरित होने लगा था. इसमें नन्हीं-नन्हीं कोपलें निकल आई थीं और उस दिन मेरे आश्‍चर्य की सीमा न रही, जब मैंने देखा, नन्हा-सा यह पौधा बढ़कर हरा-भरा वृक्ष बन गया है. रात-दिन अब जेम्स मेरे ख़्यालों में छाया रहता था.

एक दिन जेम्स ने कहा, “रिद्म, इस वीकेंड  पर मुझे अपने मॉम और डैड से मिलने जाना है. तुम साथ चलोगी?”

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“ऑफकोर्स.” मैं जेम्स के साथ उसके पैरेंट्स के घर पहुंची. वे दोनों मुझसे बहुत गर्मजोशी से मिले. जेम्स अपने फादर के साथ बातों में बिज़ी हो गया और मैं उसकी मॉम के साथ किचन में चली गई. बातों के दौरान मैंने उनसे पूछा, “इस उम्र में क्या आपका मन नहीं करता, आप अपने बेटे के साथ रहें?” उन्होंने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और बोलीं, “यहां का ऐसा ही कल्चर है और यह बुरा भी नहीं है. चाहे बच्चे हों या बड़े, हर इंसान की अपनी ज़िंदगी होती है. हर किसी को स्पेस चाहिए. रिश्ते साथ रहने से ही मज़बूत नहीं बनते हैं. रिश्ते मज़बूत बनते हैं, परस्पर प्रेम और आपसी सूझबूझ से. साथ रहकर एक-दूसरे को बोझ समझने से बेहतर क्या यह नहीं है कि दूर रहकर एक-दूसरे का ख़्याल रखा जाए. जेम्स माह में दो-तीन बार हमसे

मिलने आता है और हमारे सुख-दुख का ख़्याल रखता है, यही बहुत है. आवश्यकता से अधिक आशाएं सदैव दुख को जन्म देती हैं.” उनका जीवन के प्रति यह नज़रिया देख मैं बहुत प्रभावित हुई.

लंच के बाद हम सभी एक्वेरियम देखने गए. जेम्स के डैड के घुटनों में तकलीफ़ थी, इसलिए वो उन्हें व्हीलचेयर पर बैठाकर एक्वेरियम दिखा रहा था. शाम को उसके पैरेंट्स को घर पहुंचाकर हम वापस लौटे, तो मैंने कहा, “जेम्स, तुम्हारे अपने पैरेंट्स के प्रति जुड़ाव और सेवा से मैं बहुत प्रभावित हूं. उन्हें पैदल घूमने में तकलीफ़ होती है, तो तुम उन्हें व्हीलचेयर पर ले गए, यह बहुत बड़ी बात है. अन्य कोई होता, तो उन्हें ले जाने से इंकार कर देता.”

“इसमें बड़ी बात क्या है रिद्म? यह तो मेरी ड्यूटी है. इंसान कितना भी बूढ़ा हो जाए, उसका मन कभी बूढ़ा नहीं होता. उसकी इच्छाएं कभी नहीं मरती हैं. अपने शौक़ पूरे करने में यहां उम्र आड़े नहीं आती है. मैं ही क्या, तुम यहां किसी भी टूरिस्ट प्लेस पर चली जाओ, तुम्हें बहुत से ऐसे लोग दिखाई देंगे, जो अपने पैरेंट्स को व्हीलचेयर पर घुमा रहे होंगे.”

उस रात मैं बिस्तर पर सोने के लिए लेटी, तो अपने देश की याद ताज़ा हो आई. मैं सोचने लगी, यूं तो हमारे देश में लोग विदेशी संस्कृति की आलोचना करते हैं और भारतीय संस्कृति की दुहाई देते नहीं थकते, पर आज कितने ऐसे लोग हैं, जो बूढ़े माता-पिता का दायित्व ख़ुशी से उठाते हैं. उन्हें बोझ नहीं समझते. मेरे अपने ही घर में मम्मी-पापा के प्रति भइया का रवैया कितना उदासीन है, जबकि पापा ने रिटायरमेंट के बाद मिले पैसे का काफ़ी हिस्सा भइया को दे दिया था, फिर भी वह मम्मी-पापा के प्रति कितने लापरवाह हैं.

उस दिन की बात बार-बार मेरे मन को व्यथित कर रही थी. बुआ और उनका बेटा घर में आए हुए थे. सब लोग पिकनिक मनाने जा रहे थे. मम्मी-पापा भी साथ जाना चाहते थे, पर भइया-भाभी का मन उन्हें ले जाने का नहीं था. भइया रूखे स्वर में बोले थे, “आप क्या करेंगे वहां जाकर? आराम से घर में बैठिए.”

मैंने सुना, भाभी बुआ की बहू से बोली थीं, “मम्मी-पापा की तो पूछो मत. बुढ़ापा आ गया, पर घूमने का चस्का कम नहीं हुआ.” अपमान से मम्मी-पापा का चेहरा कितना निरीह हो गया था. ऐसे ही न जाने कितने ही प्रसंग दिमाग़ में घूम रहे थे. अगली सुबह पापा को फोन मिलाया, तो वह बोले, “रिद्म, तुझे नवीन याद है, अपने मेहता का बेटा, जो डॉक्टर है.”

“हां पापा, नवीन को कैसे भूल सकती हूं, उसके साथ तो मेरा बचपन बीता है. क्या हुआ पापा?”

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“कल मेहता का फोन आया था. उन्होंने नवीन के लिए तेरा रिश्ता मांगा है.” एक पल के लिए मैं ख़ामोश हो गई. फिर बोली, “ठीक है पापा, मैं सोचकर बताती हूं.” मैंने फोन रख दिया. नवीन पापा के मित्र मेहता अंकल का बेटा था. मैं जानती थी, वो एक क़ाबिल डॉक्टर होने से पहले बहुत अच्छा इंसान भी है. साथ ही उसके परिवार के लोग भी अच्छे व मिलनसार हैं. जो भी लड़की उस घर में बहू बनकर जाएगी, बहुत सुखी रहेगी, पर मैं अपने इस मन का क्या करती, जहां पहले से ही जेम्स बस चुका था.

जब से मैं जेम्स की फैमिली से मिली थी, रात-दिन मन में यही विचार घूमता था कि जेम्स से विवाह करके अमेरिका में बस जाऊं, तो जीवन कितना सुखमय होगा. इस ख़ूबसूरत देश में रहना अपने आप में कितना सुखद एहसास है. यहां रोज़मर्रा की ज़िंदगी तनावरहित और सहज है. लोग ख़ुशमिज़ाज और ईमानदार हैं. हर कोई नियमों का पालन करता है. कोई किसी की ज़िंदगी में दख़ल नहीं देता. किंतु मुझे जेम्स के मन को भी टटोलना था.

अगले वीकेंड पर मेरे क़दम ख़ुद-ब-ख़ुद एम्पायर स्टेट की ओर उठ गए. जेम्स वहां पहुंचा, तो मैंने कहा, “जेम्स, मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूं. पापा ने मेरे लिए एक डॉक्टर लड़का पसंद किया है.” जेम्स गंभीर स्वर में बोला, “मैं भी तुमसे कुछ कहना चाहता हूं रिद्म, मैं तुमसे प्यार करता हूं और तुम्हारे साथ ज़िंदगी बिताना चाहता हूं. मेरे पैरेंट्स भी सहमत हैं. क्या तुम्हें मुझसे प्यार है?” मुझे ऐसा लगा, मानो मेरे कानों में शहनाइयां बज उठी हों. मैंने तुरंत अपनी स्वीकृति दे दी.

मम्मी-पापा को जेम्स के बारे में बताया, तो कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वे बोले, “रिद्म, लड़कियां तो अन्तर्जातीय विवाह में ही परेशान हो जाती हैं, फिर यहां तो देश ही दूसरा है. इनका धर्म, संस्कृति, रहन-सहन, खानपान सभी कुछ अलग है. क्या तुम इनके साथ एडजस्ट कर पाओगी? रिद्म, जीवन के महत्वपूर्ण ़फैसले सोच-समझकर करने चाहिए. जल्दबाज़ी में नहीं. तुम एक बार फिर सोच लो आख़िर यह तुम्हारी ज़िंदगी का सवाल है.”

“पापा, मैंने अच्छी तरह सोच-समझकर ही यह फैसला किया है. मैं जेम्स और उसके परिवार के साथ एडजस्ट कर लूंगी. आप मुझ पर विश्‍वास रखिए.”

“ठीक है रिद्म, किंतु हर माता-पिता की तरह हमारी भी इच्छा है कि हम अपनी बेटी की शादी में शरीक हों, फिर चाहे शादी न्यूयॉर्क में हो या भारत में.” पापा भीगे स्वर में बोले.

“ऑफकोर्स पापा, आपके और मम्मी के आशीर्वाद के बिना मैं शादी नहीं करूंगी.” वह दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़ुशी का दिन था. मुझे याद नहीं पड़ता, इससे पहले मैं कभी इतना ख़ुश रही थी. अगले दिन जेम्स से मिलने के लिए जाते समय मुझे लग रहा था, मानो ज़मीन पर नहीं चल रही वरन् हवा में तैर रही थी.

मैंने जेम्स को बताया, “मम्मी-पापा तुम्हारे साथ मेरी शादी के लिए सहमत हैं. बस, उनकी यही इच्छा है कि वे हमारी शादी में अवश्य शामिल हों.” जेम्स कुछ क्षण मुझे देखता रहा फिर बोला, “सुुनो रिद्म, हम अभी शादी नहीं करेंगे, पहले कुछ समय तक साथ रहेंगे.”

“क्या मतलब, लिव इन रिलेशनशिप में?”

“हां रिद्म, इसमें कोई बुराई नहीं है. अमेरिका में हज़ारों लोग ऐसे रहते हैं. कुछ समय बाद जब हमें लगेगा कि हम दोनों के बीच कोई मतभेद नहीं होगा, हमारी अच्छी निभेगी, तब हम शादी कर लेंगे.”

“लेकिन जेम्स, लिव इन रिलेशनशिप में हमेशा असुरक्षा की भावना रहती है. ऐसे रिश्ते लंबी दूरी तय नहीं करते हैं. तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि हमारी नहीं निभेगी. हम दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं. मैं तुम्हारे कल्चर के साथ पूरी तरह एडजस्ट होकर दिखाऊंगी. क्या तुम्हें मुझ पर विश्‍वास नहीं है.”

“विश्‍वास तो है रिद्म, दरअसल, मैं सावधानीवश ऐसा कर रहा हूं. अमेरिका के क़ानून के अनुसार, अगर पति-पत्नी के बीच तलाक़ होता है, तो पति को अपनी प्रॉपर्टी और पैसे का आधा हिस्सा पत्नी को देना पड़ता है. इसलिए बहुत-से लोग सावधानी बरतते हैं और वर्षों शादी नहीं करते.”

“और इस बीच बच्चा हो जाए तो?” मैंने पूछा.

“हां, तो इसमें बुराई क्या है? देखो रिद्म, यहां बिना शादी के बच्चे हो जाना ग़लत नहीं माना जाता. यहां कोई किसी की ज़िंदगी में दख़ल नहीं देता है. न तो यहां किसी के पास इतना समय है कि कोई दूसरों की ज़िंदगी में ताकाझांकी करे और न ही लोगों की ऐसी मानसिकता है.”

“लेकिन जेम्स, बगैर शादी के…?”

“तुम व्यर्थ ही संकोच कर रही हो रिद्म. ठीक है, तुम अच्छी तरह सोच लो, फिर मुझे बताना.”

जेम्स जल्दी ही चला गया था और आज मुझे उसको अपने ़फैसले से अवगत कराना था. सोचते-सोचते मैं अतीत से वर्तमान में आ गई, पर मन में चल रहा अंतर्द्वंद्व थमने का नाम नहीं ले रहा था. इंसान खानपान, रहन-सहन और रीति-रिवाज़ों के साथ समझौता कर सकता है, पर माता-पिता के दिए संस्कारों को कैसे भूल जाए? इन्हीं संस्कारों से तो व्यक्ति के आचार-विचार बनते हैं. मेरी आत्मा में बसे हुए हैं मेरे संस्कार, फिर अपनी आत्मा का गला कैसे घोंट दूं.

अच्छाई-बुराई, सही-ग़लत के बीच के अंतर को कैसे मिटा दूं. आधुनिकता के नाम पर विवाह जैसे पवित्र बंधन को कैसे झुठला दूं? थोड़ी देर बाद जेम्स आकर बोला, “आज तुम फिर यहां चली आई.?”

“तुम यहां मुझे पहली बार मिले थे जेम्स और याद है, यहीं पर तुमने मुझे प्रपोज़ भी किया था, तो फिर हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला भी इसी एम्पायर स्टेट बिल्डिंग पर होना चाहिए न!”

“हां, तो फिर क्या सोचा तुमने?”

“नहीं जेम्स, मैं शादी किए बिना तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मेरी महत्वाकांक्षाएं मेरे संस्कारों से ऊंची नहीं हैं. मेरे माता-पिता की यह छोटी-सी इच्छा है कि वे मेरी शादी में सम्मिलित हों, तो मैं उनसे क्या कहूं कि मैं जेम्स के साथ बिना शादी किए ही रहना चाहती हूं. कल को मैं लोगों से क्या कहकर तुम्हारा परिचय करवाऊंगी? जिस रिश्ते में विश्‍वास ही न हो, वह रिश्ता तो टिक ही नहीं पाएगा. जल्द ही दम तोड़ देगा.

जेम्स, मुझे ऊंचाइयों से बहुत प्यार है, लेकिन इतना भी नहीं कि पांव के नीचे से ज़मीन ही निकल जाए.” जेम्स से विदा लेते हुए मेरी आंखें आंसुओं से भीग उठीं, पर जल्द ही मैंने उन्हें पोंछ दिया. पापा कहा करते थे कि आंसू इंसान के मन की कमज़ोरी को दर्शाते हैं और तुम्हें जीवन में कमज़ोर नहीं, मज़बूत बनना है. अब मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती थी, पापा को फोन पर यह बताने के लिए मुझे डॉक्टर नवीन का रिश्ता मंज़ूर है.

 

 

      शुभि मंडल

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Usha Gupta

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