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कहानी- संकल्प (Short Story- Sanklap)

 

एक दिन टीवी पर मैंने स्वामीजी का प्रवचन सुना. ‘यदि हर गृहस्थ एक मुट्ठी अन्न नित्य अलग रखता जाए, तो इस देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा. हर गृहस्थ का यह धर्म है कि कुछ न कुछ दान के लिए अलग रखे.’ ‘एक मुट्ठी अन्न’ स्वामीजी के ये शब्द रातभर मुझे मथते रहे. तीन-चार दिन बाद ही सुधा के घर किटी पार्टी थी. मैं भी इस पार्टी में गई, लेकिन एक निश्‍चय के साथ.

शैला जब कमरे में आई, तो देखा कि मांजी आंखें बंद किए चुपचाप लेटी हैं. शैला थोड़ा-सा घबरा गई और मांजी को आवाज़ दी, “मांजी, आप अभी तक सो रही हैं? क्या तबियत ख़राब है? बड़ी भाभी सुबह कह रही थीं कि आप राजभवन गई थीं. वहां जाकर बहुत थक गई हैं? लाओ मैं पैर में तेल लगा दूं. चाय बना लाऊं? कुछ तो बोलो मांजी…” शैला प्रभादेवी को चुप देखकर अधीर हो गयी. “जब से राजभवन से आयी हूं, बड़ी थकान लग रही है बेटी. कुछ खाने का मन भी नहीं हुआ. जा, चाय बना ला, साथ में कुछ नाश्ता भी ले आना.” प्रभादेवी ने प्यार से शैला को कहा.‘शैला कितना ध्यान रखती है मेरा. कितनी निर्भर हो गई हूं मैं इस पर. भला हो माधव का, जो इस बच्ची को मेरे पास लेकर आया. ग़रीब घर की बेटी पढ़ने की अदम्य लालसा लिए मेरे छोटे-बड़े काम करने लगी. बदले में हमसे जो बन पड़ता है, इसकी मदद करते हैं. कभी इसे नौकरानी नहीं समझा.’ शैला चाय लाने गई, तो प्रभादेवी बीते दिनों की यादों में खो गईं.पराधीन भारत में प्रभादेवी का जन्म हुआ. देशसेवा को समर्पित उनके पति कभी इस जेल तो कभी उस जेल में अंग्रेज़ों द्वारा डाल दिए जाते थे. गांधीजी के हर सत्याग्रह से दोनों पति-पत्नी जुड़े रहते. प्रभादेवी पति की प्रतिछाया बनकर घर-गृहस्थी और देशसेवा का काम संभालती रहीं. देश तो आज़ाद हुआ, पर उनके पति जेल यात्राओं से थका शरीर लेकर अधिक समय तक प्रभादेवी का साथ नहीं निभा पाए.प्रभादेवी के दो बेटे थे, जिनमें एक तो अमेरिका में बस गया और वहीं शादी भी कर ली तथा दूसरा, यहां लखनऊ में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है. उन्हें कभी अपने से अलग नहीं करता. बहू अपने कार्यों में व्यस्त होते हुए भी सदा उन्हें सम्मान और प्यार देती है. एक पोता बैंगलोर में पढ़ रहा है तथा पोती यहीं मेडिकल की छात्रा है. बच्चों का प्यार ही उनका सम्बल है और यह शैला कभी उनकी दोस्त बनकर घुल-मिल जाती है, तो कभी बेटी बनकर देखभाल करती है और कभी मां बनकर डांट पिलाती है. शैला चाय-नाश्ते की ट्रे लिए खड़ी मुस्कुरा रही थी. उसे देखकर प्रभादेवी वर्तमान में लौट आयीं. उनके राजभवन जाने की कहानी जानने को शैला बहुत उत्सुक है, यह उन्हें उसकी आंखों की चमक से लग रहा था. “आपको यह शॉल वहीं से मिला है न मांजी?” उसने बात को आगे बढ़ाया. उनके ‘हां’ कहने पर वह सारी बातें जानने को बेचैन थी. उसकी उत्सुकता देखकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था.“लगभग 20 वर्ष पहले हम यहां तब आए थे, जब मेरे बेटे सुदीप ने यह मकान बनवाया. कॉलोनी में रहने का यह मेरा पहला अनुभव था. शाम को टहलते हुए कब आसपास के लोग मुझे पहचानने लगे, कब नमस्ते करते-करते मुझे सम्मान देने लगे, इस बात का मुझे पता ही नहीं लगा. मुझे भी उनका साथ अच्छा लगने लगा. सब कम उम्र की महिलाएं थीं, छोटे-छोटे बच्चों की मांएं थीं, आर्थिक रूप से सुदृढ़, प्यारी और विदुषी. एक दिन रेखा ने मुझे अपने यहां किटी पार्टी में आने का निमंत्रण दिया, जो 20 सदस्याएं चलाती थीं. यद्यपि मुझे किटी पार्टी आदि का अनुभव नहीं था, पर मैंने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया. इस तरह हर महीने मैं गेस्ट बनकर उनकी किटी पार्टी में जाने लगी. एक दिन वहां किटी पार्टी में बैठे-बैठे मेरे मन में एक विचार आया कि क्यों ना इस किटी पार्टी द्वारा कुछ समाज सेवा की जाए. ये सभी महिलाएं किटी पार्टी में केवल ताश और हाउज़ी खेलकर, खा-पीकर अपने घर चली जाती हैं, यह तो उचित नहीं है. इसी बारे में मेरे मन में काफ़ी दिनों तक उथल-पुथल मची रही. तभी एक दिन टीवी पर मैंने स्वामीजी का प्रवचन सुना. ‘यदि हर गृहस्थ एक मुट्ठी अन्न नित्य अलग रखता जाए, तो इस देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा. हर गृहस्थ का यह धर्म है कि कुछ न कुछ दान के लिए अलग रखे.’ ‘एक मुट्ठी अन्न’ स्वामीजी के ये शब्द रातभर मुझे मथते रहे. तीन-चार दिन बाद ही सुधा के घर किटी पार्टी थी. मैं भी इस पार्टी में गई, लेकिन एक निश्‍चय के साथ. मैंने स्वामीजी की बात उन्हें बताई, “तुम्हारी बीस स्त्रियों की किटी है. तुम सब प्रतिदिन एक-एक मुट्ठी अन्न एक अलग डिब्बे में डालती जाओ और महीने के अंत में उसी अन्न से खाना बनाकर गरीब बस्ती में या अनाथालय में बांट आओ.” इस बात पर सभी महिलाएं सहमत हो गयीं और यह तय हुआ कि चार महिलाएं दाल जमा करेंगी और आठ-आठ सदस्य आटा और चावल. इस तरह दाल-चावल, रोटी बंटने लगी. उन्होंने अपनी सुविधा के अनुसार चार-चार के ग्रुप बना लिए और सुचारु रूप से यह दान कार्य करने लगीं. बाद में एक निराश्रित विधवा नित्य एक घर से भोजन करने लगी. इस तरह यह सुकार्य चलने लगा.

यहां तक कि दूसरी किटियों में भी इसका अनुकरण होने लगा. मेरा लगाया यह वृक्ष फल-फूल रहा था, यह मेरे लिए बहुत सुखद था.” इतना बताकर प्रभादेवी थक गईं.शैला की उत्सुकता चरम पर थी, “क्या इसी काम के लिए आपको इनाम मिला?” शैला चहकी. “नहीं रे! शायद प्रभु को कुछ और अच्छा कराना था, उसी का परिणाम है यह. अच्छा, अब तू जा. बहुत रात हो गई है. माधव से कहना तुझे छोड़ आएगा और जाते हुए  बहू से अपनी क़िताबों के लिए रुपए लेती जाना. मैंने उसे कह दिया है.”अगली सुबह शैला जल्दी-जल्दी काम ख़त्म करके फिर मेरे पास आ बैठी. “बताओ मांजी फिर क्या हुआ?”. प्रभादेवी ने शैला को देखा, फिर बोलीं, “फिर क्या,  यह कार्य चल ही रहा था कि प्रभु ने एक नई योजना मेरे मन में भर दी. अगली किटी पर मैंने सबसे कहा, ‘मैंने एक सपना देखा है, जो तुम सबको मिलकर साकार करना है. सभी उत्सुकता से मेरी बात जानने को तैयार थीं. मैं संकोच में थी, पर उनका उत्साह देखकर मेरे अंदर आत्मविश्‍वास पैदा हुआ और मैंने कहा कि देखो किसी पर कोई दबाव नहीं है. यदि मेरी योजना पसंद न आए तो इंकार कर सकती हो.’ ‘आंटी आप बताइए तो’, शुभ्रा ने बात को आगे बढ़ाया. एक रुपए रोज़ यदि सब बीस की बीस सदस्य एक गुल्लक में जमा करें तो साल के अंत में तीन सौ पैंसठ रुपए हर सदस्य के हिसाब से लगभग आठ हज़ार रुपए जमा होंगे. मैंने अपने बेटे से बात की है. वह इन आठ हज़ार रुपए में दो हज़ार रुपए मिलाकर दस हज़ार कर देगा. इस तरह एक बड़ी रकम हम किसी संस्था या किसी ज़रूरतमंद को दे सकते हैं. तुम सब लोग सलाह कर लो और घर में भी पूछ लो, तभी निर्णय करेंगे. यह केवल मेरी सलाह है, आदेश नहीं. अगली किटी पर निर्णय होगा.’ अगली किटी पर सब मेरी राय पर एकमत थीं, पर कुछ संशोधन के साथ. ‘आंटी इसे हम नया नाम देंगे.’ सुधा का सुझाव था. रमा ने कहा कि यदि किसी की याद में नामकरण हो तो अच्छा है. इस तरह सबके सुझावों से ‘प्रीति चेरिटेबल संस्था’ का नामकरण हुआ. प्रीति इसलिए कि श्रीमती शर्मा की पुत्री प्रीति का निधन कुछ वर्ष पहले एक दुर्घटना में हो गया था. इस तरह प्रीति की याद में दो गरीब लड़कियों की फ़ीस, क़िताबों और ड्रेस का इंतज़ाम इन पैसों से होने लगा. इस तरह यह दान-यज्ञ शुरू हुआ. दूसरे शहरों के लोगों ने भी इस योजना को अपनाया. इस तरह शहर से शहर होती हुई इस योजना ने वृहद रूप ले लिया. पता नहीं कब पत्रकारों से अख़बार और अख़बार से होती हुई यह ख़बर राज्यपाल महोदय तक पहुंच गई. इसी का परिणाम यह शॉल और प्रशस्ति पत्र है.” इतना सब बताते हुए 90 वर्षीय प्रभाजी हांफने लगीं और करवट लेकर लेट गईं. मानो कह रही हों कि शैला अब तू जा और मुझे आराम करने दे. शैला भी ये सब सुनकर इस दृढ़ संकल्प के साथ वहां से लौट रही थी कि मांजी के इस समाजसेवा के क्रम को हम टूटने न देंगे. इसे आगे बढ़ाने का काम हम युवाओं के कंधों पर है. शैला ने एक दृढ़ संकल्प के साथ अपने घर में क़दम रखा. रातभर शैला ठीक से सो नहीं पायी. मांजी की बातों से प्रेरित शैला भविष्य की योजनाएं बनाते-बनाते देर रात सोई तो सुबह जल्दी उठ ही नहीं पायी. जल्दी-जल्दी लगभग भागती हुई वह प्रभादेवी के घर पहुंची, तो वहां लगी भीड़ देखकर वह भौंचक्की रह गई. बड़ी भाभी ने उसे बताया कि जब वह चाय लेकर उनके कमरे में पहुंची तो वह इहलोक से देवलोक को जा चुकी थीं. मांजी अब जीवित नहीं है, इस कल्पना से ही शैला सिहर उठी. वह बड़ी भाभी से लिपट हिलक-हिलक कर रो पड़ी.स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेविका प्रभाजी के अंतिम संस्कार के लिए जिलाधिकारी द्वारा पुष्प-चक्र चढ़ाया गया तथा ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया गया. मांजी की अचानक मृत्यु ने जहां शैला को अंदर तक हिला दिया, वहीं उसके संकल्प को और अधिक दृढ़ बना दिया. वह आत्मविश्‍वास से भरी भारी क़दमों से अपने घर की तरफ़ लौट रही थी यह सोचते हुए कि मांजी के लगाए इस पौधे को हम युवापीढ़ी सींचकर बड़ा करेंगे.

     मृदुला गुप्ता

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