विक्रम चीख पड़ा, “तुम शालिनी नहीं हो सकती और भूत-प्रेत पर मैं विश्वास नहीं करता.”
वह हंसी, “विक्रम ज़रा गौर से देखो.” इतना कहकर उसने रिवाॅल्वर का घोड़ा दबाने का उपक्रम किया.
“प्लीज़ नहीं मत मारो मुझे.”
विक्रम नींद से जाग चुका था. शालिनी का घुटना उसके ऊपर उसे पूरी तरह से दबाए हुए था और रिवाॅल्वर उसने इस तरह तान रखी थी कि ज़रा-सा वह हिला, तो गोली चल जाएगी.
विक्रम ने ख़ुद को कभी इस सीमा तक असहाय नहीं पाया था. यह वही शालिनी थी, जिसके मर्डर केस को उसने साॅल्व किया था, जिसके बदले उसे प्रमोशन और मेडल मिला था.
विक्रम बोला, “तुम मुझे मारने आई हो, तो मार दो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, क्योंकि मैं जानता हूं, जिस राह पर मैं चल रहा था, उसमें किसी भी दिन यह हो
सकता है. जो गोली दूसरे की जान लेती है, वह अगर ग़लत चल जाए, तो अपनी भी जान ले लेती है.
तुम्हारे हाथ में ग्लव्स और मेरा रिवाॅल्वर पुलिस की इस थ्योरी को सही साबित करता है और मुझे मारने के बाद तुम्हारे ऊपर कोई इल्ज़ाम नहीं आएगा.
यह परफेक्ट आत्महत्या केस साबित हो जाएगा.” इतना कहकर जैसे ही उसने हिलने की कोशिश की शालिनी ने रिवाॅल्वर के हत्थे से उसके मुंह पर ज़ोरदार
चोट मारी. वह दर्द से बिलबिला उठा. कल रात उसने ज़्यादा पी थी और इस चोट से उसका बचा-कूचा नशा भी काफ़ूर हो चुका था. उसके कटे गाल से थोड़ा खून
बहने लगा.
वह कराहते हुए बोला, “तुम शालिनी नहीं हो यह पक्का है. कौन हो तुम?”
वह बोली, “चालक बनने की कोशिश ना करो. मैं यहां अभी तुम्हारा मर्डर कर सकती हूं और मैं शालिनी हूं, उसका भूत नहीं समझे. मैं यहां तुम्हें सबक सिखाने
के लिए ही आई हूं. मैं चाहती तो चुपचाप तुम्हारा मर्डर करके जा सकती थी, लेकिन तब तुम मुझे कायर समझते.”
इस बार वह पूरी ताकत से चीखा, “तुम शालिनी नहीं हो, शालिनी को तो मैंने अपने हाथों से मारा था.”
इस बार शालिनी ने रिवाॅल्वर फेंक दी और दोनों गालों पर ज़ोर-ज़ोर से थप्पड़ मारने लगी.
विक्रम सिंह मज़बूत इंस्पेक्टर थे. उन्होंने पूरी ताकत से उसे उलटना चाहा, तो देखा उनके हाथ-पैर हिल नहीं पा रहे थे. जब उन्होंने गौर से देखा, तो उन्हें अपने दोनों हाथ-पैर बेड पर हथकड़ी से बंधे मिले. उन्हें नशे की हालत में किसी ने बड़े ही कायदे से बांध दिया था और वे पूरी तरह असहाय थे.
शालिनी उसे ग़ुस्से में बाहर कर मार ही डालती कि एसीपी शंकर ने उसका हाथ पकड़ा.
“शालिनी होश में आओ…” और यह कहकर उसे अपने हाथ के सहारे से विक्रम के ऊपर से उतारा. पूरी पुलिस फोर्स उनके साथ थी.
“विक्रम, आपको हिरासत में लिया जाता है.” एसीपी शंकर को सामने देख विक्रम के आंसू निकल पड़े. वह कुछ नहीं बोल सका. बस, उसके मुंह से निकला, “आई एम साॅरी सर.” कल ही तो विक्रम ने शंकर
सर से अवाॅर्ड लिया था.
शंकर बोले, “मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी विक्रम. तुम तो बहुत ही होनहार ऑफिसर थे हमारे विभाग के. आख़िर ऐसा क्यों किया तुमने?“
“सर, मैं जल्दी तरक़्क़ी करने के लालच में रास्ते से भटक गया था.”
इस समय पूरे घर की लाइट्स जल चुकी थीं और विक्रम के सभी बंधन खोल दिए गए थे.
विक्रम बोला, “सर, जब आप सब कुछ जानते थे, तो कल मुझे अवाॅर्ड क्यों दिया आपने और यह शालिनी कैसे हो सकती है? शालिनी को तो मैंने मारा था.”
शंकर बोले, “विक्रम, मरनेवाले से बचानेवाले के हाथ बड़े होते हैं…” और इतना कहकर वे मुड़े, “शालिनी बेटी चलें.”
“हां सर, हम लोग वापस चल सकते हैं.”
“शालिनी, अब तो तुम्हें हमारे विभाग से कोई शिकायत नहीं है न?”
“थैंक्स सर, आपने मेरे लिए इतनी तकलीफ़ उठाई और मुझे न्याय दिया. आपका यह एहसान मैं कभी नहीं उतार पाऊंगी.”
“ओह शालिनी, यह तो हमारा काम है.” और दोनों कमरे से बाहर आ गए.
एसीपी शंकर ने अपने जूनियर को कुछ निर्देश दिए, जिसने सिर हिलाकर जैसे सब कुछ सही ढंग से
पूरा करने का आश्वासन दिया हो.
अगले दिन तमाम अख़बारों की हेडलाइन्स थीं- शालिनी मर्डर केस में बड़ा खुलासा.. एक
नया मोड़ शालिनी मरी नहीं ज़िंदा है..
क्या था शालिनी मर्डर केस?.. शालिनी जिसने पिछले साल मिस जयपुर का ख़िताब जीता था, अपने कमरे में मृत मिली थी. हालात कुछ ऐसे थे, जो दम घुटने से
मौत की तरफ़ इशारा कर रहे थे, जबकि मौत को कोविड केस कहकर दफ़ना दिया गया था. लोकल प्रेस ने जब हरीश और शालिनी के रिश्तों को उजागर किया, तो केस री-ओपन कर विक्रम सिंह को दिया गया था.
केस के हल होने की कोई सूरत नहीं थी. कोविड केस से क्या मिलेगा, लेकिन विक्रम ने हरीश की काॅल डिटेल्ड और लोकेशन से यह पता लगा लिया था कि उस दिन हरीश उसके फ्लैट पर था. इतना ही
नहीं वह लगातार पांच दिनों से वहां जा रहा था. किसी से रिलेशन हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी बात यह थी कि हरीश ने शालिनी का मर्डर क्यों किया?
दरअसल, हरीश शालिनी को अपने सेक्स नेटवर्क का हिस्सा बनाना चाहता था, लेकिन शालिनी तैयार नहीं थी. जबकि हरीश को पता था कि शालिनी के जुड़ने से
उसके हाई प्रोफाइल रैकेट की कमाई बहुत बढ़ जाएगी. इधर हरीश के राज़ जब शालिनी को पता चल चुके थे, तो अब या तो उसके रैकेट का हिस्सा बनती या उसे दुनिया छोड़नी पड़ती. यही वह कारण था कि शालिनी का मर्डर हुआ, जिसे कोविड में डालकर बंद कर दिया गया था. हरीश के लिए यह सब मामूली बात थी.
लेकिन विक्रम के दबाव के कारण हरीश टूट गया था और उसके ड्राइवर ने सरकारी गवाह बन कर हरीश को जेल पहुंचा दिया था. जिसके लिए विक्रम को प्रमोशन और मेडल मिला था.
यह क़िस्सा शुरू होता है, वहां से जहां शालिनी मिस जयपुर चुनी गई थी. शालिनी ने ग्रेज्युशन पूरी की थी. वह एक मिडिल क्लास परिवार से आती थी. फाइनल ईयर में ही उसने मिस जयपुर काॅन्टेस्ट में हिस्सा लिया था और काॅन्टेस्ट जीतते ही उसे ज्वेलरी से ले कर मॉडर्न आउटफिट की मॉडलिंग के असाइनमेंट मिल गए थे. काम व करियर दोनों को ध्यान में रखते हुए उसने जयपुर के एक मॉडर्न सोसायटी में फ्लैट किराए पर ले लिया था और अकेले रहने लगी थी. घरवाले भी समझदार थे. वे शहर से कोई अस्सी किलोमीटर दूर अजमेर में रहते थे. हां, उसकी मां शालिनी के पास आती-जाती रहती, जिससे किसी को उसे ग़लत निगाह से देखने का मौक़ा न मिले. जबकि शालनी कई बार कह चुकी थी, “मां, तुम परेशान मत हुआ करो. आजकल लड़के-लड़की में कोई फ़र्क़ नहीं है और तुम्हारी बेटी बहुत मज़बूत है.”
मां कहती, “बेटी, तुझे नहीं पता यह दुनिया कितनी ख़राब है.”
शालिनी की ज़िंदगी ऐसे ही सपनों में बीत रही थी और साथ में उसकी मां जैसे बेटी की ज़िंदगी के सहारे अपने सपने पूरे होते देख रही थी. उसे भरोसा था
एक दिन उसकी बेटी बहुत बड़ी स्टार बनेगी. ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि एक दिन हरीश का मैसेज देख वह चौंक गई थी.
“आई लव यू शालिनी.” सच कहें, तो इतने बड़े बिज़नेसमैन के बेटे का मैसेज देख शालिनी हिल गई थी. किसी के भी भीतर गुरूर आने में वक़्त लगता है, शालिनी अभी मिडिल क्लास फैमिली की सोच से बाहर नहीं आई थी, भले ही उसने शहर का ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीता हो.
आज सुबह से वह हरीश के साथ ही थी, मॉडलिंग असाइनमेंट के दौरान वह भी शूटिंग की हर क्लिप देख रहा था. उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे हरीश
को.
उसने बस मैसेज देखकर छोड़ दिया. ख़ूबसूरती अपने आपमें बहुत क़ीमती होती है और वह बड़ी से बड़ी दौलत को कदमों में झुका देती है. शालिनी की ख़ूबसूरती के आगे हरीश क्या बड़े-बड़े लोग झुकने लगे थे. आए दिन उसे ढेरों निमंत्रण मिलते. कभी किसी शो रूम के उदघाटन के लिए, तो कभी किसी सेलिब्रिटी के साथ फैशन शो में स्टेज शेयर करने के लिए. न जाने क्यों यह लाइन ऐसी है कि इसमें देर रात घर लौटना, खाना-पीना, सिगरेट, शराब और न जाने कैसे-कैसे नशे से रू-ब-रू होना पड़ता है. इसे छोड़ दें, तो आगे नहीं बढ़ सकते और इसे अपनाएं तो ज़िंदगी नर्क हो जाती है. ख़ैर शालिनी ने बीच का रास्ता निकाला था. वह एप्पल जूस लेती थी और सिगरेट या किसी और चीज़ के बदले च्यूइंगम चबाती.
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उम्र और शरीर के अपने तकाजे होते हैं. ग्लैमर वर्ल्ड में शरीर, शरीर नहीं होता एक सामान होता है, यह इस फील्ड में उतरनेवालों को शुरू में ही समझा दिया जाता है. हरीश भी जब शालिनी से बात करता, तो फिगर से लेकर लुक तक की ऐसी तारीफ़ करता कि उसका चेहरा लाल हो जाता. फिर इसे वह प्रोफेशन की मांग समझ कर अनदेखा कर देती.
और ऐसे ही एक दिन बिस्तर पर वह बेसुध मिली थी. चेक करने पर डाॅक्टर ने बताया था कि शालिनी की मौत कोविड से हुई है. वास्तव में हरीश ने उसके जूस में नींद की गोली खिलाकर अपनी बात न मानने पर सबक देने का फ़ैसला किया था. हरीश के विक्रम से गहरे रिश्ते थे, क्योंकि बिज़नेस लाइन में बिना इसके काम चलता नहीं है. विक्रम इंटेलिजेंट तो था, लेकिन ख़ूबसूरत लड़कियां काॅलेज के ज़माने से ही उसकी कमज़ोरी थी.
विक्रम का यह शौक हरीश बख़ूबी पूरा करा देता था, वह भी बिना किसी की खोज-ख़बर के. इसके बदले विक्रम हरीश के इधर-उधर के मामले निपटा देता. हरीश ने भी शालिनी को नींद की गोली देने के बाद उसे निपटाने के लिए विक्रम को बुला लिया था और विक्रम ने शालिनी को कोविड केस डिक्लेयर कर एंबुलेंस से भेज दिया था. उसे भरोसा था कि कोविड केस की बाॅडी कोई नहीं छूएगा. हरीश
ने यह नहीं बताया था कि उसने नींद की गोली दी है. विक्रम ने भी शालिनी को चेक करने की ज़रूरत नहीं समझी थी.
आजकल ऐसे काम बड़े ही सिस्टमेटिक तरीक़े से होते हैं, किसी भी महत्वपूर्ण घटना के सीसी टीवी कैमरे ऑफ हो जाते हैं. सोसयटी के गेट एंट्री रजिस्टर में केवल वे ही रिकॉर्ड मिलते हैं, जो बेकार होते हैं और वही हुआ था. एंबुलेंस धड़धड़ाते हुए सोसाइटी में आई थी. मास्क और सेफ्टी सूट पहने सफ़ेद कपड़ों में लोगों को देख धड़ाधड़ सभी खिडकियां बंद हो गईं थीं.
सिक्योरिटी गार्ड ने दोनों गेट खोल दिए थे. किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोरोना वाॅरियर्स का सामना करें. बस पांच मिनट में दो लोग स्ट्रेचर लेकर शालिनी को उसमें रखकर एंबुलेंस में ले आए थे. डोर ऑटोमेटिक लाॅक हो गया था. सभी घरवालों को सूचना दे दी गई थी, जो भी चाहे कोविड प्रोटोकॉल से संस्कार स्थल पर पहुंच सकता था. एंबुलेंस चल पड़ी थी. कुल बीस से पच्चीस मिनट का खेल था. इधर शालिनी को होश आना शुरू हो गया था. वह बास्केट बाॅल
प्लेयर होने के कारण एक शानदार एथलीट भी थी, जिसकी वजह से ही उसकी पर्सनैलिटी में निखार आया था और वह मिस जयपुर चुनी गई थी. एक बेहद मज़बूत लड़की. उसने जैसे ही हिलना-डुलना शुरू किया कि उसका शरीर वार्ड बाॅय से जा टकराया. पहले तो उसने पैकेट को सीधा करके वैसे ही सेट कर दिया, जैसे डेड बाॅडी को एंबुलेंस में सेट करते हैं. लेकिन दूसरी बार उसे लगा उसके पैरों पर किसी के हाथ का दबाव पड़ा हो, तो वह चौंक गया. उसने पैकेट का मुंह हल्का-सा खोला, तो हैरान रह गया. उसे लगा यह पेशेंट अभी ज़िंदा है, लेकिन वह बहुत ही समझदार था उसने शालिनी से इशारे से चुप रहने को कहा.
इधर हास्पिटल में फाॅर्मेल्टी पूरी करने के लिए ड्राइवर ने गाड़ी लगाई और बोला, “बस, अभी आया चाय पी कर तुम ध्यान रखना.” नीचे पार्किंग में घुप्प
अंधेरा था. दूर एक छोटी-सी हल्की लाइट जल रही थी. यह कोविड स्पेसिफिक पार्किंग थी, यहां किसी के आने और झांकने की हिम्मत नहीं होती थी. यह अपने
आपमें यमराज का नर्क लोक था. जैसे ही ड्राइवर गया, वार्ड बाॅय ने पूछा, “क्या हुआ?“
वह बोली, “मुझे बचा लो उन्हें पता लगा, तो मुझे मार डालेंगे, वक़्त नहीं है.“
वार्ड बाॅय बोला, “मुझे पांच मिनट दो. मैं अभी आया. बस, ऐसे ही लेटी रहना कोई हलचल मत करना, वरना हम दोनों मारे जाएंगे.”
और वह जवाब का इंतज़ार किए बिना अंधेरे में ओझल हो गया. वह लौटा, तो किसी भारी भरकम डमी के साथ. उसने उसे कुछ ज़रूरी कपड़े दिए और धीरे से बोला, “हम दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते और तुम मर चुकी हो, यह ध्यान रखना. हमारा काम ज़िंदगी देना है, ज़िंदगी लेना नहीं, तुम्हारे पास बस तीन से चार मिनट हैं, जहां जाना चाहो, चली जाओ. उस घर में लौट कर मत जाना.” इतना कहकर
उसने जेब से कोई तीन सौ रुपए उसे पकड़ा दिए.
उसने वार्ड बाॅय के पैर छूए.
“मैंने भगवान को नहीं देखा, लेकिन शायद ऐसा
ही होता होगा…” इतना कहते हुए उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े, जो उसके पैरों पर जा गिरे. उसने भी जैसे उसके सिर पर हाथ फेरा, “बहन, बस इतना भरोसा करो, अभी भी इंसानियत ज़िंदा है. लेकिन अब जल्दी करो निकल जाओ यहां से.”
वह बोली, “इतना किया है, तो 1098 पर एक मिस काॅल और दे दो. यह महिला हेल्प लाइन नंबर है.”
इतना कहकर वह अंधेरे में सब से बचती हुई हाॅस्पिटल के बाहर आ गई. वह स्पोर्ट्स गर्ल थी ताजी हवा मिलते ही उसमें शक्ति आ गई. वह एक दीवार की आड़ में चुप कर खड़ी हो गई. उसे पांच मिनट में सब कुछ याद आ गया. लेकिन वह यह भी महसूस कर रही थी कि वह ज़िंदा है. इधर बस पांच-सात मिनट में वह एंबुलेंस वहां से बाहर निकली. जैसे ही एंबुलेंस बाहर निकली एक पीसीआर वैन वहां घूमती दिखी. दरअसल, वह काॅल ट्रैक कर रही थी. शालिनी को पता था क्या करना है. वह एक झटके में ओट से बाहर निकली और वैन को हाथ दे कर उसे रोका. वैन में बैठी महिला इंस्पेक्टर ने उसे बिना कुछ पूछे गाड़ी में बैठा लिया और चल पड़ी. वह इंस्पेक्टर अरुणा थी.
जैसे ही अरुणा को सच पता चला. उसने एसीपी शंकर को लाइन पर लिया. एसीपी शंकर ने तुरंत ही अरुणा को बुलाया और सभी को ख़ामोश रहने का इशारा किया. उन्हें पता था कि कैसे इस केस को हैंडल करना है, उन्होने अपने प्रेस के दोस्तों से यह केस उठाने को कहा था और इस केस की जांच विक्रम को ही सौंप दी थी. जैसे ही विक्रम मेडल पा कर बेफ़िक्र हुआ, उन्होंने उसे पकड़ने का पूरा जाल बिछा दिया था और शालिनी को देख विक्रम चीख पड़ा था.
सुबह शालिनी प्रेस काॅन्फ्रेंस में इंस्पेक्टर अरुणा के साथ एसीपी शंकर के सामने थी. एसीपी शंकर शालिनी के सामने नतमस्तक थे. शालिनी ने
कहा, “आज मुझे भरोसा हो गया है कि सभी एक से नहीं होते. बुरे लोग आटे में नमक की तरह होते हैं, जो पूरे सिस्टम को बदनाम कर देते हैं. मैं अरुणाजी का शुक्रिया करना चाहती हूं, जिन्होने सही वक़्त पर मेरी जान बचाई और उस फ़रिश्ते का भी जिसे हम करोना वाॅरियार कहते हैं.” उसे सुरक्षा कारणों से मनाही थी किसी एंबुलेंस और वाॅर्ड बाॅय का ज़िक्र करने की. एसीपी शंकर ने मीडिया के सामने चैन की सांस लेते हुए कहा, “लीजिए यह रहीं आपकी मिस जयपुर शालिनीजी, जिनके मर्डर को लेकर आप लोगों ने लगातार सनसनी फैला रखी थी. और हां, इंस्पेक्टर विक्रम के कृत्यों के लिए हम शर्मिंदा हैं. साथ ही यह उलझा हुआ केस सफलतापूर्वक साॅल्व करने के लिए इंस्पेक्टर अरुणा को प्रमोशन देने के साथ प्रशस्ति पत्र से सम्मानित भी किया जा रहा है.”
– शिखर प्रयाग
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