कहानी- वो अजनबी (Short Story- Woh Ajnabee)

संजना ने देखा कि एक मनमोहक मुस्कुराहट के साथ किसी अजनबी ने ऑफिस में प्रवेश किया. संजना बिना पलकें झपकाए उसे देखने लगी. वह उस शख़्स को देख कर भूल ही बैठी थी कि आज उसका यहां पहला दिन है और वह ऑफिस में बैठी है. बस, उसको देखने लगी.

एक छोटे से गांव में रहनेवाली मध्यम परिवार की संजना, जो हमेशा आगे बढ़ने, तरक्की करने के सपने देखा करती. उनको पूरा होते हुए भी देखना चाहती थी. पर इतना आसान नही था, क्योंकि परिस्थितियां जो नहीं थी. फिर भी उसने अपने गांव की पढ़ाई पूरी कर बाहर जाने का मन बना लिया और घरवालों से अपनी बात कही. पिता ने परिस्थिति ना होते हुए भी उसे शहर भेजा. संजना को मानो पंख मिल गए. वह अपनी पढ़ाई के लिए अपने सपनों की डगर पर चल पड़ी.
बड़े शहर में आकर उसने कॉलेज शुरू किया. संजना अपने स्वभाव के अनुकूल सबका मन मोहनेवाली बातों से आकर्षित करनेवाली थी. अपनी मनमोहक मुस्कुराहट से सबका दिल जीत कर वो सबकी चहेती बन गई. बहुत अच्छे नंबर के साथ संजना ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. अब संजना को लगता था, बस उसे अच्छी-सी नौकरी मिल जाए. कभी-कभी कहते हैं ना, जो अपने मन में सोचो, तो सारी कायनात भी सुनती है. कॉलेज पूरा होते ही जो उसने तमन्ना की थी, वैसी ही नौकरी का ऑफर उसे आ गया और उसे अपने सपनों की नौकरी भी मिल गई. संजना ने दूसरे दिन अपनी ट्रेन पकड़ी और मुंबई के लिए रवाना हो गई. मन में ख़ुशी की लहर थी, क्योंकि वह अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रही थी. दूसरे दिन सुबह बताए हुए पते पर पहुंची, वो बहुत ख़ुश थी.

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उसने जो सपने देखे थे, वह पूरे होने जा रहे थे. संजना अपनी टेबल पर बैठी थी. इतनी देर में संजना ने देखा कि एक मनमोहक मुस्कुराहट के साथ किसी अजनबी ने ऑफिस में प्रवेश किया. संजना बिना पलकें झपकाए उसे देखने लगी. वह उस शख़्स को देख कर भूल ही बैठी थी कि आज उसका यहां पहला दिन है और वह ऑफिस में बैठी है. बस, उसको देखने लगी. उसको लगा जैसे उसका दिल उसके पास से निकल कर कहीं और चला गया और वापस आना ही नहीं चाहता.
संजना को पता चला वह अजनबी उसके बॉस का दोस्त है. वह मन मसोसकर रह गई. आख़िर वह मध्यम परिवार की लड़की जो थी. संजना चाह कर भी उस अजनबी को भुला नहीं पा रही थी. वह उसको जितना भुलाना चाहती, वह उतना उसकी यादों में बसने लगा. इस बात को कुछ समय बीत चुका था. संजना बड़े मुक़ाम की ओर बढ़ते हुए जीवन की ऊंचाइयों को छू रही थी, पर कमी थी, तो उस प्यार की जिसे देखते ही उसने अपना दिल खो दिया था. उसने यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि वह शख़्स उसे प्यार कर सकता है या नहीं या फिर उसे अपने प्यार के बारे में बताया जाए. इस कशमकश के साथ वह अपनी राह में आगे बढ़ती जा रही थी.
वो अजनबी जो अमन है, उसने भी पहली ही झलक में अपना दिल संजना को दे दिया था. लेकिन अमन को जब पता लगा कि वह बहुत ही मेहनती मध्यमवर्गीय परिवार से है, तो वह उसे उसकी राह से दूर करना या भटकाना नहीं चाहते था, पर संजना के बारे में हमेशा पूरी जानकारी रखता था.
अमन भी दूसरी तरफ़ संजना को पसंद करता था, पर वह भी कहीं ना कहीं यह सोच कर अपने दिल की बात नहीं बता पा रहा था कि संजना अपनी राह से भटक न जाए और ग़लत ना समझ ले. लेकिन कहते है ना सच्चे दिल से की गई सच्ची प्रार्थना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती. आख़िर वह दिन आ ही गया जब ईश्वर उन दोनों को मिलाना चाहते थे.

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संजना बहुत ख़ुश थी, क्योंकि उसके प्रमोशन की पार्टी उसकी ऑफिस की तरफ़ से रखी गई थी, लेकिन कहीं ना कहीं उसका मन उस अजनबी को ढूंढ़ रहा था. काश, वह भी इस पार्टी में होता. उसका मन कहीं ख़्यालों में खोया हुआ था. तभी संजना देखती है कि बहुत बड़ा फूलों का गुलदस्ता लेकर वही अजनबी उसकी तरफ़ आ रहा है. अमन ने फूलों के साथ अपने प्यार का इज़हार किया. संजना का वह सपना, जो सालों से पलकों पर था, वह सच हुआ. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह अपनी ख़ुशी कैसे व्यक्त करें. आज अमन और संजना एक हो गए और एक ख़ामोश प्यार की जीत हुई.

कल्पना पारीक

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Usha Gupta

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