कहानी- अर्द्धविराम 5 (Story Series- Ardhviraam 5)

“सर्विस से रिटायर हो जाना आपके जीवन का पूर्णविराम नहीं, बल्कि यह तो अर्द्धविराम है. अभी तो आपको जीवन में बहुत काम करने बाकी हैं. हम लोगों के साथ अनगिनत ख़ुशियों के पल जीने हैं. जो संस्कार आपने मुझे दिए, वही संस्कार अपने पोते को देने हैं. अपनी फैक्ट्री को आगे बढ़ाना है और सबसे बढ़कर हम लोगों के सिर पर सदैव अपना हाथ बनाए रखना है.” आरव भावुक हो उठा.

दार्जिलिंग पहुंचकर वहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने उन्हें अभिभूत कर दिया. दूर-दूर तक फैली ब़र्फ से आच्छादित पहाड़ियां,
हरे-भरे देवदार और चिनार के वृक्ष, ख़ूबसूरत चाय के बागान. अनजान शुभचिंतक ने उनकी बड़े नामी होटल में बुकिंग भी करवा रखी थी. वह जो कोई भी था, बेशक उन्हें हृदय से प्यार करता था, अन्यथा आज के ज़माने में कौन किसी की इतनी परवाह करता है.
उस पूरी शाम होटल के कमरे में बैठे वे अंजलि से बातें ही करते रहे. इतनी बातें तो उन्होंने पिछले दो-तीन वर्षों में उससे नहीं की होंगी. अगली सुबह तैयार होकर वे दोनों नीचे नाश्ता करने जा ही रहे थे कि दरवाज़े पर दस्तक हुई. उन्होंने दरवाज़ा खोला, तो आश्‍चर्य और ख़ुशी से उनकी आंखें फैल गईं. अंजलि भी हैरान थी. “अरे तुम लोग?”
“हां, मम्मी-पापा.” आरव, रिचा और सनी हंसते हुए अंदर आए और उनके पैरों पर झुक गए. भावविह्वल हो उन्होंने दोनों को गले से लगा लिया. “इसका मतलब तुम लोगों ने हमारा टूर प्लान किया था. आख़िर तुम लोगों को यह सब करने की क्या सूझी?” उन्होंने स्नेह से पूछा.
आरव आराम से बेड पर बैठकर बोला, “पापा, आप जीवन से दूर जा रहे थे. अपनी ख़ुशियों से विमुख हो रहे थे. जब इंसान के मन में निराशा घर करने लगती है, तो वह सकारात्मक चीज़ों को भी संदेह की दृष्टि से देखने लगता है. दूसरों की नकारात्मक सोच उस पर असर डालने लगती है.”

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ठीक ही तो कह रहा है आरव, वे सोचने लगे. नकारात्मक भाव ही उनके मन में आने लगे थे. अपना अहम्, जिसके चलते अपने ही घर के काम करने में स्वयं को छोटा महसूस कर रहे थे. क्या हो गया था उन्हें? कुछ दिनों से एक अंधेरी घुटन भरी गुफा में चल रहे थे और अब यकायक उस गुफा से बाहर आ गए हैं, जहां फैले प्रकाश ने उनके अंतर्मन को आलोकित कर दिया है. “पापा, आप सुन रहे हैं न.”
“अं हां, बोलो बेटे.” वे उसकी ओर देखने लगे. “पापा, मैं आपको इस स्थिति से बाहर निकालना चाहता था. मुझे अपने वही पापा चाहिए थे, जो हमेशा कहा करते थे कि जीवन के हर पड़ाव का ज़िंदादिली से सामना करना चाहिए और इसके लिए मुझे इससे अच्छा दूसरा उपाय नहीं सूझा. पापा, आपकी अपनी फैक्ट्री है, दूसरों की नौकरी करने की बजाय आप अपनी फैक्ट्री में बैठिए, ताकि मुझे आपके अनुभव का लाभ मिले. पापा, आपको मम्मी के साथ यहां भेजने का मक़सद यही था कि आपको एहसास हो कि सर्विस से रिटायर हो जाना आपके जीवन का पूर्णविराम नहीं, बल्कि यह तो अर्द्धविराम है. अभी तो आपको जीवन में बहुत काम करने बाकी हैं. हम लोगों के साथ अनगिनत ख़ुशियों के पल जीने हैं. जो संस्कार आपने मुझे दिए, वही संस्कार अपने पोते को देने हैं. अपनी फैक्ट्री को आगे बढ़ाना है और सबसे बढ़कर हम लोगों के सिर पर सदैव अपना हाथ बनाए रखना है.” आरव भावुक हो उठा. उसकी बातें सुनकर ख़ुशी से उनकी आंखें छलछला आईं. मन ही मन वे उस परमपिता परमेश्‍वर के चरणों में झुक गए, जिसने उन्हें इतना स्नेहिल परिवार दिया. सचमुच उन्हें भी लग रहा था, यह तो उनके जीवन का अर्द्धविराम ही है.

रेनू मंडल

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Usha Gupta

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