… “अच्छा किया, मन हल्का हो गया. अब उससे मिल भी लो. मिलने-जुलने के बाद तुम्हारे लिए यह निर्णय लेना आसान हो जाएगा कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाना है या नहीं. मेरा मानना है कि ज़िंदगी में पूरी अंडरस्टेडिंग के बिना कोई नज़दीकी रिश्ता मत बनाओ और न ही छोटी-सी मिसअंडरस्टेंडिग से कोई बना बनाया रिश्ता तोड़ो.”
“तुम सही कह रही हो. मैं आज ही उससे मिलने का कहती हूं. तुम भी साथ चलो न.” उसे बच्चों की तरह आग्रह करते देख मैं हंस पड़ी थी.
“तुम डेट पर जा रही हो. कोई फैमिली फंक्शन में नहीं.” हम दोनों ही हंस पड़े थे. नीति के माथे से चिंता की लकीरें धुंधली पड़ते देख मैंने राहत महसूस की थी.
ऑफिस वर्क ज़्यादा हो जाने से काफ़ी समय तक हमारी इस बारे में कोई बात नहीं हुई. एक दिन ऑफिस में ही उसका कॉल आया.
“कब से तेरे साथ बैठकर बातें करने की सोच रही थी, पर रोज़ ही क्षितिज के साथ कहीं न कहीं जाने का प्रोग्राम बन जाता है. आज भी शाम को बाहर जाना है. ऐसा करते हैं आज लंच ब्रेक में मिलते हैं. तू रूफटॉप पर मिलना.”
नीति की बातों से ही मुझे पता चल गया था कि क्षितिज के साथ उसकी पटरी बैठ गई है, पर फिर भी आमने-सामने बैठकर सब कुछ उसके मुंह से सुनना अलग ही सुकून दे रहा था.
“मेरी उम्मीद से बेहतर जीवनसाथी साबित हो रहा है क्षितिज! मेरी पसंद-नापसंद, ख़ुशी का वह बहुत ख़्याल रखता है. आए दिन तोहफ़े देता रहता है. कल तो पूछने लगा हनीमून पर कहां चलना पसंद करोगी?” बताते हुए नीति के गाल गुलाबी हुए जा रहे थे. मैं उसकी ख़ुशी में ख़ुश थी. शादी में आने का आग्रह कर नीति लंबी छुट्टी पर चली गई थी, पर मैं छुट्टी न मिल पाने के कारण उसकी शादी में शरीक नहीं हो सकी थी.
हनीमून मनाकर लौटी नीति ने ऑफिसवालों को अच्छी-सी पार्टी दी थी. दोनों एक टूबीएचके अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गए थे. मेरे साथ दूसरी लड़की रहने आ गई थी. पार्टी में ही मेरी पहली बार उसके पति से मुलाक़ात हुई थी. सूट-बूट में मेहमांनवाजी करता औरों की तरह मुझे भी वह अच्छा ही लगा था. फिर कभी नीति की बर्थडे पर, तो कभी किसी पिकनिक पर उससे मुलाक़ातें होती रहीं. समंदर की ऊपरी परत की तरह मुझे सब कुछ शांत और स्थिर ही नज़र आया था. गहन में चल रही उथल-पुथल का मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था. वैसे भी उसकी शादी के बाद हमारा मिलना कम हो गया था.
एक दिन अपने चिरपरिचित अंदाज़ में नीति ने ऑफिस के बाद डिनर पर चलने का आग्रह किया, तो मेरा माथा ठनका. ज़रूर फिर कोई धमाका होनेवाला है.
“मैं क्षितिज से अलग हो रही हूं.” डिनर टेबल पर बैठते ही वह बोल पड़ी थी. लगभग 10 माह पूर्व उसने इसी अंदाज़ में अपनी सगाई की ख़बर का ख़ुलासा कर मुझे इसी तरह चौंकाया था.
“पर क्यों?”
“उसके कई लड़कियों से अवैध संबंध हैं. मेरे पास प्रूफ भी है.”
“कब से है यह सब?”
“यह पता लगाना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि वह लड़कियां बदलता रहता है. पर लगता है शादी के पहले से यह सब चल रहा है. उसे नए जिस्म की लत है.”
डर के मारे मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. ‘कैसे सहा होगा इसने सब कुछ?’
नीति शायद डर के इस दौर से गुज़र चुकी थी, इसलिए मेरे मनोभावों को दरकिनार कर बोले जा रही थी.
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