कहानी- बाजूबंद २ (Story Series- Bajuband 2)

शादी के समय मां का फिर बाजूबंद देखने-पहनने का मन हुआ, पर मैंने यह कहकर कि दोनों बहुएं और ख़ुद मिंकी ही इतने भारी गहने नहीं पहन रही, उन्हें फिर बहला दिया. लेकिन शादी के बाद जब गहने रखवाने गए, तो उन्होंने बाजूबंद देखने की ज़िद ही पकड़ ली.

 

 

 

 

 

 

… “ध्यान है. उन्हें बैंक लाने ले जाने का काम आप ही का था. उनका लॉकर भी तो एकदम नीचे था. अपने आप तो वे ऑपरेट कर ही नहीं सकते थे.”
“बिल्कुल. कभी-कभी तो मदद के लिए सुमन को भी साथ लेना पड़ता था. इधर युवा होती पिंकी-मिंकी को लेकर सुमन की चिंता बहुत बढ़ गई थी. मेरी नौकरी में तो उनकी उच्च शिक्षा का ख़र्चा ही मुश्किल से निकल पाता था. कैसे उनकी शादियां होगीं?.. सुमन मुझ पर दबाव बनाने लगी थी.” सुकेश भैया थूक गटकने लगे, तो मैं समझ गई कुछ बताने के लिए उन्हें बहुत साहस जुटाना पड़ रहा है. मैंने पानी का एक और ग्लास उन्हें पकड़ाया. उसे पीकर भी उनके माथे पर स्वेद बिंदु झलक आए. मन में सहानुभूति उमड़ आई, जो अगले ही पल यह सुनकर विलुप्त
हो गई.
“… सुमन की नज़र मां के बाजूबंद पर थी.”
मैं चौंक गई. मस्तिष्क में कुछ स्मृतियां उभरीं. होंठ कुछ कहने के लिए फड़फड़ाए, पर मैंने चुप्पी साध ली. मैं सब कुछ उन्हीं के मुंह से सुनना
चाहती थी.
“एक दिन जब मां-बाउजी आपके पास आए हुए थे, मैं और सुमन बैंक जाकर लॉकर से मां का बाजूबंद निकाल लाए…” झुकी नज़रें और लड़खड़ाते बोल इंगित कर रहे थे कि कितना साहस जुटाकर वे यह सब बता रहे थे.

 

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“मां-बाउजी की सौगंध खाकर कहता हूं इस सबके बाद मेरी आत्मा ने मुझे बहुत धिक्कारा. सोचा तो था कि इसे तुड़वाकर दोनों बेटियों के गहने बनवा देगें, पर ऐसा कुछ हो नहीं पाया. इस बीच दो-तीन बार मां-बाउजी के साथ लॉकर ऑपरेट करवाने जाना पड़ा. एक बार मां ने बाजूबंद देखने का आग्रह भी किया, पर मैं टाल गया. झूठ-मूठ हाथ डालकर कह दिया कि पीछे डिब्बा रखा है. अभी ऑफिस जाने में देर हो रही है. फिर कभी दिखा दूंगा… फिर पिंकी के भागकर शादी कर लेने की ख़बर आई. इस ख़बर ने हमारी तो कमर ही तोड़ दी थी. हम कहीं मुंह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहे थे, लेकिन आपने स्थिति संभाली. आनन-फानन में एक छोटे से उत्सव का आयोजन कर दिया. यही नहीं विदाई के समय आपने अपना चंद्रहार उतारकर पिंकी को पहना दिया था. यह कहते हुए कि बेटी खाली हाथ विदा नहीं होती. मैं ओैर सुमन तो पूरे समय कुछ सोचने-समझने की स्थिति में ही नहीं थे.
सालभर के भीतर मिंकी का भी रिश्ता तय कर उसे विदा कर दिया गया. दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है. शादी के समय मां का फिर बाजूबंद देखने-पहनने का मन हुआ, पर मैंने यह कहकर कि दोनों बहुएं और ख़ुद मिंकी ही इतने भारी गहने नहीं पहन रही, उन्हें फिर बहला दिया. लेकिन शादी के बाद जब गहने रखवाने गए, तो उन्होंने बाजूबंद देखने की ज़िद ही पकड़ ली. तीन बार पूरा लॉकर खंगाल लेने के बावजूद भी जब बाजूबंद नहीं निकला, तो सबके चेहरे फक्क पड़ गए. मैं घबराहट दर्शाने के साथ-साथ उन्हें सांत्वना भी दे रहा था.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संगीता माथुर

 

 

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Usha Gupta

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