कहानी- बेशऊर 1 (Story Series- Beshur 1) 

तभी पेड़-पौधौं का मुआयना करते समय उसकी नज़र पिंक गुलाबों वाले गमले पर गई, जिसमें खिले दोनों फूल गायब थे. कौन तोड़ ले गया? शर्मा दंपती के वश का तो यह था नहीं, दाएं तरफ़ वाला फ्लैट, कई महीनों से खाली पड़ा था. एक हफ़्ते से थोड़ी हलचल नज़र आ रही थी, पर उसे अब तक कोई दिखा नहीं था. तभी गमले के पास उसे एक पैकेट मोमबती का नज़र आया. कहां से आया यह पैकेट? किसी अपने-पराए को तो उसकी परवाह ही नही है, फिर किसको उसकी ज़रूरत और उसके डर का ख़्याल था. गुलाब गायब होने का दर्द भूला, पैकेट उठाए वह अपने कमरे के अंदर आ गई थी.

पटना में तीन दिनों से मुसलाधार बारिश हो रही थी. तेज गर्मी के बाद अचानक हुए बारिश ने सब का मन मोह लिया था, पर तीसरे दिन भी बारिश की वही रफ़्तार देख लोगों को चिंता होने लगी. आसपास का सारा इलाका पानी में डूबने लगा था. एक चार मंजिला इमारत के चौथे फ्लोर पर बने, इकलौते कमरे में अकेले रहनेवाली अंजली इस वर्षा के कारण बहुत परेशान थी. बिजली बार-बार गुल हो जा रही थी. सामने के टेबल पर बस दो ही मोमबतियां उसे नज़र आ रही थी. अंधेरे से वैसे भी उसे बहुत डर लगता था. इमर्जेंसी लाइट भी ख़राब पड़ा था. नीचे के फ्लोर पर उसकी भाभी रहती थी, पर उसे पता था कि उनसे मोमबती मांगने पर वह कोई बहाना बना देंगी. शाम में ही रात का माहौल हो गया था. तभी दरवाज़े पर आवाज़ हुई. भाभी की मेड से मां ने चुपचाप दो मोमबतियां भिजवाई थी. मोमबतियां मेज पर रखकर वह गमलों में भरे पानी को बाहर निकालने में जुट गई. इस काम में पूरा आधा घंटा लग गया. गमलों में लगे ये पौधे ही तो उसके निसंग जीवन के आधार थे. इन्ही के सहारे तो वह अपने को व्यस्त रखती. उसके दाएं-बाएं तरफ़ के मकान का चौथा मंजिल उसके छत से लगभग जुड़ा हुआ था. पटना की यह ख़ासियत है कि नियम-क़ानून को ताक पर रख लोग एक इंच ज़मीन भी नहीं छोड़ना चाहते. बाएं तरफ़वाले फ्लैट में हमेशा की तरह शर्मा दंपति बालकनी में बैठे मोटे काले बादलों की परतों से रह-रह कर गिरते पानी के फुहार को देख रहें थे. अंजली से नज़रें मिली तो दोनों ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया.

तभी पेड़-पौधौं का मुआयना करते समय उसकी नज़र पिंक गुलाबों वाले गमले पर गई, जिसमें खिले दोनों फूल गायब थे. कौन तोड़ ले गया? शर्मा दंपती के वश का तो यह था नहीं, दाएं तरफ़ वाला फ्लैट, कई महीनों से खाली पड़ा था. एक हफ़्ते से थोड़ी हलचल नज़र आ रही थी, पर उसे अब तक कोई दिखा नहीं था. तभी गमले के पास उसे एक पैकेट मोमबती का नज़र आया. कहां से आया यह पैकेट? किसी अपने-पराए को तो उसकी परवाह ही नही है, फिर किसको उसकी ज़रूरत और उसके डर का ख़्याल था. गुलाब गायब होने का दर्द भूला, पैकेट उठाए वह अपने कमरे के अंदर आ गई थी.

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नीचे के फ्लैट से उठती बासमती चावल के पुलाव की बढ़िया ख़ुशबू से उसने कयास लगाया भाभी के घर में आज शायद पुलाव और मटर पनीर की सब्ज़ी बन रही थी. सोचने से क्या फ़ायदा?उसे पता है अम्मा के कहने पर भी भाभी उसके लिए नहीं भेजेंगी. अब तो वह उन सभी के लिए एक पागल लड़की थी. पलंग पर बैठे बैठे बाल नहीं संवारने के कारण उलझ गए बालों को किसी तरह हाथों से सुलझाकर जुड़ा बना लेने के बाद, मन हुआ थोड़ा खिचड़ी ही पका लूं, पर उठने का मन नहीं किया. बाहर पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था.
जब तक ससुराल में थी, हर समय, हर बात में सासू मां कहती, “कैसी औरत है? किसी बात का शऊर ही नहीं है. न ढंग से तैयार हो सकती है, न सलीके से किसी से बात कर सकती है. एक तो रंग सांवला, उस पर से मां-पिता ने कोई सलिका भी नहीं सिखाया. पति रिझे भी तो कैसे? मेरे बेटा की तो ज़िंदगी बर्बाद हो गई…”

रीता कुमारी

 

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

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Usha Gupta

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