कहानी- बेशऊर 5 (Story Series- Beshur 5) 

 

पर वह न रोई, न चिल्लाई, न ही अपना दोष स्वीकारा, न क्षमा मांगी. अपने कमरे में आकर दरवाज़ा बंद कर ली. अब वह क्षमा मांगने की परिधि से बाहर आ गई थी. ऐसा नहीं था कि भाभी की बातें उसे चुभती नहीं थी, पर अब उसके अंदर जतिन के प्रेम का बल था. अपनी पसंद से ब्याह करना अगर चरित्रहीनता है, तो एक चरित्रहीन व्यक्ति के नाम पर सारी उम्र गुज़ारना, सच्चरित्रा का प्रमाणपत्र नहीं हो सकता. एक भुवन के ठुकरा देने मात्र से वह सारी दुनिया के लिए बेकार नहीं हो गई थी.

अब हर समय आईना उसकी आंखों के सामने होता तो उसका अस्त-व्यस्त व्यक्तित्व, सुव्यवस्थित होने लगा. धीरे-धीरे उसके उलझे बाल अब संवरे रहने लगे. कपड़े भी सलीके से पहनती. अब चिड़ियों से नहीं, ज़्यादातर बातें बालकनी में खड़े उस व्यक्ति से होती, जिसने अपना नाम जतिन बताया था. कभी-कभी बगलवाले अंकल-आंटी से भी बातें कर लेती. अंधेरे में गुम होता उसका अस्तित्व अचानक जीवन की तरफ़ उन्मुख हो गया था. वह भले ही न विधवा थी, न सधवा, पर एक औरत थी, जिसका मन जीवित था. मन जीवित था, तो हर औरत की तरह उसे भी एक साथी की चाहत थी. जिसकी संभावना अब उसे बालकनी में खड़े जतिन में दिखती, जो उसके दर्द को अपनों की तरह महसूस कर रहा था. उसके दब्बूपन में आत्मविश्‍वास भर उसे निराशा और अवसाद से धीरे-धीरे बाहर निकाल रहा था. इसी दौरान न जाने कब उसे इस सीधी-सादी सरल लड़की से प्यार हो गया.
फिर लोगो ने देखा एक दिन जतिन की मां ने उसके घर शादी का संदेशा भिजवाया, पर उसके भैया और भाभी ने इस विजातीय शादी से साफ़ इंकार कर दिया था. एक ब्राह्मण कुल की लड़की अपने से नीचे कुल में कैसे ब्याही जा सकती थी. इतना ही नहीं, भाभी ने उसे बुलाकर अपनी अग्नीगर्भा दृष्टि से उसे झुलसाते हुए उस पर चरित्रहीनता का लांक्षन तो लगाया ही, कुल की मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए पूरे घर में हंगामा बरपा दिया था.
पर वह न रोई, न चिल्लाई, न ही अपना दोष स्वीकारा, न क्षमा मांगी. अपने कमरे में आकर दरवाज़ा बंद कर ली. अब वह क्षमा मांगने की परिधि से बाहर आ गई थी. ऐसा नहीं था कि भाभी की बातें उसे चुभती नहीं थी, पर अब उसके अंदर जतिन के प्रेम का बल था. अपनी पसंद से ब्याह करना अगर चरित्रहीनता है, तो एक चरित्रहीन व्यक्ति के नाम पर सारी उम्र गुज़ारना, सच्चरित्रा का प्रमाणपत्र नहीं हो सकता. एक भुवन के ठुकरा देने मात्र से वह सारी दुनिया के लिए बेकार नहीं हो गई थी. भाभी की बात वह क्यूं सुने. जब वह बीमार होती थी, अकेले कमरे में छटपटाती रहती थी. आसपास कोई नहीं होता था सिवाय एक शून्य से भरे अंधकार के. रात के अंधेरे में वह कितनी बार पुकारती, पर उसकी आवाज़ कोई नहीं सुनता था. अब वह क्यों किसी की सुने. बरसों एक पुरुष के अत्याचारों का शिकार रही, तब किसी के गले से आवाज़ नहीं निकली. किसी ने उसके हाल नहीं पूछे. आंसू नहीं पोंछे. जतिन उन सभी के लिए नीची जाती का होगा, तो रहे. उसके लिए वह उसका दोस्त, प्रेमी और पथ प्रर्दशक है. अगर आज वह निर्णय नहीं ले स्की, तो एक बार फिर उसे उन्ही निर्मम और हृदयहीन लोगों के बीच परित्यक्ता बन कर रहना होगा. अचानक अंजली की आंखों में अद्भुत दृढ़ता आ गई थी.
वह चुपचाप हाथ में एक बैग लिए घर से निकल गई थी. कुछ ही घंटे बाद लोगों ने देखा जतिन बाबू के साथ लाल जोड़े में सजी-धजी अंजली कार से उतरकर अपनी मां से मिलने गई. भाई-भाभी ने भले ही उसे दरवाज़े पर रोक दिया, पर मां ने घर से बाहर आकर दोनों को भीगी आंखों से आशीर्वाद दिया और अपनी कलाई से अपने कंगन उतारकर, उसे पहनाते हुए बोली, ‘‘जा अपनी गृहस्थी में ऐसे गुम हो जा कि मुड़कर मायके की तरफ़ देखने की भी फ़ुर्सत ना मिले.”

कहानी का अंतिम भाग…

रीता कुमारी

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Usha Gupta

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