कहानी- चरित्रहीन 3 (Story Series- Charitrheen 3)

वह तो जैसे आसमान से गिरी हो. कहां ऑफ़िस वाले स्मार्ट मोहनजी और कहां ये.
ड्रॉइंगरूम में घुसते ही मोहनजी बोले, “गुड मॉर्निंग मिस के. वाई.”
पानी का ग्लास हाथ से छूटते-छूटते बचा मिस के. वाई. के हाथ से,
“सर आप?”
“क्यों भाई, क्या मेरी कोई पर्सनल लाइफ़ नहीं हो सकती?”

वह ऑटो लेकर मोहनजी के घर पहुंच गई. घर के बाहर छोटा-सा लॉन था. उसने ऑटोवाले को पैसे दिए और कॉलबेल बजा दी. तभी उसकी नज़र लॉन में पौधों को पानी दे रहे एक अधेड़ आदमी पर पड़ी. उसे देखकर के. वाई. की जान में जान आई. इतने में भीतर से आती हुई एक महिला मुस्कुराते हुए बोली, “तुम यामिनी हो न. अंदर आओ, बाहर क्यों खड़ी हो?”
उसके आश्‍चर्य का ठिकाना न रहा. इन्हें मेरा नाम कैसे मालूम है?
“मोहनजी यहीं रहते हैं?”
‘हां भाई, यह मोहनजी का ही घर है. तुम अंदर तो आओ.” महिला ने कहा.
“और आप?”
“मैं उनकी धर्मपत्नी हूं.”
“पर मोहनजी ने बताया था कि वे अकेले रहते हैं.”
“मैं कल रात ही आई हूं पुणे से.” महिला मिस के. वाई. का हाथ पकड़ उसे ड्रॉइंगरूम में लाते हुए बोली. उनकी पत्नी को देख के. वाई. का सारा तनाव छू-मंतर हो गया. उनकी पत्नी ऐसे बातें कर रही थीं, जैसे बरसों से उसे जानती हों. तभी मिस के. वाई. ने पूछा, “सर नहीं हैं क्या?”
महिला बोली, “मुलाक़ात नहीं हुई क्या? वो लॉन में पौधों को पानी दे रहे थे. अभी बुलाती हूं. अरे मोहन…”
“अभी आया.”
देखा तो पायजामा आधा घुटने के ऊपर उठाए, खादी का कुर्ता पहने वही अधेड़ आदमी घर के भीतर चला आ रहा है. वह चौंकी, ये मोहनजी हैं. वह तो जैसे आसमान से गिरी हो. कहां ऑफ़िस वाले स्मार्ट मोहनजी और कहां ये.
ड्रॉइंगरूम में घुसते ही मोहनजी बोले, “गुड मॉर्निंग मिस के. वाई.”
पानी का ग्लास हाथ से छूटते-छूटते बचा मिस के. वाई. के हाथ से,
“सर आप?”
“क्यों भाई, क्या मेरी कोई पर्सनल लाइफ़ नहीं हो सकती?” यामिनी को चौंकते देख मोहनजी बोले, “तुम बैठो, बस मैं अभी आया हाथ-मुंह धोकर.” और जब साफ़-सुथरे कपड़ों में मोहनजी ने कमरे में क़दम रखा, तो चेहरे से गंभीरता टपक रही थी. मिस के. वाई. को लगा जैसे वह अपने किसी पिता तुल्य पुरुष से बात कर रही है. उसने सिर झुका लिया और बोली, “सर, मुझे माफ़ कर दीजिए.”
मोहनजी बोले, “क्यों? ऐसी क्या ग़लती की तुमने कि माफ़ी मांग रही हो?”
“सॉरी सर, मैंने आपके बारे में ग़लत सोचा.” मिस के. वाई. याचना करते हुए बोली.
“क्या हुआ यामिनी बेटा?” इस बार मिसेज़ मोहन बोलीं.
मोहनजी मुस्कुराते हुए बोले, “किसी के बारे में सही-ग़लत सोचना इंसान का अपना नज़रिया है. ज़रूरी नहीं कि सबका नज़रिया एक-सा हो. मैं काफ़ी दिनों से तुम्हें घर बुलाने की सोच रहा था, पर मेरी पत्नी कल ही आई. इसीलिए घर बुलाने में समय लग गया.”
“ओह! बस इतनी-सी बात. मेरा मोहन कभी ग़लत काम नहीं करता. तुम्हें पता है जब हमारी शादी हुई तो मोहन कैसा था?” और इतना कहकर मिसेज़ मोहन एक पुराना एलबम ले आईं.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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