कहानी- दूसरा वर 1 (Story Series- Dusara Var 1)

इतने समझदार कि जानकी चाहती रही मोबाइल पर रोज़ बात करें, पर संभव ने शादी की तारीख़ तक चार-छह बार ही बात की. बारात में गिनती के लोग आए. जानकी बड़ी हसरत से जयमाला के लिए मंच पर आई.

मतिभ्रम हुआ है कि यही यथार्थ है? जिसे चाचा समझा था वह डॉ. संभव हैं और जिसे डॉ. संभव समझ पहली नज़र में दिल दे दिया, वह उनके ठीक बगल में खड़ा उनका अनुज संयम है. जानकी सदमे में. संयम पूरी तरह चंचल हो रहा था, “भौजाईजी, भइया को माला पहनाइए.”

मैथिली भी यथार्थ पर अचंभित थी. उसने भी वही समझा था, जो जानकी ने, लेकिन अब स्थिति का सामना करना है. बोली, “पहना रही हैं भौजाईजी के देवरजी. थोड़ा धीर धरें.”

विकास की ओर अग्रसर कस्बा-करारी. करारी का चार पुत्रियोंवाला साधारण-सा परिवार. निजी संस्थान के मामूली पद पर कार्यरत बाबूजी का स्तर साधारण है, पर लक्ष्य बड़ा है- पुत्रियों को कुछ दे सकें, न दे सकें, पर पढ़ने का पूरा अवसर देंगे.

बड़ी पुत्री जानकी हिंदी विषय में एमए उत्तीर्ण कर करारी की निजी स्कूल में प्राथमिक कक्षा में अध्यापन करते हुए इसी साल 25 की हुई है. उसके परिणय के लिए बाबूजी जहां भी गए, एक ही प्रश्‍न- कितना देंगे? बाबूजी पिटे हुए प्यादे की तरह घर लौट आते. कोई ख़बर नहीं थी बात बनेगी और आसानी से बनेगी. तय तिथि पर लड़केवाले जानकी को देखने आ रहे हैं. माता-पिता जीवित नहीं हैं. दो भाई हैं, जो चाचाजी के साथ आएंगे, लेकिन तीन नहीं, दो प्राणी ही तशरीफ लाए. जानकी से छोटी, मेहमानों की आवभगत में तल्लीन मैथिली, बुलावे के लिए सजकर तैयार बैठी जानकी से बोली, “चाचाजी और लड़का ही आए हैं. लड़का इतना सजीला है कि जानकी तुम्हारा जी मचल-मचल जाएगा.”

जानकी घबरा गई, “मैथिली, मैं तुम्हारी तरह बेशर्म नहीं हूं.”

“सजीले को देखकर मदहोश हो जाओगी. चलो, बैठक में तुम्हारी पुकार हो रही है.”

बैठक में सलज्ज जानकी की दृष्टि नहीं उठती थी. बड़ा ज़ोर लगाकर उसने अगल-बगल बैठे दोनों प्राणियों को देखा. सचमुच सजीला है. यदि कुछ पूछा जाएगा, तो बताते समय अच्छी तरह देख लेगी. वे दोनों इतने सज्जन निकले कि कुछ नहीं पूछा.

सज्जनों के जाने के उपरांत तीसरी बहन वैदेही ने पूछा, “जानकी, हरण करनेवाले कैसे लगे?”

“मैं बेशर्म नहीं हूं.”

बाबूजी योजना बनाने लगे, “लड़केवाले शादी जल्दी चाहते हैं. अगले माह अच्छा मुहूर्त है.”

अम्मा संशय में है, “सब कुछ बहुत अच्छा है, लेकिन संभव जानकी से 10 साल बड़े हैं.”

बाबूजी बेफ़िक्र हैं, “संभव डॉक्टर हैं. सुपर स्पेशिलाइज़ेशन, फिर प्रैक्टिस जमाने तक डॉक्टरों की इतनी उम्र हो जाती है. मुझे तो संभव बहुत सीधे-सादे और समझदार लगते हैं.”

इतने समझदार कि जानकी चाहती रही मोबाइल पर रोज़ बात करें, पर संभव ने शादी की तारीख़ तक चार-छह बार ही बात की. बारात में गिनती के लोग आए. जानकी बड़ी हसरत से जयमाला के लिए मंच पर आई.

मतिभ्रम हुआ है कि यही यथार्थ है? जिसे चाचा समझा था वह डॉ. संभव हैं और जिसे डॉ. संभव समझ पहली नज़र में दिल दे दिया, वह उनके ठीक बगल में खड़ा उनका अनुज संयम है. जानकी सदमे में. संयम पूरी तरह चंचल हो रहा था, “भौजाईजी, भइया को माला पहनाइए.”

मैथिली भी यथार्थ पर अचंभित थी. उसने भी वही समझा था, जो जानकी ने, लेकिन अब स्थिति का सामना करना है. बोली, “पहना रही हैं भौजाईजी के देवरजी. थोड़ा धीर धरें.”

जानकी के हाथों को सहारा देकर मैथिली और वैदेही ने माला डलवा दी. फोटो शूट के बाद जानकी अंदर कमरे में लाई गई. उसे ससुराल से आए वस्त्र पहनकर चढ़ावा के लिए तैयार होना है. तैयार होने का उमंग गायब था. बिछावन पर बैठकर हिचककर रोने लगी. अम्मा जानती थीं कि उस दिन चाचा नहीं आ पाए थे. जानकी ने सामान्य कद-सूरत व रंगतवाले संभव को चाचा और सजीले संयम को संभव समझ लिया है. उन्होंने बाबूजी से कहा था संभव अपनी उम्र से बड़े लगते हैं. दुबली जानकी अपनी उम्र से कम लगती है, पर बाबूजी ने निर्णय सुना दिया था, “लड़के का रूप-रंग नहीं, पद-प्रतिष्ठा देखी जाती है.” अम्मा विवश हुई. जानकी को इस तरह रोते देख, रिश्ते-नातेदार, महिलाएं पता नहीं क्या अर्थ लगाएंगी. वे उनसे बोलीं, “जानकी आज पराई हुई. ऐसे मौ़के पर रोना आ ही जाता है. आप लोग भोजन करें. मैं इसे आगे की रस्म के लिए तैयार कर दूं.”

उनके जाते ही अम्मा ने जानकी को गले से लगा लिया, मत रो जानकी.”

“अम्मा, तुमने मुझे धोखे में रखा.”

“मैं नहीं जानती जानकी तुमने क्या देखा और क्या समझा. संभव की डॉक्टरी अच्छी चलती है. घर में पैसा भरा है.”

“तुम्हें पैसा दिखता है. अधेड़ नहीं दिखता?”

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“35 का लड़का अधेड़ नहीं हो जाता. बाबूजी की हैसियत जानती हो. जो कर सकते हैं, कर रहे हैं. न रोओ. बात फैलेगी, तो बारात लौट सकती है. हम तो जीते जी मर जाएंगे.”

जानकी ने मान लिया विरोध का कोई मतलब नहीं. यदि बारात लौट गई, तो बहनों के विवाह में अड़चन आएगी. जिस संयम को पहली नज़र में दिल दे दिया, वह नफ़रत से भर जाएगा. छोटी हैसियतवालों को बड़े सपने नहीं देखने चाहिए. सजीले राजकुमार अमीरजादियों को मिलते हैं. वह तैयार होने लगी. संयम फोटोग्राफर को ले आया, “भौजाईजी, तैयार नहीं हुईं? फोटो शूट होना है.”

मैथिली ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की, “ठहरिए, भौजाई के देवरजी. लड़कियों को तैयार होने में व़क्त लगता है. वह तो आप लड़के हैं कि कोट-पैंट पहना और हो गए तैयार.”

संयम, मैथिली को देखता रह गया, “आप लड़की हैं कि क्या हैं?”

“आना-जाना बना रहेगा. जान लीजिएगा हम मैथिली हैं.”

संयम पूरी रात संभव और जानकी के आसपास मंडराता रहा. किसी मित्र ने नियंत्रित किया, “बहुत ऊपर-ऊपर हो रहे हो. शादी तुम्हारी नहीं, भइया की हो रही है.”

“इस समय मैं भौजाई की ननद का रोल कर रहा हूं. मेरी बहन आज होती, तो इन्हें इसी तरह घेरे रहती.”

जानकी विदा होकर संगतपुर आ गई. बड़ा और व्यवस्थित मकान. पहली रात का आरंभ संभव ने अपनी पारिवारिक रूपरेखा बताकर किया.

“जैसा कि तुम जानती होगी पापा और मां डॉक्टर थे. यह मकान व संपत्ति उनकी बनाई हुई है. दोनों का अच्छा नाम था. उनके नाम का पूरा फ़ायदा मुझे मिल रहा है. वे हम तीनों भाई-बहन को डॉक्टर बनाना चाहते थे, पर संयम को आर्ट्स सब्जेक्ट अच्छा लगता था. बीकॉम के बाद लॉ किया. अब कचहरी में प्रैक्टिस करता है.”

“आपकी बहन भी है?”

  सुषमा मुनीन्द्र

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