रात-दिन बराबर थे और यहां आकर भी उसकी आंखों में नींद नहीं थी. वह रातभर जागकर तनु के सिर पर हाथ फेरता उसे देखता रहता. पता नहीं यहां से वापस जाने के बाद कितने महीनों तक उसे दोबारा देख नहीं पाएगा. देख भी पाएगा या नहीं, ये भी नहीं पता. और उसके दिल में बुरी तरह से एक हौल उठता. आंखें भर आतीं. कब किस जंगल में सर्च ऑपरेशन के समय वह आतंकवादियों की गोली का निशाना बनकर अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में ही बाकी रह जाए… आंखों से बहते आंसू वह चुपचाप पोंछ लेता. कमांडो है तो क्या हुआ, एक पति भी तो है, जो अपनी पत्नी से जान से ज़्यादा प्यार करता है.
दुख के दिन जेठ की दोपहरी जैसे होते हैं. लंबे, ऊबाऊ, त्रासदायक, जो ख़त्म होने में नहीं आते हैं और सुख के दिन थकान के बाद की रात की तरह होते हैं, जो कब गहरी नींद में गुज़र जाते हैं पता ही नहीं चलता. परम की छुट्टियां ख़त्म होने को आ गई थीं और उसका वापस ड्यूटी पर जाने का समय आ गया था. गैस पर चाय का पानी उबल रहा था और वैसा ही उबाल तनु के मन में भावनाओं का उठ रहा था. दिल कुछ बैठा-बैठा-सा था. सीमा पर नित नए बवाल खड़े हो रहे थे. फौजियों की छुट्टियां रद्द हो गई थीं.
परम भी तो पूरे सात-आठ महीने बाद इस बार घर आ पाया था, वो भी बस चंद दिनों के लिए. पिछले आठ महीनों से वह लगातार सर्च ऑपरेशन पर ही आतंकवादियों की धर-पकड़ में जंगल-जंगल और ख़तरनाक इलाकों में घूमता रहा है. महीनों से वह एक दिन भी चैन से नहीं बैठ पाया है. आगे अचानक पता नहीं क्या इमर्जेंसी आ जाए, इसलिए उसे कुछ दिनों की छुट्टी दी गई. फिर पता नहीं कब…
परम का मन भी अंदर से अजीब-सा हो रहा था. तनु को छोड़कर ड्यूटी पर वापस जाना, सोचकर ही उसकी जान पर बन आ रही थी, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है. हर हाल में निभानी पड़ेगी और फिर वो ठहरा पैरा कमांडो. उसके कंधों पर तो अतिरिक्त ज़िम्मेदारी है.
वह तनु को ख़ुश रखने का प्रयत्न कर रहा था, ताकि उसके साथ मिले ये चंद दिन प्यार और सुकून से कट जाएं, लेकिन वह देख रहा था कि तनु की आंखें बार-बार भर आतीं. वह मुंह दूसरी ओर करके चुपचाप आंसू पोंछ लेती. परम के सीने में कसक-सी उठी. पंद्रह दिन की छुट्टी में से दस दिन बीत चुके थे. ड्यूटी पर उसके लिए रात-दिन बराबर थे और यहां आकर भी उसकी आंखों में नींद नहीं थी. वह रातभर जागकर तनु के सिर पर हाथ फेरता उसे देखता रहता. पता नहीं यहां से वापस जाने के बाद कितने महीनों तक उसे दोबारा देख नहीं पाएगा. देख भी पाएगा या नहीं, ये भी नहीं पता. और उसके दिल में बुरी तरह से एक हौल उठता. आंखें भर आतीं. कब किस जंगल में सर्च ऑपरेशन के समय वह आतंकवादियों की गोली का निशाना बनकर अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में ही बाकी रह जाए… आंखों से बहते आंसू वह चुपचाप पोंछ लेता. कमांडो है तो क्या हुआ, एक पति भी तो है, जो अपनी पत्नी से जान से ज़्यादा प्यार करता है.
थोड़े दिनों की छुट्टी में भी उसे घर की चिंता सताती है. सब ठीक है कि नहीं. घर में ज़रूरत का सामान है या नहीं. उसके चले जाने के बाद तनु को परेशान न होना पड़े. हर संभव वह तनु को हंसाने की कोशिश करता रहता. माहौल सामान्य बनाए रखने का प्रयत्न करता. तनु का भी चेहरा सामान्य रहता. वह अपने पति के साथ दिनभर हंसी-ख़ुशी रहती, लेकिन दिल अंदर से बुरी तरह धड़कता रहता. घड़ी के कांटे को आगे बढ़ते देख तनु का मन करता समय को यहीं रोक ले. हर क्षण उसके मन की आकुलता बढ़ती जाती. मिलन के क्षण हर पल के साथ कम होते जा रहे हैं. जब भी परम के फोन की घंटी बजती, उसके चेहरे पर तनाव घिर आता और तनु का दिल आशंका से धड़क उठता. कहीं किसी इमर्जेंसी के कारण वापस तो नहीं बुला रहे. पति से मिलन के समय में ख़ुशी के साथ ही एक फौजी की पत्नी के मन में आशंका की तलवार भी सिर पर सवार रहती है.
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तनु ने घर पर अख़बार मंगवाना भी बंद कर दिया था. टीवी पर न्यूज़ भी वह नहीं देखती. क्या फ़ायदा बुरी ख़बरें देखकर मन और दुखी होता रहता. जब भी समय मिलता, परम फोन पर अपनी आवाज़ सुनाकर उसे आश्वस्त कर देता. एक बार बात हो जाने पर वह दोबारा बात होने के इंतज़ार में अपना समय काटती रहती. कभी परम बस इतना भर बोल पाता, “तनु मैं ठीक हूं, तू मेरी चिंता मत करना. काम थोड़ा ज़्यादा है कल बात करता हूं.”
और एक फौजी की पत्नी समझ जाती कि कौन-सा काम अर्थात् आज भी कहीं घुसपैठ की आशंका, आज भी दिनभर और रातभर जंगलों और पुराने घरों में छिपे आतंकवादियों के साथ मुठभेड़, गोलीबारी, बमबारी और… तनु की सांस सूली पर टंग जाती. कान एक व्यग्र प्रतीक्षा में लग जाते कि कब फोन आए और परम बस इतना बोलेंगे, “तनु मैं ठीक हूं.” गले से निवाला तो क्या पानी का घूंट भी नीचे नहीं उतर पाता.
एक बार दो दिन तक परम का फोन नहीं आया था. तीसरे दिन रात को ढाई बजे परम को मौक़ा मिला उसे फोन करने का. उसके ठीक होने की ख़बर के साथ ही पता चला दो दिन से जंगलों में घुसपैठियों का पीछा करते हुए उसने खाना भी नहीं खाया. रात के ढाई बजे दुश्मनों को मारने के बाद जंगल की लकड़ियां इकट्ठा करके उन्हें जलाकर एक बर्तन में वे लोग साथ लाए नूडल्स उबालकर खा रहे हैं- परम और उसके चार साथी कमांडो. तनु का जी भर आया. गले में कुछ अटक गया. तीसरे दिन शाम को जब पूरा जंगल अच्छे से छानकर सभी दुश्मनों को ख़त्म करके परम ने यूनिट में जाकर खाना खाया, तब तनु के गले से रोटी नीचे उतरी.
डॉ. विनिता राहुरीकर
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