कहानी- गुनहगार 2 (Story Series- Gunahgaar 2)

अगले दिन प्लान के मुताबिक दो बजे से ही मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए सिरदर्द का अभिनय करने लगी और मेघना के सामने बार-बार बोल रही थी, “मुझे डॉक्टर के पास जाना है. अकेली जाऊंगी तो गिर जाऊंगी. चक्कर भी आ रहे हैं. हाय, मैं मरी…”

थोड़ी देर मेरा रोना-पीटना देखकर मेघना चिढ़ उठी. पैर पटकते हुए मुझसे कहने लगी, “चलो, मैं चलती हूं.”

मैं मन-ही-मन ख़ुश होते हुए कार में आकर बैठ गई थी. यह मेरी पहली जीत थी.

उस पल की अभिव्यक्ति कर पाना कठिन ही नहीं नामुमकिन है. अचानक यूं लगा जैसे वह दीवार बुरी तरह हिल गई है, जिसके सहारे मैं खड़ी थी. थोड़ी देर के बाद मैं संयत हुई तो देखा आकाश निरुपमा का नंबर डायल कर रहे थे.

“आकाश, निरुपमा तो…”

“हां, शायद अब हमारी बच्ची को उसी की ज़रूरत है धरा. मेघना अपना मानसिक संतुलन खो रही है. हमें उसका सही इलाज करवाना पड़ेगा.” भरे गले से आकाश ने कहा, तो मेरी आंखें भर आईं. बात यहां तक पहुंच जाएगी, मेघना की उन छोटी-छोटी हरकतों की यह परिणति होगी, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. कार झटके से रुकी, तो मेरी तंद्रा भंग हुई. सामने बालकनी में खड़ी मेघना ने मुझे देखकर बुरा-सा मुंह बनाया और अंदर चली गई. आश्‍चर्य ये कि कल की घटना का ज़िक्र हममें से किसी ने भी उसके सामने नहीं किया था और वह भी हमारे सामने सामान्य बने रहने का प्रयत्न कर रही थी.

कार से उतरकर मैं अपने कमरे में आकर लेट गई. सिर बहुत भारी हो रहा था. आंखें बंद की तो अतीत दस्तक देने लगा. आज से पंद्रह साल पहले कितनी ख़ुशहाल ज़िंदगी थी हमारी. आकाश से विवाह हुआ, तो लगा जैसे एक-दूसरे के लिए बने थे हम. सालभर बाद ही मेघना के गोद में आ जाने से जैसे झूम उठी थी ज़िंदगी. हम दोनों मेघना को पाकर बहुत ख़ुश थे, लेकिन एक कमी थी, जो कभी-कभी खटकती थी. मेरी दूध-सी उजली रंगत को देख कभी-कभी आकाश उदास होकर कह उठते, “काश, मेघना ने तुम्हारा रंग-रूप पाया होता.”

दरअसल मेघना जन्म से ही सांवले रंग की थी और नैन-नक्श भी काफ़ी दबे हुए साधारण से थे. पर ज्यों-ज्यों वह बड़ी होती जा रही थी, उसका रंग अपेक्षाकृत अधिक काला होता जा रहा था और बाहर निकलने पर वह हम दोनों में से किसी की बेटी नहीं लगती थी. अक्सर रिश्तेदारों और पड़ोसियों से यह बात सुनने को मिलती, “धरा, कहां तुम्हारा दूधिया रंग और आकाश की स्मार्टनेस, फिर बिटिया में ये किसके गुण आ गए?”

उस दिन पड़ोस में मिसेज शर्मा के यहां लंच पर हम तीनों आमंत्रित थे, वहां भी वही रंग-रूप की चर्चा! मैंने महसूस किया था कि नन्हीं मेघना अब समझने लगी है कि उसकी मम्मी से उसकी तुलना होती है और इस पर उसके मम्मी-पापा उदास हो जाते हैं. एक-दो बार उसने दबे स्वर में कहा भी, “मैं सुंदर नहीं हूं ना मम्मी.” तो मैंने ज़ोर से खींचकर गले लगा लिया था उसे और कहती चली गई, “तुम बहुत सुंदर हो मेरी बच्ची… बहुत सुंदर…”

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और बस, उस दिन से मैं दिन-रात घुलने लगी थी. मेरी बेटी उम्रभर इस दंश को झेलते हुए कैसे जी पाएगी. उसके समूचे आत्मविश्‍वास को ये हीनभावना निगल नहीं जाएगी कि उसका रंग-रूप साधारण है. मैं और आकाश उसे अब इतना प्यार देने लगे कि वह बाहर-भीतर मिलनेवाली उपेक्षाओं को हमारे प्यार के सहारे सहन करना सीख ले, परंतु धीरे-धीरे इसका उल्टा होने लगा. बाहर वह सामान्य रहती थी और घर में एकदम विद्रोह पर उतर आती. कारण, मेरी समझ से बाहर था. हम लोग उसकी ग़लती पर भी उसे नहीं डांटते थे. फिर भी..?

“अरे धरा, अंधेरे में क्यों लेटी हो?” आकाश ऑफ़िस से आ चुके थे.

“क्या कहा निरुपमा ने?” आकाश ने तुरंत पूछा.

“कल मेघना के साथ मुझे बुलाया है.” संक्षिप्त उत्तर देकर मैंने आंखें पुनः बंद कर लीं.

मेरे माथे पर स्नेह से हाथ रखते हुए आकाश बोल पड़े, “धरा, हमने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, इसलिए हमारे साथ भी बुरा नहीं हो सकता. मुझे ईश्‍वर पर पूरा भरोसा है. विश्‍वास रखो, हमारी मेघना जल्द अच्छी हो जाएगी.”

अगले दिन प्लान के मुताबिक दो बजे से ही मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए सिरदर्द का अभिनय करने लगी और मेघना के सामने बार-बार बोल रही थी, “मुझे डॉक्टर के पास जाना है. अकेली जाऊंगी तो गिर जाऊंगी. चक्कर भी आ रहे हैं. हाय, मैं मरी…”

थोड़ी देर मेरा रोना-पीटना देखकर मेघना चिढ़ उठी. पैर पटकते हुए मुझसे कहने लगी, “चलो, मैं चलती हूं.”

मैं मन-ही-मन ख़ुश होते हुए कार में आकर बैठ गई थी. यह मेरी पहली जीत थी.

थोड़ी देर बाद हम दोनों डॉ. निरुपमा के केबिन में थे. मेरा मुआयना करके नीरू अचानक मेघना की ओर मुखातिब हो गई,

“हाउ स्वीट, ये तुम्हारी बेटी है? काश, दो बेटों के बजाए ईश्‍वर ने मुझे भी ऐसी एक बेटी दी होती.” अविवाहित नीरू की इस बात पर मैंने मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए कहा, “तो क्या हुआ, ये भी तुम्हारी बेटी जैसी है, क्यों मेघना?” मगर मेघना का चेहरा तना हुआ ही रहा. एकाध दवाइयां लिख कर मुझे पकड़ाते हुए नीरू ने फिर से कहा, “देखो ना, आज मेरा बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम है, लेकिन अकेली बोर हो जाऊंगी… मेघना बेटे, तुम चलो ना मेरे साथ, लेकिन स़िर्फ तुम, तुम्हारी मम्मी को साथ नहीं ले जाएंगे. मुझे बड़ों से ज़्यादा बच्चों का साथ फ्रेश कर देता है.”

– वर्षा सोनी

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Usha Gupta

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