कहानी- लाखों में…2 (Story Series- Lakhon Mein…2)

“पापा, आप समझ नहीं रहे हैं. गिटार के प्रति उसकी दीवानगी इस कदर है कि मैं सामने बैठी हूं, नहीं हूं, उसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है.”

“सही कह रही है नैना, मैंने भी देखा है. वह घंटों बैठा तार टुनटुनाता रहता है.” अचानक रागिनी नैना के पाले में खड़ी हो गई, तो हरीश और नैना दोनों ही चौंके.

“क्या करूं? बोलो तो कुछ दिनों के लिए उसे अकेला छोड़कर अपने कपड़े लेकर यहां आ जाऊं.”

नैना के मुंह से निकला, तो रागिनी कठोर वाणी में बोली, “कुछ दिन के लिए क्यों? अब तू यहीं रहेगी. पहले ही कहा था इस नील के चक्कर में मत पड़. अरे! शादी ही करनी थी, तो मेरी सहेली के देवर के बेटे से कर लेती. कम से कम यूरोप तो घुमाता.”

उसने गिटार को अपने सीने से यूं लगाया मानो उसमें उसकी जान बसती हो. यह देखकर नैना क्रोध से जल उठी. आंखों में आंसू डबडबा आए.

नील की जिस कला पर मोहित होकर उसने कई रिश्ते ठुकराकर उसका हाथ थामा था, आज वही कला उन दोनों के बीच दीवार बन गई थी. नैना के आंसुओं को देखने की नील को ़फुर्सत कहां थी. वह तो अपने गिटार के तारों को छेड़कर देख रहा था कि कहीं वो ढीले तो नहीं हो गए. गिटार के प्रति नैना का शत्रुभाव देखकर वह हैरानी और तनावग्रस्त भाव लिए बैठक में चला आया और कानों में ईयरप्लग लगाकर आंखें मूंदे गिटार की धुन में फिर खो गया.

‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं.’ वह अपने कमरे से चिल्लाई पर कोई जवाब नहीं मिला.  नील के लिए उसका होना, न होना एक बराबर था, यह जान उसका सर्वांग जल उठा. एक पर्ची पर ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं’ लिखकर डायनिंग एरिया में छोड़कर वह उसके सामने से घर से निकली. बंद आंखों और कानों में लगे ईयरप्लग के कारण वह जान ही नहीं पाया कि नैना घर से बाहर निकल गई है.

मायके में उसके सहसा यूं तनावग्रस्त  दाख़िल होते देखकर हरीश-रागिनी समझ गए कि नील से कोई अनबन हुई है.  ऐसा पहली बार नहीं था, पहले भी तीन-चार बार वह रूठकर मायके आ चुकी है. अमूमन  मनमुटाव की वजह गिटार ही होता. ऐसे में  रागिनी-हरीश नैना को समझाते-बुझाते कि नील के गिटार पर फ़िदा होकर उसने शादी का निर्णय लिया. वह एक कलाकार है. ऐसे में उसकी कला और रियाज़ का मान-ध्यान रखना उसका कर्त्तव्य है. नैना का कहना था कि कलाकार के अलावा अब वो उसका पति भी है. उसके गिटार ने सौतन बनकर सारे सुख-चैन हर लिए हैं.

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आज नाराज़ नैना से जब हरीश ने पूछा, “तुम घर छोड़कर आई हो, ये बात नील को पता है क्या?” यह सुनकर कंधे उचकाती हुई वह बोली, “क्या जानूं… उस व़क्त तो कान में ईयरप्लग लगाए, आंखें मूंदे पता नहीं कौन-सा सुर साध रहा था.”

“फोन किया उसने…?”

“पता नहीं, मैंने स्विच ऑफ कर दिया.” उसके मुंह से यह सुनकर हरीश नाराज़गी भरे स्वर में बोले, “बचपना छोड़ो, सबसे पहले मोबाइल ऑन करो. गिटार उसकी ज़िंदगी है, उसकी रोज़ी-रोटी है. तुम क्या चाहती हो, शादी के बाद वो उसे छोड़ दे.”

यह सुनकर नैना चिढ़कर बोली, “पापा, आप समझ नहीं रहे हैं. गिटार के प्रति उसकी दीवानगी इस कदर है कि मैं सामने बैठी हूं, नहीं हूं, उसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है.”

“सही कह रही है नैना, मैंने भी देखा है. वह घंटों बैठा तार टुनटुनाता रहता है.” अचानक रागिनी नैना के पाले में खड़ी हो गई, तो हरीश और नैना दोनों ही चौंके.

“क्या करूं? बोलो तो कुछ दिनों के लिए उसे अकेला छोड़कर अपने कपड़े लेकर यहां आ जाऊं.”

नैना के मुंह से निकला, तो रागिनी कठोर वाणी में बोली, “कुछ दिन के लिए क्यों? अब तू यहीं रहेगी. पहले ही कहा था इस नील के चक्कर में मत पड़. अरे! शादी ही करनी थी, तो मेरी सहेली के देवर के बेटे से कर लेती. कम से कम यूरोप तो घुमाता.”

अपनी शादी के एक साल बाद आज अचानक सहेली के देवर के बेटे की याद मम्मी को आना विस्मयजनक था यानी आज भी मम्मी को नैना का सहेली के देवर के बेटे से शादी न करने की बात सालती है.

इस बात से चिढ़ी नैना बोली, “मम्मी प्लीज़, ओवर रिएक्ट मत करो.”

“अरे! अभी भी ओवर रिएक्ट न करूं? तुम परेशान हो नीलाक्ष से.”

“मम्मी प्लीज़, मैं नीलाक्ष से नहीं, उसके गिटार से परेशान हूं.”

“हां-हां, एक ही बात है. मुआ गिटार हो या नीलाक्ष, परेशान तो है न तू.”

“मम्मी, गिटार मुआ नहीं है, वो नीलाक्ष का काम है, उसकी कला है.” भुनभुनाती हुई नैना को हैरानी से देखते हुए रागिनी बोली, “बड़ी अजीब है रे तू, न इस करवट चैन है, न उस करवट. ख़ुद शिकायत करती है और ख़ुद ही तरफ़दारी. हम क्या बेवकूफ़ लगते हैं तुझे. एक डिसीज़न लो. ये क्या कि ज़रा-सी बात हुई और दौड़ी आई मायके.”

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“आप इस तरह की फ़ालतू बात करोगी, तो मैं यहां नहीं आऊंगी. मायका है, अपना हक़ समझती हूं, इसलिए चली आती हूं. मुझे लगता था आप लोग मुझे समझोगे.” “अरे! तो समझ ही रही हूं, तभी तो उस कमबख़्त को गालियां दे रही हूं.”

“अरे! थोड़ा तो लिहाज़ करो, दामाद हैं नीलाक्ष तुम्हारे. मैं घर जाकर अपने कपड़े ले तो आऊं, पर उससे पहले घर का कुछ इंतज़ाम भी करना होगा. वो तो इतना लापरवाह है कि उसे ख़ुद का होश नहीं रहता, घर क्या खाक संभालेगा.”

“सब संभालेगा, क्यों नहीं संभालेगा? अब उसकी चिंता छोड़कर आगे की सोच. हम  भी चलते हैं साथ.” रागिनी के कहने पर नैना एकदम बिदककर बोली, “नहीं, आप बिल्कुल नहीं चलेंगी और नील से तो कुछ भी नहीं कहेंगी.”

“ठीक है, नहीं कहूंगी, पर साथ चलूंगी. मैं नीचे पार्क में इंतज़ार करूंगी. तुम अपने कपड़े ले आना.” रागिनी की ज़िदभरी योजना और व्यवहार से हरीश नाख़ुश थे. बेटी को समझा-बुझाकर घर भेजने की जगह आग में घी डालने की चेष्टा उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई. लेकिन रागिनी पर तो आज जैसे कोई भूत सवार था. नील से उसे अलग करने का भूत..

      मीनू त्रिपाठी

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