… मिलने का कोई उपाय नज़र नहीं आया, तो पटना छोड़ते समय हेमंत ने वादा किया था कि जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती वह इंतज़ार करे. पढ़ाई पूरी कर वह उसका हाथ मांगने ज़रूर आएगा. लेकिन माधवी की मां को एक विजातीय लड़के से उसकी दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उन दोनों के फोन पर भी बातें करने से पूरी तरह रोक लगा दिया था. जिससे दोनों के बीच बातों का सिलसिला ही टूट गया. पर उसे पूरा विश्वास था कि हेमंत एक दिन ज़रूर उसे वापस लेने आएगा.
पूरे चार वर्ष गुज़र जाने के बाद भी हेमंत एक बार भी वापस नहीं आया था. हां, इस दौरान अधीर का उसके घर आना-जाना ज़रूर बढ़ गया था. वह भी माधवी के पापा देवदत्त बाबू की तरह मार्बल का व्यापार करता था. धीरे-धीरे देवदत्त बाबू अधीर को बहुत पसंद करने लगे थे.
वे अक्सर कहते, ‘‘आजकल कहां ऐसा देवता समान आदमी मिलता है. जितना यह सुर्दशन है, उतना ही सुशील भी. बड़ों का मान-सम्मान करना और दूसरों की मदद करना, तो कोई इससे सीखे. ऐसे लड़कों से ही तो घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है. नज़दीकी रिश्तों में भी हमेशा दृढ़ता और निर्मलता बनी रहती है.’’
अपनी बेटी के लिए ऐसे ही सर्वगुण संपन्न लड़के की उन्हें तलाश थी. जब एक दिन अधीर के घरवालों ने ख़ुद ही आकर माधवी का हाथ मांगा, तो उसके सीधे-सादे पापा ने इसे अपना सौभाग्य समझा. उन्हें शादी का वचन दे दिया. माधवी चाहकर भी अधीर से शादी करने से मना नहीं कर पाई, क्योंकि पल-पल हेमंत का इंतज़ार करती माधवी को तब तक न हेमंत का कोई संदेश मिला था, न वह ख़ुद आया था.
उन दिनो अधीर का मूल स्वभाव उसकी लच्छेदार बातों के बीच जाने कहां छिप गया था. तब उन्हें लगता था कि वह दुनिया की सबसे भाग्यशाली पिता हैं, जिसे इतना अच्छा सूरत और सीरतवाला दामाद मिला है. लेकिन जल्द ही अधीर पर पड़ा आवरण उतरने लगा और उसका असली रूप सबके सामने आने लगा. वह क्रोधी और दंभी तो था ही देवदत्त बाबू के बिज़नेस में घुसा, तो उनका विश्वासपात्र बन लाखों का चूना लगा दिया. इस बात से देवदत्त बाबू के साथ-साथ माधवी को भी गहरा आघात लगा.
फिर भी बेटी के सुखों का ख़्याल कर उसके पापा चुप ही रहे. पापा के समझाने पर माधवी ने भी अपने मन को समेटकर उसे माफ़ कर दिया. अपराधी को क्षमा कर दो, तो वह सामनेवाले को कमज़ोर और कायर समझने लगता है. अब वह और भी ढीठ हो गया. खुलेआम विभिन्न लड़कियों से दोस्ती रखने लगा…
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