कहानी- मन के बंधन… 6 (Story Series- Mann Ke Bandhan… 6)

‘‘तुम मेरी बेस्ट फ्रेड हो, तुम्ही बताओ मैं क्या कंरू? मैंने तो सिर्फ़ तुम्ही से प्यार किया. मेरे सारे सपने तुम्हीं से शुरू हो तुम्हीं पर समाप्त होते थे. पर अचानक तुम मेरी ज़िंदगी से चली गई.

 

 

… जब वह वाॅशरूम से निकली, गुलाबी टाॅप और नेवी ब्लू रंग के जींस में जैसे उसका रूप, ओस में भीगे ताज़े गुलाब-सा निखर आया था. हेमंत उसे निबद्ध दृष्टि से जड़वत देखता ही रह गया.
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’
‘‘देख रहा हूं कि कितना नायाब हीरा मेरी हाथों से फिसल गया.’’
माधवी ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘डिनर तक रूक सकते तो कुछ पकाती हूं.’’
‘‘पहले काॅफी तो पिलाओ.’’
फिर तो काॅफी पीते-पीते ढेर सारी बातें शुरू हो गईं.
माधवी ने पूछा, ‘‘तो क्या सोचा है तुमने? क्या सारी उम्र ब्रह्मचारी रहने का इरादा है?’’
वह एक लंबी सांस लेते हुए बोला, ‘‘तुम मेरी बेस्ट फ्रेड हो, तुम्ही बताओ मैं क्या कंरू? मैंने तो सिर्फ़ तुम्ही से प्यार किया. मेरे सारे सपने तुम्हीं से शुरू हो तुम्हीं पर समाप्त होते थे. पर अचानक तुम मेरी ज़िंदगी से चली गई. मेरे सारे सपने टूट कर बिखर गए. चाह कर भी तुम्हारी जगह किसी को नहीं दे सका. तुम क्या गई, मैं आधा-अधूरा हो गया. अब इस अधूरे जीवन को तुम ही पूरा कर सकती हो.’’
‘‘तलाक़ के बाद से तो मेरी ख़ुद की ज़िंदगी में ही एक नया मोड़ आ गया है, जहां से कोई भी रास्ता शादी की तरफ़ नहीं जाता. इसलिए हम दोनो पहले की तरह अच्छे दोस्त भी तो बने रह सकते हैं.’’

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‘‘हम कब तक अपने दुखद अतीत को लेकर चलते रहेंगे. अकेले रहते-रहते इतना तो मैं समझ ही गया हूं कि आर्थिक ज़रूरतों को तो हम पैसे कमा कर पूरे कर लेते हैं, पर हमारी कुछ भावनात्मक ज़रूरतें भी होती हैं, जिसके लिए एक अदद साथी की ज़रूरत होती है, जिससे अपने सुख-दुख बांट सके. इसलिए अब मैं तुम्हे भागने नहीं दूंगा. मैंने पहले से ही सब सोच रखा है. हम जल्द से जल्द कोर्ट में शादी कर लेंगे. अपना भाग्य अब हम ख़ुद साध लेंगे.’’
हेमंत के रोम-रोम से जैसे मादकता छलक रही थी. वह उद्विग्नता से उठकर माधवी के चेहरे को अपने तृप्त चुंबनों से ढक दिया, जो माधवी को जाने कैसी अपूर्व शांति दे रहा था.
अक्सर जीवन के सबसे ख़ूबसूरत पल यूं ही बिना किसी आहट के जीवन में प्रवेश कर जाता है.


रीता कुमारी

 

 

 

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