कहानी- मनवा लागे 3 (Story Series- Manwa Laage 3)

‘मुझे प्लॉट ढूंढ़ने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता. अपने दैनिक घटनाक्रम में, आसपास के लोगों में ही मुझे लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो जाती है. दस तरह के लोगों से जो दस बातें सुनता हूं, वे एक काल्पनिक पात्र के मुंह से उगलवा लेता हूं, जिससे हर पाठक को लगता है कि वह अपनी ही कहानी पढ़ रहा है. आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि कई महिलाएं मुझसे सवाल कर चुकी हैं कि उनके और उनके प्रेमी के बीच हुई वार्ता का घटनाक्रम मुझे कैसे पता चला?’
विभा के पत्र पकड़े हाथ कांप उठे थे, जिसे टिया ने भी महसूस किया.

यदि आज शिव ने पूछा, तो वह अपनी कैफ़ियत में क्या कहेगी? अपनी सोच पर विभा को आप ही हंसी आ गई? वह एक प्रशंसिका के नाते एक लेखक से मिलने जा रही है, न कि एक प्रेमिका अपने बिछुड़े प्रेमी से मिलने.
“आंटी, मैं तो सवालों की सूची तैयार करके लाई हूं. आपको भी कुछ पूछना हो, तो पूछ लीजिएगा.” मिष्टी ने याद दिलाया. वे गंतव्य तक पहुंच चुके थे.
“यह उनके दोस्त का घर है, जहां वे ठहरे हुए हैं.” अंदर से एक सज्जन जल्दी में निकल रहे थे.
“एक्सक्यूज़ मी, एस. दीपकजी से मिलना था.”
“मालूम है. आजकल हर कोई उन्हीं से मिलने आ रहा है. पर वे चले गए. कोई ज़रूरी काम आ गया था.”
“चले गए? पर मैंने कॉलेज मैग्ज़ीन के लिए उनसे अपॉइंटमेंट ले रखा था.” मिष्टी ने कहा.
“अच्छा, आप अंदर बात कर लीजिए. शायद कोई मैसेज छोड़ गए हों.”
तब तक अंदर से एक भद्र महिला बाहर आ चुकी थी. “यह लिफ़ाफ़ा आप लोगों को देने को कहा था.”
निराश मन से दोनों लौट पड़ीं. टैक्सी में मिष्टी ने लिफ़ाफ़ा खोला.

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‘किसी अत्यंत आवश्यक कार्यवश मुझे अचानक लौटना पड़ रहा है, पर चिंता मत करो. अपने ओैर अपने लेखन के संबंध में समस्त आवश्यक जानकारी मैं छोड़े जा रहा हूं, जिससे तुम्हें अपना आलेख पूरा करने में पूरी मदद मिलेगी.’
विभा संलग्न पत्र में झांकने लगी, तो मिष्टी ने लिफ़ा़फे सहित पत्र उन्हें ही पकड़ा दिया.
“आंटी, आप पढ़कर कल टिया के हाथ कॉलेज भिजवा देना. फिर मैं आलेख तैयार कर लूंगी.”
मां को जल्दी घर आया देख टिया चौंक उठी. सारी बात जानकर वह भी मां के संग पत्र पढ़ने में लग गई.
‘आपके समस्त संभावित प्रश्‍नों का मैं ईमानदारी से जवाब देने का प्रयास कर रहा हूं. सामान्यत: मेरे लेखक बनने के सफ़र के बारे में पूछा जाता है, तो मैं बता दूं कि मैं एक अच्छा लेखक कम, एक अच्छा पाठक ज़्यादा हूं. बचपन से आज तक एक ही शौक़ रहा है- पढ़ना और बस पढ़ना. तो बस पढ़ते-पढ़ते ही लिखने भी लगा. मेरा मानना है जिस तरह कुशल वक्ता बनने के लिए धैर्यवान श्रोता होना ज़रूरी है. उसी तरह कुशल लेखक बनने के लिए संवेदनशील पाठक होना ज़रूरी है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि मुझे कहानी के लिए प्लॉट कहां से मिलते हैं, प्रेरणा कहां से मिलती है? मुझे प्लॉट ढूंढ़ने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता. अपने दैनिक घटनाक्रम में, आसपास के लोगों में ही मुझे लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो जाती है. दस तरह के लोगों से जो दस बातें सुनता हूं, वे एक काल्पनिक पात्र के मुंह से उगलवा लेता हूं, जिससे हर पाठक को लगता है कि वह अपनी ही कहानी पढ़ रहा है. आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि कई महिलाएं मुझसे सवाल कर चुकी हैं कि उनके और उनके प्रेमी के बीच हुई वार्ता का घटनाक्रम मुझे कैसे पता चला?’
विभा के पत्र पकड़े हाथ कांप उठे थे, जिसे टिया ने भी महसूस किया. विभा ने ख़ुद को संयत किया और आगे पढ़ने लगी.

      संगीता माथुर

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