कहानी- परिधान 1 (Story Series- Paridhan 1)

“चली जाऊंगी मम्मीजी, आख़िर इतनी जल्दी भी क्या है… सुबह से काम कर-करके थोड़ा थक गई हूं और बोर भी लग रहा है. इस तरह से गप्पा ब्रेक लेने से हमारा रूटीन बोरिंग काम करते हुए बना मेंटल ब्लॉक रिलीज़ हो जाता है. हम रिफ्रेश हो जाते हैं. मैं तो कहती हूं आप भी दिन में ऐसे 2-3 ब्रेक ले ही लिया करो. आपका भी मूड फ्रेश रहेगा.” कहकर मंजू हंसने लगी. उसकी हंसी से केतकीजी की चिढ़ और बढ़ गई.

मंजू ने रसोई का स्लैब साफ़ कर नल बंद किया और गहरी सांस लेते हुए सोफे पर निढाल होकर बैठ गई. उसकी गहरी सांस बता रही थी कि उसकी पहली पारी के घरेलू काम ख़त्म हो चुके हैं और एक कप चाय पीते हुए तसल्ली से बैठने का समय आ गया है. उसने चाय बनाई और टीवी के आगे पसर गई. चैनल उलट-पुलट कर देखे. कहीं कुछ ढंग का प्रोग्राम नहीं आ रहा था, तो फोन उठाया और लगी सहेली से बतियाने.

यह मंजू का रोज़ का रूटीन था. सुबह 6 बजे से उठकर 11 बजे तक घर के सब काम निपटाती, लंच की तैयारी कर लेती और फिर आधा-एक घंटा टीवी देखते हुए सुस्ताती, किसी न किसी सहेली को पकड़ फोन पर गप्पे मारती और फिर नहाने जाती, नहाकर दूसरी पारी के काम निपटाने को मुस्तैद हो जाती.

मंजू बेफ़िक्र बतिया रही थी व उसकी सासू मां केतकीजी उसे दूर से ही घूरकर मुंह बना रही थीं. जब उनसे रहा ना गया, तो बोल ही उठीं, “बेटा बातें बाद में कर लेना, ज़रा उठकर नहा-धो लो, कुछ घड़ी पूजा-पाठ…” इस पर मंजू ने उन्हें ऐसे घूरा जैसे किसी अपरिचित को देखकर समझने की कोशिश कर रही हो कि आख़िर यह है कौन साहिबा, जो मुझसे ऐसे बात कर रही हैं.

“चली जाऊंगी मम्मीजी, आख़िर इतनी जल्दी भी क्या है… सुबह से काम कर-करके थोड़ा थक गई हूं और बोर भी लग रहा है. इस तरह से गप्पा ब्रेक लेने से हमारा रूटीन बोरिंग काम करते हुए बना मेंटल ब्लॉक रिलीज़ हो जाता है. हम रिफ्रेश हो जाते हैं. मैं तो कहती हूं आप भी दिन में ऐसे 2-3 ब्रेक ले ही लिया करो. आपका भी मूड फ्रेश रहेगा.” कहकर मंजू हंसने लगी. उसकी हंसी से केतकीजी की चिढ़ और बढ़ गई.

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“बस-बस, मेरे पास ऐसे ब्रेक लेने का फालतू समय नहीं है और ना ही मुझे घर के काम बोरिंग लगते हैं. तुम ही लो अपना गप्पा ब्रेक.” चिढ़े स्वर से कहकर केतकीजी बुरा-सा मुंह बनाकर चली गईं.

कुछ दिनों से ऐसे ही चल रहा था. केतकीजी बात-बात पर मंजू को टोकने लगी थीं. उसके लिए केतकीजी के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. मंजू भी हैरान थी कि अचानक मम्मीजी को हो क्या गया है. पहले तो उन्होंने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया.

8 साल हो गए मंजू को इस घर की बहू बनकर आए. सबसे ज़्यादा उसे केतकीजी का ही सपोर्ट मिला. अनुज से लव मैरिज हुई थी उसकी. मंजू के घरवाले इस शादी के विरुद्ध थे, पर अनुज के घरवालों ने उसे बड़े प्यार से अपनाया. मंजू उसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में आर्किटेक्ट थी, जहां अनुज सिविल इंजीनियर था. वहीं दोनों की मुलाक़ात हुई, जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई. आज दोनों अपने दो प्यारे बच्चों के साथ ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी गुज़ार रहे थे.

मंजू एक करियर ओरिएंटेड लड़की थी. शादी से पहले उसने कभी रसोईघर का रुख भी नहीं किया था. घर-गृहस्थी को संभालने की बात तो दूर, उसे चाय तक बनाना नहीं आता था. लेकिन केतकीजी की ममताभरी छत्रछाया में व अनुज के प्यार भरे सहयोग से उसने धीरे-धीरे सब सीख लिया था. बच्चों के होने के बाद उसने जॉब भी छोड़ दी.

घर में मेड थी, काफ़ी कुछ काम वही कर जाती थी. इसके अलावा बच्चों को पढ़ाना, उन्हें एक्टिविटी क्लासेस ले जाना, बाज़ार से ज़रूरी सामान लाना- ये सब काम मंजू संभाल रही थी. केतकीजी भी कुछ न कुछ काम करती रहतीं, पर उनकी भूमिका हेल्पर की ही रहती. इस तरह से सब कुछ बढ़िया चल रहा था. किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं थी, पर कुछ दिनों से केतकीजी का व्यवहार बदल गया था. उन्हें मंजू में मीनमेख नज़र आने लगे थे.

कुछ दिनों से नहीं, बल्कि ठीक उसी दिन से जब वह अपनी बड़ी बहन कामिनी के घर से अपने भांजे की शादी अटेंड करके वापस लौटी थीं. कामिनीजी की बड़ी बहू लता से वे बेहद प्रभावित हुई थीं. हर समय मम्मीजी-मम्मीजी कहकर सास की सेवा में खड़ी रहनेवाली लता. सुबह जल्दी उठकर, नहाकर पूजा-पाठ करनेवाली, पाककला में निपुण लता, और तो और, सोने से पहले सास के पैरों में तेल लगानेवाली लता. केतकीजी आश्‍चर्यचकित रह गईं कि आज के दौर में भी ऐसी बहुएं होती हैं.

पहली बार केतकीजी को मंजू में असंख्य कमियां नज़र आने लगीं. उन्हें एहसास होने लगा कि बहू के चुनाव में उनसे ग़लती हो गई है, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे की बात झट से मान ली, वरना खोजने पर शायद लता जैसी बहू मिल ही जाती. कैसी गुणी है, सास के कपड़े अपने हाथों से प्रेस करना, पैर दबाना, तेल लगाना… केतकीजी का मन अपनी ही बहन के लिए ईर्ष्या से भर उठता.

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लता से मिलते ही केतकीजी को अपने जीवन में बड़ी भारी कमी का एहसास होने लगा और वही एहसास जब-तब मंजू के सामने छलकने लगा था.

    दीप्ति मित्तल

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