कहानी- प्रभाती 2 (Story Series- Prabhati 2)

काफ़ी बड़ा और हवादार कमरा था. पश्‍चिम की तरफ़ एक छोटी-सी बालकनी थी. कमरे की सजावट गृहस्वामी के संगीत के प्रति प्रेम को प्रदर्शित कर रही थी. एक कोने में सितार था, तो दूसरे कोने में गिटार भी रखा था, जो उसके पाश्‍चात्य संगीत के प्रति रुझान को भी साबित कर रहा था. सामने की दीवार के बीचोंबीच एक स्त्री की आदमकद पेंटिंग लगी हुई थी, जो कुछ गा रही थी. चित्र में एक छोटी-सी खिड़की के बाहर उदय होता हुआ सूर्य भी दिख रहा था, जो यह प्रदर्शित करता था कि वह स्त्री प्रभाती गा रही थी. प्रभाती यानी सुबह के समय गाया जानेवाला राग.

काफ़ी बड़ा और हवादार कमरा था. पश्‍चिम की तरफ़ एक छोटी-सी बालकनी थी. कमरे की सजावट गृहस्वामी के संगीत के प्रति प्रेम को प्रदर्शित कर रही थी. एक कोने में सितार था, तो दूसरे कोने में गिटार भी रखा था, जो उसके पाश्‍चात्य संगीत के प्रति रुझान को भी साबित कर रहा था. सामने की दीवार के बीचोंबीच एक स्त्री की आदमकद पेंटिंग लगी हुई थी, जो कुछ गा रही थी. चित्र में एक छोटी-सी खिड़की के बाहर उदय होता हुआ सूर्य भी दिख रहा था, जो यह प्रदर्शित करता था कि वह स्त्री प्रभाती गा रही थी. प्रभाती यानी सुबह के समय गाया जानेवाला राग.

कहना नहीं होगा कि कमरे की सज्जा मुझे पसंद आई थी. मेरे अंदरूनी उत्साह को मैंने तनिक भी छिपाया नहीं था.

“शशि, तुम्हारा यह कमरा, मकान तो नहीं लगता.”

“फिर?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा था.

“घर लगता है, यहां की नीरवता में सुंदरता है.”

शशि की दोनों आंखों में चमक थी. मेरे लिए इस चमक का अर्थ अंजाना नहीं था.

संभवत: पहले तो मुझे उसका नाम याद ही नहीं आया था. फ़िर उसने ही याद दिलाया था.

“मैं शशि!” उसकी वाणी में उत्साह का पुट था, जिसे मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया था. यहां पर यह कहना कोई अतिश्योक्तिनहीं होगी कि अप्रत्याशित रूप से मैं भी आवेश में आ गई थी, किंतु मैंने अपने उत्साह को संजीदगी का नक़ाब पहना दिया था.

“क्या बात है, आप यहां?”

“मैं सामनेवाली इमारत में रहता हूं.”

“हम्म्…” इतना भर कह मैं जाने के लिए मुड़ी ही थी कि उसकी आवाज़ ने पुनः मेरे कदमों को रोक लिया था.

“संभवतः आप हाईटेक सिटी के पास रहती हैं?” मेरी उदासीनता ने उसके उत्साह को लेशमात्र भी कम नहीं किया था.

“जान पड़ता है आपको मेरे बारे में काफ़ी जानकारी है?”

“जी, आपको प्रतिदिन आता-जाता देखता हूं.” इस बार उसकी वाणी तनिक झिझकी थी.

“क्या आप मेरा पीछा करते रहते हैं?” अपनी वाणी को सख़्त कर मैंने पूछा था.

कुछ समय के लिए उसके चेहरे का रंग अवश्य उड़ गया था, परंतु शीघ्र ही अपनी वाणी को संतुलित कर पुनः बोला था.

“पीछा तो नहीं, परंतु आपका अनुसरण अवश्य करता हूं. आपके स्वर और विशेषत: आपकी लिखी हुई रचनाओं का अनुगामी हूं.”

उसकी वाणी की मधुरता में लेशमात्र भी बनावट नहीं थी. उसकी साफ़गोई ने मुझे भी सहज कर दिया था.

“धन्यवाद! मेरी रचनाएं पढ़ी हैं तुमने?” मैं स्वयं अचंभित थी कि कितनी जल्दी मैंने आप से तुम तक का सफ़र तय कर लिया था. इस बात का अनुभव उसे भी हो गया था.

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“पढ़ा, कई-कई दफ़ा पढ़ा. यहां आपसे माफ़ी चाहूंगा कि आपसे बिना अनुमति लिए उनमें से कइयों को सुरबद्ध करने की धृष्टता भी की है.”

“क्या सच में! कभी समय हो, तो सुनना चाहूंगी.”

अस्पष्ट अंधेरे में खड़े लैंप पोस्ट की मंद रोशनी में भी उसने मेरे नेत्रों की तरलता में मिश्रित उत्साह को देख लिया था.

“कभी क्यों? आज ही क्यों नहीं? वैसे भी आप कुछ समय पश्‍चात् ही जा पाएंगी.”

“ऐसा क्यों?” मेरा संदेह मिश्रित स्वर सुन वह पुनः सकुचा गया था.

“आगे भीड़ ने मार्ग बंद किया हुआ है.”

“क्यों? कोई दुर्घटना हुई है क्या?”

वह कुछ कहता कि सामने से पुलिस की गाड़ी और एंबुलेंस आती दिखाई दी थीं. दोनों गाड़ियों के निकल जाने के बाद वह मेरे निकट आ गया था.

“कुछ लोगों ने सरेआम एक लड़के और उसकी पत्नी को गोली मार दी है.”

“हे भगवान! क्यों भला?”

“ठीक-ठीक कारण तो ज्ञात नहीं, परंतु कुछ लोग बता रहे थे कि दोनों ने घरवालों के विरुद्ध अंतर्जातीय विवाह किया था.”

“यह उन्माद और कितने निर्दोष प्राणों की बलि लेगा?” मेरे स्वर की निराशा को उसने भांप लिया था.

“हम तो मात्र उम्मीद कर सकते हैं.”

चंद सेकंड तक एक मौन हमारे मध्य पसरा रहा. फिर उसने ही मौन-भंग किया था.

“शीघ्र घर पहुंचने की आपकी व्यग्रता को मैं समझ सकता हूं. घर पर सब आपके लिए परेशान भी होंगे, किंतु मेरे विचार में इन हालात में अभी आपका जाना ठीक नहीं होगा.”

घर! उस फ्लैट को, जहां मेरे पति और सास-ससुर रहते थे. उसे और चाहे कुछ भी कहो, लेकिन मेरा घर तो नहीं कह सकते थे. मुझे इस बात का आभास था कि परेशान वे मेरे लिए नहीं, बल्कि रात्रि भोजन में हो रहे विलंब हेतु हो रहे होंगे. उस स्थान से चंद कदमों का ही तो फ़ासला था, परंतु मेरे कदम शशि के घर की तरफ़ मुड़ गए थे.

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काफ़ी बड़ा और हवादार कमरा था. पश्‍चिम की तरफ़ एक छोटी-सी बालकनी थी. कमरे की सजावट गृहस्वामी के संगीत के प्रति प्रेम को प्रदर्शित कर रही थी. एक कोने में सितार था, तो दूसरे कोने में गिटार भी रखा था, जो उसके पाश्‍चात्य संगीत के प्रति रुझान को भी साबित कर रहा था. सामने की दीवार के बीचोंबीच एक स्त्री की आदमकद पेंटिंग लगी हुई थी, जो कुछ गा रही थी. चित्र में एक छोटी-सी खिड़की के बाहर उदय होता हुआ सूर्य भी दिख रहा था, जो यह प्रदर्शित करता था कि वह स्त्री प्रभाती गा रही थी. प्रभाती यानी सुबह के समय गाया जानेवाला राग.

  पल्लवी पुंडीर

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Usha Gupta

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